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    श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ-षष्ठम दिवस,पूर्ण सत्गुरु ब्रह्मज्ञान देकर हमें जगाया करते हैं

    We News 24 Hindi »सीतामढ़ी,बिहार
    कैमरामैन पवन साह के साथ ब्यूरो संवाददाता असफाक खान की रिपोर्ट 

    सीतामढ़ी :आज अष्टम दिवस के अवसर पर आमंत्रित विशिष्ठ अतिथि विधायक सुनील कुमार कुशवाहा सीतामढ़ी एवं  प्रेम शंकर वर्मा एवं उनके सहयोगी सिविल सर्जन कार्यालय सीतामढ़ी अभिराज झा,अभियंता एवं स्वास्तिक आटा मिल के स्वामीरामबाबू कुमार बसाहा, राजोपट्टी,विनोद कुमार श्रीवास्तव बैंक प्रबंधक शांति नगर आदि अन्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

    आज कथाव्यास जी ने मंच से रुक्मणी-विवाह प्रसंग का उल्लेख किया। साध्वी जी ने इस प्रसंग में बताया कि मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी भक्त घबराता नहीं, धैर्य नहीं छोड़ता! क्योंकि भक्त चिंता नहीं, सदा चिंतन करता है। और जो ईश्वर का चिंतन करता है, भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं।

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    भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भागवत गीता में कहते हैं-
    अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्‌ ॥
     अर्थात जो भक्त मुझे अनन्य भाव से भेजते हैं, उसका योग क्षेम मैं स्वयं करता हूँ। अनन्य भाव अर्थात प्रभु से विशुद्ध प्रेम और प्रेम की सबसे पहली शर्त क्या है? इसी संदर्भ में गोस्वामी जी रामचरितमानस में माध्यम से कहते हैं-जाने बिन न होई परतीती,बिन परतीती होई नहि प्रीति।अर्थात प्रेम की सबसे पहली शर्त है- उस ईश्वर को जानना! अंतर्घट में उस परब्रह्म परमेश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव (प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस) करना। 

    आज हम परमात्मा को केवल मानते हैं, उसे जानते नहीं है। इसलिए न तो हमारा विश्वास उन भक्तों की तरह दृढ़ हो पाता है और न परमात्मा से प्रगाढ़ है प्रेम हो पाता है। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि जिस प्रकार प्रभु ने प्रह्लाद की रक्षा की, उसी प्रकार हमारी भी रक्षा हो तो हमें भी नारद जी के समान तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की शरण में जाकर उनकी कृपा से ईश्वर की तत्व स्वरूप का दर्शन करना होगा।  वास्तविकता में यह पावन कथा आपको मानने से जानने की यात्रा पर ले जाने आई है। यही यात्रा संपन्न की थी- मीराबाई ने अपने गुरुदेव रविदास जी की कृपा से। इसी सफर पर बढ़ चले थे -संत नामदेव अपने गुरु विशोभाखेचर जी के साथ। इसी यात्रा को अपने जीवन का ध्येय बना लिया था स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के कहने पर।  

    साध्वी जी ने कन्या भ्रूण हत्या जिनके कारण समाज में  नारी की संख्या, समाज में उसका स्थान और भी कम से कम होता जा रहा है, उसकी चर्चा भी की। इस व्याधि को समाज से खत्म करने के लिए दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा 'संतुलन' नामक प्रकल्प चलाया जा रहा है। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का कथन है-Mind is the script writer of our life.Our mental thoughts and the expressions are the propagators of our actions. इसलिए मन को कंट्रोल करने के लिए उससे भी subtler और powerful source चाहिए और वह है आत्मा । इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है real self awakening यानि आत्मा का जागरण।
     आप इस scriptures के एक छोटे से eg.Chariot model  से बड़ी आसानी से समझ सकते हैं-
    आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु।
    बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।।
    इंद्रियाणि हयानाहुर्विषयांस्तेषु गोचरान् ।
    आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः ।।


    उन्होंने कहा कि शरीर एक रथ है और मन उसकी  लगाम है। बुद्धि रुपी सारथि इसी लगाम रथ को हांक रहा है। इस रथ का मालिक है हमारी आत्मा। मालिक यानि हमारी आत्मा सो रही है।उसे ही जगाने की जरूरत है ताकि वह instruction दे सके कि यहां नहीं, वहां चलो। तब जाकर वह रथ wrong से right direction  की ओर बढ़ जाएगा। अब प्रश्न यह है कि यह awakening होगी कैसे? हम उस  real self कैसे ..कर पायेंगे? एक पूर्ण गुरु ही हमें ब्रह्मज्ञान देकर हमे जगाया करते हैं। आज श्री आशुतोष महाराज जी के कृपा तले संस्थान द्वारा रूढ़िवादी मानसिकता को ब्रह्म ज्ञान की विज्ञान द्वारा बदलने का सफल प्रयास किया जा रहा है।
    साध्वी जी ने मंच के माध्यम से यह संकल्प भी दिलवाया- आइए, माता जानकी की जन्मभूमि पर यह शपथ लें कि हम सभी स्वयं के जीवन से भी संकीर्ण मानसिकता को दूर करेंगे और इस विषय पर समाज में भी जागरूकता लाएंगे।

    काजल कुमारी द्वारा किया गया पोस्ट 


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