कोरोना जाते-जाते भी जीवन भर का घांव देकर जायेगा ,ठीक होने बाद मरीजो को इन समस्या से ता उम्र जूझना पड़ेगा
नई दिल्ली :कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों को उससे जुड़ी समस्या से सारी उम्र जूझना पड़ सकता है क्योकि ठीक होने बाद भी अपना छाप छोड़ जाता है और इन मरीजों को शारीरिक दुर्बलता से लेकर फेफड़ों, हृदय, मस्तिष्क को हुआ नुकसान और निशक्तता जैसे समस्या से झूझना पद सकता है । ये जानकारी ब्रिटेन के शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताई साथ ही उन्होंने चिंता जताया और कोरोना को मौजूदा पीढ़ी के लिए पोलियो से भी खतरनाक करार दिया है।
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कोरोना के लक्षण आते-जाते रह सकते हैं
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने संक्रमितों से जुड़े आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर दावा किया है कि कोरोना के लक्षण आते-जाते रह सकते हैं। कई मामलों में मरीज को 30 दिन या उससे अधिक समय तक इनसे रूबरू होना पड़ सकता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) की ओर से दी गई आधिकारिक जानकारी के मुताबिक की ये संक्रमण दो हफ्ते की अवधि तक रहेगा उससे कहीं ज्यादा है। सघन चिकित्सा में रखे गए मरीजों को कोरोना से ठीक होने के बाद भी हृदय, फेफड़ों और मांसपेशियों के विकार की समस्या सता सकती है।
हृदय प्रतिरोपण की पड़ सकती है जरूरत
पूर्वी लंदन में कोरोना से उबरने वाली एक महिला दिल की गंभीर बीमारी का शिकार हो गई है। डॉक्टरों के मुताबिक सर्दी-जुकाम और बुखार की गिरफ्त में आने के नौ हफ्ते बाद उसे ‘डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी' की शिकायत हो गई। इस बीमारी में हृदय की कोशिकाओं में सूजन आने से शरीर के विभिन्न हिस्सों में खून का प्रवाह मुश्किल हो जाता है। महिला के अनुसार खानपान पर नियंत्रण और व्यायाम के जरिये ‘डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी' के लक्षणों में सुधार तो आता है, लेकिन कुछ मामलों में पेसमेकर लगवाने की जरूरत पड़ सकती है। कई मामलों में हृदय प्रतिरोपण तक की नौबत भी आ सकती है। महिला ने बताया कि उसे सांस लेने में अब भी कई बार तकलीफ महसूस होती है।
महामारी बनने का डर
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का इलाज करने वाले फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. निकोलस हार्ट ने दावा किया है कि कोरोना वायरस मौजूदा पीढ़ी के लिए पोलियो बनकर उभर सकता है। लक्षण पनपने के कई महीनों या फिर वर्षों बाद तक इससे पैदा समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। हार्ट का दावा उन लोगों को डराने के लिए काफी है, जो 1950 के दशक में हजारों की जान लेने और बड़े पैमाने पर लोगों में निशक्तता का सबब बनने वाली पोलियो महामारी के गवाह रह चुके हैं। 1947 से 1956 (जब पोलियो के टीके की खोज हुई) के बीच ब्रिटेन में पोलियो हर साल औसतन आठ हजार की दर से मरीजों को संक्रमित कर रहा था।
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