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    खेल खेल में सैर के बहाने बना दिया पशु पक्षियों के लिए तालाब




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    सोलन /रिपोर्टर सत्यदेव शर्मा सहोड़

    • खेल खेल में सैर के बहाने बना दिया पशु पक्षियों के लिए तालाब
    • लॉकडाऊन में चहलकदमी के दौरान सबने मिलके दिया सहयोग



    बददी (सोलन)। लॉकडाऊन के दौरान जहां पूरा विश्व घरों मे सहमा बैठा है वहीं जिला सोलन की तहसील बददी के युवाओं ने एक वन्य प्राणियों के लिए एक ऐसा काम कर दिया जो कि लंबे समय तक याद रहेगा। 

    प्रदेश सरकार ने गत दिनों जब सैर के लिए सुबह डेढ घंटा दिया था तो बददी व संडोली के युवा हिमाचल व पंजाब के बार्डर पर बने ऊंचे उंचे पहाड बने थे वहां सैर करने जाने लगे। इसका मकसद था स्वयं को फिट रखना लेकिन जब वो टॉप पर पहुंचे तो पता चला कि यहां पर वन्य प्राणियों की आवाजाही रहती है लेकिन तपती गर्मी में पानी का कोई साधन नहीं था। यहां पर एक आधार अधूरा तालाब था जो कि बरसात में ढह गया था और अगली बरसात सिर पर है जिसका जल संग्रहण किया जा सकता है। 



    इसी क्रम में युवाओं ने संडोली के भजन चौधरी व बददी के युवा रविंद्र ठाकुर आदि युवाओं ने मिलकर सबको प्रेरित किया और यहां पर एक छोटा सा तालाब रुपी जोहडी बनाने का प्रण लिया।सैर से बना ग्रुप-बददी के युवा भारत भूषण, रमन कौशल, अमर सिंह ठाकुर ने बताया कि यह तालाब हालांकि पहले भी बनना शुरु हमने सैर करते करते व्हाटसएप का ग्रुप बनाया और युवा सुबह पांच बजे ही गैंती व कस्सी लेकर एक बडे मिशन की ओर निकल पडते थे। रोज थोडा थोडा तालाब खोदना व मिट्टी को ढाल लगाकर बाहर जमा करना होता था। जुलाई माह के मध्य बरसात बताई गई है।

     इस बार भारी बरसात की संभावना बताई गई है। रमन कौशल ने बताया कि उनकी टीम में नगर परिषद बददी के चेयरमैन नरेंद्र कुमार, मोहन सिंह मोहणा, ठाकुर अमर सिंह, गुरचरण सिंह चन्नी, रिषी ठाकुर, लक्ष्य ठाकुर आदि शामिल है।


    कैसे मिली प्रेरणा
    सुबह की सैर में सिर्फ पैदल चलना होता था लेकिन पसीना तो कोई भारी काम से निकलना था वहीं लोगों को श्रम ही शक्ति का महत्व बताकर प्रकृति या जन जंगल जमीन से रुबरु करवाना था। आज कल के बच्चे मात्र स्कूल, घर, पढ़ाई व मोबाईल तक सीमीत होकर रह गए हैं उनको न तो खेती और न ही प्रकृति पेड पौधों के बारे में  व्यावहारिक ज्ञान है।

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     इस दौरान जो तालाब निर्मित किया उसको उनको मिट्टी की वैल्यू पता लगी तथा पता लगा कि श्रम शक्ति कितनी कठिन साधना है। अब बच्चों को बोझ भार उठाने की आदत डली है तथा पता चला कि उनके मां बाप कितनी कठिन मेहनत करके उनके लिए संसाधन जुटाते हैं। सबने मिलकर वहां थोडा थोडा काम किया तो आज अपने आप मांझी की तरह बडा मुकाम बन गया।

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