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    केंद्र साकार अपने उधारी संग्रह कार्यक्रम में भी बदलाव करने की सोच रही है

    We News 24 Hindi »दिल्ली/राज्य

    NCR/ब्यूरो संवाददाता आरती गुप्ता

    नई दिल्ली:कोरोना वायरस ने जिस तरह से पूरी अर्थ व्यवस्था  को हानि पहुंचाई है उसका असर सरकार के रेवन्यू  पर पड़ना तय है। ऐसे में केंद्र सरकार चालू वित्तय  वर्ष के लिए अपने उधारी संग्रह कार्यक्रम में भी बदलाव करने की सोच रही है। सरकारी और उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि जिस तरह से कोरोनावायरस की वजह से कारोबारी गतिविधियों में गिरावट आने के आसार हैं उसे देखते हुए केंद्र सरकार को ज्यादा उधारी लेने की जरूरत नहीं होगी। उधारी घटाने के पीछे दूसरी वजह यह है कि बांड्स बाजार की स्थिति बहुत खराब है और मौजूदा माहौल में बांड्स जारी कर अतिरिक्त संसाधन जुटाना एक आकर्षक विकल्प नहीं होगा।

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    दरअसल, केंद्र सरकार अपने राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए बाजार से उधारी लेती है। आमतौर पर उधारी की राशि तब बढ़ जाती है जब राजस्व कम होता है और सरकार के खर्चे बढ़ जाते हैं। इस अंतर को पाटने के लिए सरकार प्रतिभूतियां भी जारी करती है या आरबीआइ को बांड्स जारी कर अतिरिक्त संसाधन जुटाती है। लेकिन मार्च से तमाम आर्थिक गतिविधियां काफी सुस्त हो गई हैं। समूचे अप्रैल महीने में लॉकडाउन होने की वजह से अधिकांश सरकारी कार्यक्रम व परियोजनाओं भी ठप हैं। ऐसे में सरकार को अधिरिक्त धन की जरूरत नहीं है। 

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    एंजल ब्रोकिंग रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के लिए अभी RBI व LIC को सीधे बांड्स जारी कर संसाधन जुटाने का विकल्प ज्यादा आकर्षक है। LIC में केंद्र की 100 फीसद हिस्सेदारी है और इस कंपनी के पास पर्याप्त फंड भी है जिसे सरकारी बांड्स में निवेश किया जा सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 वर्षो में पहला ऐसा मौका आया है जब सरकार के समक्ष निर्धारित लक्ष्य से कम उधारी ले कर भी काम चला सकती है। सनद रहे कि वित्त मंत्रालय ने हाल ही में बताया था कि वर्ष 2020-21 में वह 7.8 लाख करोड़ रुपये की उधारी लेगी जबकि वर्ष 2019-20 में 4.99 लाख करोड़ रुपये की उधारी ली गई थी। 

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    एंजल ब्रोकिंग के अर्थविदों का कहना है कि आर्थिक मंदी की वजह से सरकार के सकल राजस्व में बड़ी कमी आने की आशंका है। अगर अभी उधारी ज्यादा ली जाती है तो यह घरेलू खपत पर उलटा असर डालेगी। जबकि अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिए अभी घरेलू खपत को बढ़ाना जरूरी है। साथ ही अभी जीडीपी विकास दर की रफ्तार बहुत ही धीमी रहेगी। ऐसे में उधारी में होने वाली थोड़ी सी भी वृद्धि भी जीडीपी व उधारी के अनुपात को बढ़ा देगी। यह देश की आधारभूत इकोनॉमी के लिए सही संकेत नहीं माना जाएगा।

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