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    कांग्रेस में तो ‘गांधी’ का है बोलबाला, वरना ‘प्रियंका’ तो चतुर्वेदी भी हैं, जिनका हुआ अपमान और छोड़नी पड़ी पार्टी



    We News24  Hindi »नई दिल्ली 

    नई दिल्ली :राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी के पुत्रों, पुत्रवधुओं, पोतों-पोतियों में से कोई भी भारत की राजनीति में सक्रिय नहीं है। इसके बावजूद भारत के इतिहास में महात्मा के रूप में स्वयं को स्थापित करने वाले महात्मा गांधी का उपनाम गांधी आज भी भारतीय राजनीति के केन्द्र में है, परंतु इसकी नींव पड़ी थी 26 मार्च, 1942 को जब इंदिरा नेहरू ने पारसी मुस्लिम फिरोज़ जहाँगीर शाह से विवाह किया। महात्मा गांधी का जीवन प्रयोगों से भरा हुआ था और ऐसे ही एक प्रयोग के अंतर्गत उन्होंने नेहरू के विरुद्ध जाकर इंदिरा के फिरोज़ से विवाह को न केवल उचित ठहराया, अपितु महात्मा गांधी ने अपना उपनाम गांधी तक फिरोज़ जहाँगीर शाह को दे दिया और पारसी मुस्लिम फिरोज़ बन गए शाह से गांधी। साथ ही इंदिरा शाह का नाम भी इंदिरा गांधी में परिवर्तित हो गया। इस तरह जवाहरलाल के साथ जुड़ा नेहरू उपनाम यहीं रुक गया, क्योंकि नेहरू के कोई पुत्र था नहीं। पुत्री अब इंदिरा फिरोज़ गांधी बन चुकी थीं।

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    Deeply saddened that lumpen goons get prefence in over those who have given their sweat&blood. Having faced brickbats&abuse across board for the party but yet those who threatened me within the party getting away with not even a rap on their knuckles is unfortunate.

    कांग्रेस में 1942 से पड़ी गांधी उपनाम की नींव लगातार मजबूत होती चली गई। पहले इंदिरा गांधी, फिर संजय गांधी, फिर राजीव गांधी, फिर सोनिया गांधी, फिर राहुल गांधी और अब प्रियंका गांधी (जो विवाह के बाद वाड्रा हो चुकी हैं, परंतु अब भी प्रियंका के साथ उपनाम गांधी ही लगाया जा रहा है)। यद्यपि इंदिरा गांधी परिवार की विरासत का एक तार और भी है, जो संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी और पुत्र वरुण गांधी के साथ जुड़ा हुआ है, परंतु चूँकि दोनों माँ-बेटे ने कांग्रेस में संजय गांधी की विरासत पानी चाही, इसलिए वे कांग्रेस से बेदखल कर दिए गए और दोनों ही इस समय भाजपा में हैं।


    I am absolutely overwhelmed and grateful with the love and support I have got across board from the nation in the past 3 days. I consider myself blessed with this immense outpouring of support. Thank you to all who have been a part of this journey.

    कांग्रेस पार्टी गांधी उपनाम को अपना पर्याय मान कर चल रही है। इसलिए कांग्रेस पार्टी में आज भी गांधी उपनाम का ही बोलबाला है। सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी पुत्र राहुल को सौंप कर थोड़ी निश्चिंत हो गई हैं, तो भाई राहुल अपनी सहायता के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति में ले आए। सभी जानते हैं कि कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा की क्या अहमियत है और यह अहमियत इसलिए नहीं है कि वे प्रियंका हैं, अपितु इसलिए है, क्योंकि वे गांधी हैं। यदि प्रियंका का बोलबाला होता, तो प्रियंका तो चतुर्वेदी भी हैं, जिन्हें आज कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र देना पड़ा। प्रियंका चतुर्वेदी का त्यागपत्र यह दर्शाता है कि पार्टी में व्यक्ति या व्यक्तित्व नहीं, अपितु गांधी सबसे महत्वपूर्ण है।

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    एक प्रियंका का सम्मान, दूसरी प्रियंका का अपमान !

    कांग्रेस में केवल एक प्रियंका को जाना जाता है, जिनके साथ उपनाम गांधी है। पार्टी के सैकड़ों नेताओं और कार्यकर्ताओं में कइयों के नाम प्रियंका होंगे, परंतु आज हम जिस प्रियंका की बात कर रहे हैं, उनका उपनाम चतुर्वेदी है। आज यानी 19 अप्रैल, 2019 को दोपहर 12.17 बजे से पहले चतुर्वेदी कांग्रेस की नेता थीं, परंतु अब वे शिवसेना की नेता हो गई हैं। वर्ष 2010 में कांग्रेस में शामिल होकर युवा कांग्रेस की महासचिव से राष्ट्रीय प्रवक्ता तक के पद पर पहुँचीं प्रियंका चतुर्वेदी ने आज एक TWEET किया और कांग्रेस से 10 साल का नाता तोड़ लिया। उन्होंने पार्टी का आभार व्यक्त करने के साथ ही यह भी आरोप लगाया, ‘एक तरफ कांग्रेस महिलाओं की सुरक्षा, मान-मर्यादा और सशक्तीकरण की बात करती है और दूसरी तरफ पार्टी के कुछ सदस्यों का आचरण इसके ठीक विपरीत है। कुछ सदस्यों ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। इतने गंभीर मामले को भी पार्टी ने केवल इसलिए नजरअंदाज किया, क्योंकि चुनाव पर असर पड़ सकता था। इस अपमान ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं कांग्रेस छोड़ कर बाकी चीज़ों पर ध्यान दूँ।’ प्रियंका के ट्वीट और वक्तव्य से स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी में एक प्रियंका ऐसी भी हैं, जिनके विरुद्ध किसी कांग्रेसी में एक शब्द बोलने का साहस नहीं है और दूसरी प्रियंका ऐसी भी थीं, जिनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। प्रियंका के साथ यह बदसलूकी मथुरा में हुई थी। कांग्रेस ने दुर्व्यवहार करने वालों को खेद जताने के बाद वापस पार्टी में ले लिया, जिसे प्रियंका चतुर्वेदी ने अपना अपमान समझा और कांग्रेस छोड़ दी।

    पुनः मुंबई के लिए काम करना चाहती हैं प्रियंका

    मुंबई से कांग्रेस के साथ राजनीतिक जीवन शुरू करने वालीं प्रियंका चतुर्वेदी लौट कर मुंबई आ गई हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय नेता बनने के बाद मुंबई से कट चुकीं प्रियंका ने आज उद्धव ठाकरे की उपस्थिति में शिवसेना में शामिल होने के बाद कहा, ‘अपने काम के कारण मैं मुंबई से कट गई थी। अब मैं पुनः यहाँ के लिए काम करना चाहती हूँ। मैंने मुंबई लौटने का मन बनाया, तब मेरे मन में शिवसेना के अलावा किसी पार्टी का विचार नहीं आया।’ प्रियंका चतुर्वेदी ने मीडिया से बातचीत में यह भी स्पष्टता की कि उन्होंने मथुरा से कांग्रेस टिकट नहीं मांगा था। मथुरा में उनके माता-पिता का घर है। इसलिए मथुरा से जुड़ाव है।

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