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    शरद पूर्णिमा को चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है


    धर्म/कर्म
    रिपोटर/पवन साह सीतामढ़ी
    शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी. शरद पूर्णिमा को चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है और माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा से कुछ विशेष दिव्य गुण प्रवाहित होते हैं. इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा व रस पूर्णिमा भी कहा जाता है. कई वैद्य इस दिन जीवन रक्षक विशेष औषधियों के निर्माण करते हैं. हिंदू परम्परा में रस पूर्णिमा का विशेष स्थान है.

    पौराणिक मान्यता:

    ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण गोपियों के साथ महारास करते हैं. देवीभागवत पुराण में इस बात का उल्लेख है कि, कृष्ण ने गोपियों का प्रेम देखते हुए चन्द्र से महारास का इशारा किया था, चंद्र ने कृष्ण के इशारे के मर्म को समझकर हर तरह अपनी चांदनी बिखेर दी. जिस कारण कृष्ण के मुखमंडल पर लालिमा छा गई. कृष्ण के इस अद्भुत रूप पर मोहित होकर गोपियां सबकुछ छोड़कर उनके पास पहुंचीं. प्रेम के इस महान स्वरुप को देखकर चंद्र ने अमृत के समान अपनी किरणों की वर्षा कर दी जिसमें तरबतर होकर गोपियां अमरत्व को प्राप्त हुईं, और उन्हें कृष्ण का अमर प्रेम मिला.

    खीर बन जाती है अमृत:

    मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की किरणें अमृत बरसाती हैं. इसलिए लोग इस दिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रख देते हैं तथा सुबह उठकर इसका सेवन करने से अमरत्व की प्रप्ति होती है.

    ऋण से मिलती है मुक्ति:

    शास्त्रों ने शरद पूर्णिमा को जागर व्रत या जागर उपवास भी कहते हैं. इसका तात्पर्य है कि कौन जाग रहा है व्रत. ऐसा माना जाता है कि यदि साधक इस दिन मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं तो उन्हें सभी प्रकार के ऋणों से मुक्ति मिल जाती है. इसे कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहा गया है. यदि साधक शरद पूर्णिमा को रात के समय श्रीसूक्त, कनकधारा स्त्रोत, विष्णु सहस्त्रनाम और भगवान् कृष्ण का मधुराष्टकम् का पाठ करते हैं तो उन्हें मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और वो साधक भगवान कृष्ण का परम प्रिय बन जाता है



    खीर बन जाती है अमृत:

    मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की किरणें अमृत बरसाती हैं. इसलिए लोग इस दिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रख देते हैं तथा सुबह उठकर इसका सेवन करने से अमरत्व की प्रप्ति होती है.

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