पटना :साल दर साल बढ़ रही है बाढ़ की विनाशलीला बाढ़ ने बिहार और असम में भारी तबाही मचा राखी है .कुच्छ दिनों में बाढ़ का पानी उतरने लगेगा उसके बाद लोगों को विभिन्न बीमारियों से जूझना पड़ता है और उसके बाद जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगता है. जब तक जनजीवन पूरी तरह सामान्य हो, तब तक अगले साल की बाढ़ दरवाजों पर दस्तक देने लगती है.
सालाना त्रासदी बनी बाढ़ बिहार और पूर्वोत्तर में असम समेत ज्यादातर राज्यों को हर साल बाढ़ की मार से जान-माल का भारी नुकसान होता है. इसके अलावा लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं. महज कुछ हफ्तों की बाढ़ राज्य और खासकर संबंधित इलाकों की अर्थव्यवस्था को भी अपने साथ बहा ले जाती है. लेकिन बावजूद इसके साल दर साल आने वाली इस बाढ़ पर अंकुश लगाने या बाढ़ से पहले जान-माल का नुकसान रोकने की खातिर एहतियाती उपाय करने के मामले में राज्य और केंद्र सरकार की उदासीनता जगजाहिर है. कई मामलों में तो नेताओं के लिए बाढ़ वरदान की तरह आती है, जिसमें राहत बांटने के नाम पर वह अपनी जेबें गर्म करते हैं.
हर साल मानसून आने से पहले केंद्र व राज्य सरकारें भी बाढ़ से निपटने के लिए तैयार होने का दावा करती है. लेकिन मानसून का पहला दौर ही सरकारी दावों की पोल खोलते हुए कई राज्यों को डुबो देता है. देश के कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां हर साल बाढ़ आना लगभग तय होता है. यह बात राज्य सरकारें भी जानती हैं और केंद्र सरकार भी.
वैसे, तमाम राज्यों में आपदा प्रबंधन बल का गठन कर दिया गया है. लेकिन उसकी भूमिका बाढ़ से हुए नुकसान के बाद शुरू होती है. अब तक किसी भी सरकार ने ऐसी किसी ठोस बाढ़ नियंत्रण योजना बनाने की पहल नहीं की है जिससे बाढ़ आने से पहले ही हर साल डूबने वाले इलाके से लोगों और जानवरों को निकाल कर सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया जा सके. इससे बाढ़ से होने वाली मौतों को काफी हद तक कम किया जा सकता है. 1953 में एक राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था. इस पर अब तक अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद अब तक नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है.
बिहार के उत्तरी हिस्से में लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है. इसकी मुख्य वजह नेपाल से आने वाली नदियां हैं. नेपाल में भारी बारिश के बाद वहां का पानी बिहार आ जाता है. कोसी, सीमांचल सहित मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी,शिवहर, पूर्वी चंपारण बाढ़ की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
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