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    श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ चतुर्थ दिवस माँ कामधेनु का संरक्षण कर श्रेष्ठ सांस्कृतिक भारत के निर्माण में सहभागी बनें।


    We News 24 Hindi »सीतामढ़ी,बिहारकैमरामैन पवन साह के साथ ब्यूरो संवाददाता असफाक खान की रिपोर्ट 

     सीतामढ़ी :भागवत जीवन का दर्पण है। यह जीवन की एक आदर्श संहिता है।इसके केवल श्रवण मात्र से कल्याण नहीं, बल्कि आचरण में लाने पर ही भागवत फलदाई होगी। नारद जी ने किस प्रकार मंत्रविद से  आत्मविद् होने का सफर तय किया। स्वयं को केवल शास्त्र-ग्रंथों के पठन-पाठन तक ही सीमित नहीं रखा। उनका मंथन कर सार भाव को ग्रहण किया और फिर आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु ब्रह्मनिष्ट गुरु के समक्ष अपनी गुहार रख दी। तब कहीं जाकर महान शास्त्र-ग्रंथों का पठन-पाठन उनके जीवन में सार्थक सिद्ध हो पाया। ठीक उसी प्रकार जैसे किसी फल के रंग-रूप आकार व स्वाद के विषय में पुस्तक से एकत्र की गई जानकारी तभी लाभप्रद सिद्ध होती है, जब जानकारी के आधार पर ऐसे फल को ग्रहण कर लिया जाए।

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    इन्हें दिव्य प्रेरणाओं के साथ कथा व्यास साध्वी आस्था भारती जी ने चतुर्थ दिवस का शुभारंभ किया। दिनांक 15 अक्टूबर से 21 अक्टूबर तक आयोजित 'श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ' के चतुर्थ दिवस भागवताचार्य महामनश्विनी  साध्वी आस्था भारती जी ने प्रभु की बाल लीलाएं एवं गोवर्धन पूजा आदि विभिन्न प्रसंगों से जन समूह को आनंदित किया। 


    कथा के प्रथम भाग में यानि लगभग दो घंटे तक भगवान श्रीकृष्ण के पालना में बीते बालपन को कान्हा झूले पालना, झूलावे महारानी जैसे भजन में यशोदा व उनके साखियों के रूप में कथा में यजमान की भूमिका निभा रही महिलाओं ने श्रीकृष्ण की पालना को ऐसे झूला रही थीं जिससे गोकुल का छटा बिखेर रहा था। वहीं दुसरी तरफ "हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की" जैसे भजनों में पूरा पंडाल झूम उठा।

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    भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के घरों से माखन चोरी की, इस घटना के पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है। दूध का सार तत्व माखन है। उन्होंने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात् सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया। प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ्य को अपव्यय करने की अपेक्षा हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।


    साध्वी जी ने बताया की वास्तविकता में श्री कृष्ण केवल ग्वाल-बालों के सखा भर नहीं थे, बल्कि उन्हें दीक्षित करने वाले जगद्गुरु भी थे। श्री कृष्ण ने उनकी आत्मा का जागरण किया और फिर आत्मिक स्तर पर स्थित रहकर सुंदर जीवन जीने का अनूठा पाठ पढ़ाया

    संस्थान के 'गौ संरक्षण व संवर्धन कार्यक्रम-कामधेनु' की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि गौ भारतीय संस्कृति का आधार है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- 'धेनूनामस्मि कामधुक'-धेनुओं में मैं कामधेनु हूँ। इस प्रकार गौ को उन्होंने अपनी ही विभूति बताया व सदा ही गोरोचन का तिलक अपने मस्तक पर सुशोभित किया। परंतु फिर भी आज हमारी देसी नस्लें लुप्त होती जा रही हैं। गोवध समाज के लिए कलंक बन चुका है। इसलिए गौ संरक्षण व संवर्धन की परम आवश्यकता है। 

     Shri Maharaj ji says- if we want to save the nation, we must save indigenous breeds of cows. इसी कारण से श्री आशुतोष महाराज जी के दिशा-निर्देशन में संस्थान द्वारा संस्थान द्वारा कामधेनु प्रकल्प चलाया जा रहा है। जिसके अंतर्गत देसी गांव की वृद्धि हेतु जन-जन को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा रहा है। साध्वी जी ने स्वयं व्यासपीठ से सभी सीतामढ़ी निवासियों से गौमाता के संरक्षण की अपील की।


     यानी कानि च दुर्गाणि दुष्कृतानि कृतानि च। तरन्ति चैव पाएमानं धेनु ये ददति प्रभो।।
     अर्थात गोदान करने वाला सभी कष्टों, दुष्कर्मों और सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। आप भी यथा सामर्थ्य धन के रूप में अपना सहयोग अर्पित कर गौ सेवा का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। मां सरस्वती ने आज जिनके कंठ में अपने दिव्य स्वर दिए-साध्वी सुश्री अवनी भारती जी, साध्वी सुश्री शालिनी भारती जी, साध्वी सुश्री सुमन भारती जी, साध्वी सुश्री बोधया भारती जी, स्वामी प्रमितानंद जी व गुरु श्रेष्ठ जी।

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    और इन भजनों को ताल व लयवध किया-साध्वी सुश्री दीपा भारती जी, साध्वी सुश्री महाश्वेता भारती जी, साध्वी सुश्री अभया भारती जी, साध्वी सुश्री रुचिका भारती जी, साध्वी सुश्री वीणा भारती जी, साध्वी सुश्री प्रियंका भारती जी, स्वामी मुदितानंद जी, स्वामी करुणेशानंद जी व गुरु भाई अमित जी ने।


    आज गोवर्धन पूजा के अवसर पर प्रभु भक्तों  के द्वारा पंडाल पहूँचे सभी श्रद्धालुओं के बीच छप्पनभोग का प्रसाद वितरण किया गया।

    मनोज कुमार द्वारा किया गया पोस्ट 

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