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    शर्मसार हुआ सीतामढ़ी:समाजिक सदभाव को बिगाड़ने की कोशिश


     बिहार/सीतामढ़ी/समाचार 
    स्थानीय रिपोर्टर संजू गुप्ता 
    edit by-दीपक कुमार 

    सीतामढ़ी : माँ जानकी के जन्म भूमि को आस्था के नाम पर जिस तरह दो गुटों के असामाजिक तत्वों ने सर्व धर्म समभाव और सामाजिक सदभाव के लिए मिसाल पेश करने वाली सीतामढ़ी को  साम्प्रदायिक  रंग दे कर शहर को नफरत के आग के हवाले झोकने की कोशिश की गयी | इससे घिनौने कार्य से सीतामढ़ी को शर्मसार किया है | जिस तरह उपद्रवकारी सड़क पर उतर कर लगभग छह घंटो तक आतंक का खेल खेलते रहे |उनके मन में कानून व्यवस्था का भी डर नहीं था पुलिस प्रसाशन की एक भी नहीं सुनी घंटो तक व्यवस्था को चुनौती देते रहे |


    स्थानीय पुलिस ने सयंम और धर्य का परिचय दिया 

    स्थानीय पुलिसऔर प्रशासन ने संयम और धर्य का परिचय देते हुए  माँ जानकी के जन्म भूमि को सीतामढ़ी को नफरत की आग में जलने से बचा लिया । 

    असमाजिक तत्व ने नफरत की आंधी फैलाकर आक्रोश की आग में इलाके को झोंक एक बार फिर सामाजिक सदभाव को बिगाड़ने की कोशिश की उससे भी अधिक शर्मनाक यह कि दूसरे गुट के लोगों ने आस्था पर प्रहार कर यह स्थिति उत्पन्न की। स्थिति और परिस्थिति के बीच लोगों ने कानून को हाथ में लिया कुछ लोग ही सही पर कुच्छ समय के लिए ही इलाके को अमन  चैन  पसंद करने वाले लोगो की नींद हराम की 
     पुलिस व प्रशासनिक टीम ने पूरी धैर्य का परिचय दिया। खास कर एसपी विकास बर्मन पत्थरबाजों के पत्थर खाते रहे, लेकिन हिले नहीं। पत्थरों के बीच भी वे गांधीवादी नितिअपना कर लोगो को शांति और सदभाव  बनाये रखने के लिए अपील कते रहे | और इंसाफ का आश्वासन दे रहे थे

    पुलिस की चुक 

    हालांकि इस घटना के पीछे कुछ हद तक पुलिस की भी चूक भी रही। पुलिस ने शुक्रवार की रात की घटना पर भले ही काबू पा लिया, लेकिन इस घटना से सबक नहीं ली। आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के कारण ही पत्थरबाजों के हौसले बुलंद हो गए। लिहाजा 10 घंटे के भीतर ही पत्थरबाजों ने दूसरी वारदात को अंजाम दे दिया। यह भी तय है कि दोषी किसी भी कीमत पर बख्शे नहीं जाएंगे। समाज में फिर सामाजिक सदभाव कायम होगा। दोनों ही गुट के लोग जेल जाएंगे और जब कानून का हंटर चलेगा तो उन्हें अपनी गलती याद आएगी। गलती उनकी होगी, सजा झेलेंगे उनके बीबी-बच्चे को उठाना पड़ेगा |

     कानून व्यवस्था का  होता रहा चीरहरण

    कानून का होता रहा चीर हरण। व्यवस्था मजबूर थी। छह घंटे तक पुलिस-प्रशासन के लोग धैर्य के साथ आक्रोश के पत्थर खाते रहे। बावजूद इसके उपद्रवी तत्व रुके नहीं। प्रशासन भी उनके रुकने का इंतजार करती रही। लेकिन, लोग नहीं माने। आखिरकार पुलिस को सख्ती दिखानी पड़ी। मधुबन में पुलिस को देखते ही लोग भड़क गए। हालत यह कि एसपी समेत सभी पुलिस अधिकारी और सशस्त्र बल कई बार पीछे हट गए। पत्थरबाजी शुरू हो गई। पल भर में सड़क ईंट-पत्थरों से भर गई। लोग इतने पर भी नहीं माने। मुरलियाचौक में घर-दुकान में घुस कर मारपीट और लूटपाट तो की ही आगजनी भी की। घटना की खबर गौशाला तक पहुंची। यहां भी वही तस्वीर दिखी। फिर नोनिया टोल में सामने आया आक्रोश। जंगल के आग की तरह खबर राजोपट्टी में पहुंची तो एक गुट के लोग सड़क पर उतर कर हंगामा करने लगे।


    इसके पीछे किसका हाथ है

     ये सीतामढ़ी में पहली घटना नहीं है |1993 में भी ऐसी घटना घटी बीते साल भी ऐसी ही घटना  सुनने को मिला सवाल ये उठता है ये कौन लोग है जो आपसी सद्भाव बिगाड़ने की 
    कोशिश करते है | 
    इसके पीछे इनका मकसद क्या है ? 
    कही एक समुदाय के सामने दुसरे समुदाय को बदनाम करने की कोशिश तो नहीं ? 
    और देखने वाली बात है की एक समुदाय के पर्व और त्यौहार के बिच ही ऐसा वाक्या क्यों होता है ? 
    जबकि दुसरे समुदाय के पर्व त्यौहार पर किसी तरह का उपद्रव सुनने को नहीं मिलता है ?
    तो दुसरे समुदाय के पर्व त्यौहार के समय नफरत फैलाने की कोशिश क्यों ?
    कही कोई बाहरी ताकत हमारे आपसी भाईचारे को नफरत को आग में झोकने को कोशिश तो नहीं कर रहा ये सोचने वाली बात है  |

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