नई दिल्ली : राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राजस्थान स्पीकर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान स्पीकर सीपी जोशी की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा - हाईकोर्ट स्पीकर को आदेश नहीं दे सकता, न्यायालय निर्णय का समय बढ़ाने के लिए स्पीकर को निर्देश नहीं दे सकता. जब तक अंतिम निर्णय स्पीकर द्वारा नहीं लिया जाता है, तब तक न्यायालय से कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है.
मालूम हो कि आज सुप्रीम कोर्ट राजस्थान के बर्खास्त उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही 24 जुलाई तक रोकने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी की याचिका पर सुनवाई हुई.
बता दें कि राजस्थान में सत्ता को लेकर मचे घमासान के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने अपनी सरकार को गिराने की साजिश रचे जाने का आरोप लगाया है. पीएम को लिखे पत्र में सीएम गहलोत ने लिखा है कि राज्यों में चुनी हुई सरकारों को लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विपरीत हॉर्स ट्रेडिंग के माध्यम से गिराने के लिए कुत्सित प्रयास किए जा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की मुख्य बातें - जस्टिस अरुण मिश्रा ने सिब्बल से पूछा कि क्या जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि को अपनी असहमति व्यक्त नहीं कर सकते? उन्होंने कहा कि असंतोष की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। लोकतंत्र में क्या किसी को इस तरह चुप कराया जा सकता है?
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपसे (राजस्थान) HC ने केवल 24 जुलाई तक इंतजार करने का अनुरोध किया है। स्पीकर के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि आदेश में 'निर्देश' शब्द को हटाए, अदालत ऐसा नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा तो समस्या केवल शब्द के साथ है? आदेश में 'अनुरोध' होता है।
- कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अध्यक्ष से एक तय समय सीमा के भीतर अयोग्यता पर फैसला लेने के लिए कहा जा सकता है, लेकिन कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। - सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कोई साधारण मामला नहीं है, ये विधायक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही स्वीकृति योग्य है या नहीं। विरोध की आवाज को लोकतंत्र में दबाया नहीं जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान स्पीकर के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि किस आधार पर अयोग्य करार दिए गए थे? सिब्बल ने अदालत से कहा कि विधायक पार्टी मीट में शामिल नहीं हुए, वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। वे हरियाणा के एक होटल और अपनी पार्टी के खिलाफ फ्लोर टेस्ट की मांग कर रहे हैं।
- जस्टिस अरुण मिश्रा ने सिब्बल से पूछा कि क्या एक जनता द्वारा चुने गए व्यक्ति अपनी असहमति व्यक्त नहीं कर सकते? असंतोष की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। लोकतंत्र में क्या किसी को इस तरह बंद किया जा सकता है?
- कपिल सिब्बल ने कहा कि इस स्तर पर एक सुरक्षात्मक आदेश नहीं हो सकता है। जब राजस्थान हाईकोर्ट ने नोटिस पर जवाब देने के लिए समय बढ़ाया और कहा कि कोई निर्देश पारित नहीं किया जाएगा, तो यह एक सुरक्षात्मक आदेश था।
- स्पीकर के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि एक फैसले से पहले जब तक निलंबन या अयोग्यता नहीं होती तब तक कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता (अदालत द्वारा)। - राजस्थान अध्यक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि स्पीकर को 'निर्देश नहीं' दिया जा सकता है और राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पीकर को निर्देश जारी करना गलत था। यह तय कानून के खिलाफ है।
- राजस्थान के अध्यक्ष सीपी जोशी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि कोर्ट स्पीकर को यह निर्देश नहीं दे सकती कि दलबदल विरोधी नोटिसों पर वह विधायकों को अपना जवाब दाखिल करने का समय बढ़ाएं। यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
- विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बुधवार को मामले की त्वरित सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष विशेष उल्लेख किया, लेकिन उसने त्वरित सुनवाई से फिलहाल इनकार कर दिया।
- न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि वह रजिस्ट्री जाएं। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री जैसा तय करेगी उसी के अनुसार सुनवाई होगी।
अध्यक्ष ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें उसने शुक्रवार तक सचिन पायलट और उनके खेमे के 18 विधायकों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी है। सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में क्या कहा है याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट विधानसभा अध्यक्ष को सचिन गुट पर कार्रवाई करने से नहीं रोक सकता। न्यायालय का कल का आदेश न्यायपालिका और विधायिका में टकराव पैदा करता है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश पर रोक लगाए जाने की भी मांग शीर्ष अदालत से की है। याचिका में अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला भी दिया है और कहा है कि शीर्ष अदालत ने अपने पुराने फैसले में कहा है कि जब तक अयोग्यता की कार्यवाही पूरी नहीं होती, तब तक अध्यक्ष की कार्रवाई में न्यायालय दखलंदाजी नहीं कर सकता।
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