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    जाने पवित्र स्वर्ण मंदिर श्री हरिमन्दिर साहिब की एतिहासिक कहानी और इसका महत्तव ,देखे वीडियो





    We News 24 Hindi » नई दिल्ली 

    दीपक कुमार की रिपोर्ट 


    नई दिल्ली : अगर आपका वीकेंड तीन से चार दिन लंबा है और आप कई दिनों से कहीं गए नहीं हैं तो ऐसे में अमृतसर आपके लिए सही जगह हो सकती है। अमृतसर पंजाब में बसा वो शहर है जो न सिर्फ अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है बल्कि इसका भारत के इतिहास में भी अपना विशेष स्थान है।अमृतसर का जितना महत्व सिखों के लिए है उतना ही स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से भी  जुड़ा है और फिर बंटवारे  के बाद इसका महत्व और बढ़ गया है। यहां घूमने के लिए कई जगह हैं ,जैसे की स्वर्ण मंदिर,वाघाबॉर्डर,जलियांवाला बाग,अकाल तख्त,दुर्गियाना मंदिर,राम बाग,



    आप कोई जगह  मिस करना नहीं चाहेंगे। इन सभी जगह  घूमने के लिए आपको कम से कम दो दिन तीन दिन तो लेकर आना ही पड़ेगा। तो आइए आज  हम आपको अमृतसर की स्वर्ण मंदिर  लिए चलते हैं इसके महत्तव पढने और जाने  के  बाद आप स्वर्ण मंदिर एक बार जरुर आएंगे।



    पवित्र स्वर्ण मंदिर श्री हरिमन्दिर साहिब सिख समुदाय का सबसे पावन और प्रमुख गुरुद्वारा है जिसे दरबार साहिब या स्वर्ण मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है।पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है. स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और आते हैं। अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु राम दास ने स्वयं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसका नाम स्वर्ण मंदिर है। सिखों के चौथे गुरू रामदास जी ने इसकी नींव रखी थी। कहा जाता है की  गुरुजी ने लाहौर के एक सूफी सन्त मियां मीर से दिसम्बर, 1588 में इस गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी। 



    स्वर्ण मंदिर को कई बार नुकसान पहुचाया गया लेकिन भक्ति और आस्था के कारण सिक्खों ने इसे दोबारा बना दिया। दोबारा इसे 17 वीं सदी में  महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया द्वारा बनाया गया था। जितनी बार इसे नुकसान पहुचाया गया और जितनी बार बना उसकी हर घटना को मंदिर में दर्शाया गया है। अफगा़न हमलावरों ने 19 वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था। तब महाराजा रणजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया था और इसे सोने की परत से सजाया .इस मंदिर में 750 किलो सोने के परत चढ़ी हुयी है .सिखों की धार्मिक ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब यहां दिन में रखा जाता है और रात में उसे अकाल तख्त में रख दिया जाता है। 


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    तक़रीबन 400 साल प्राचीन इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने बनया था। यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। इसकी नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही बनती है। गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे हैं, जो चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) में खुलते हैं।गुरुद्वारे में  हर धर्म के लोग आ सकते है.

    श्री हरिमन्दिर साहिब परिसर में दो बड़े और कई छोटे-छोटे तीर्थस्थल हैं। ये सारे तीर्थस्थल जलाशय के चारों तरफ फैले हुए हैं। इस जलाशय को अमृतसर, अमृत सरोवर और अमृत झील के नाम से जाना जाता है। पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है . हरिमन्दिर साहिब में पूरे दिन गुरबाणी की स्वर लहरियां गूंजती रहती हैं। स्वर्ण मंदिर में रोशनी की सुन्दर व्यवस्था की गई है। मंदिर परिसर में पत्थर का एक स्मारक भी है जो, जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगाया गया है।


    श्री हरिमन्दिर साहि‍ब के चार द्वार में से एक द्वार गुरु राम दास सराय का है। इस सराय में अनेक विश्राम-स्थल हैं। यहां चौबीस घंटे लंगर चलता रहता है, जिसमें किसी घर्म के लोग  प्रसाद ग्रहण कर सकते है ।  अनुमान है कि करीब 40 हजार लोग रोज यहाँ लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। सिर्फ भोजन ही नहीं, यहां श्री गुरु रामदास सराय में गुरुद्वारे में आने वाले लोगों के लिए ठहरने की व्यवस्था भी है। इस सराय का निर्माण सन 1784 में किया गया था। यहां 228 कमरे और 18 बड़े हॉल हैं। यहाँ पर रात गुजारने के लिए गद्दे व चादरें मिल जाती हैं। एक व्यक्ति की तीन दिन तक ठहरने की पूर्ण व्यवस्था है। 


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    निकटवर्ती गुरुद्वारे एवं अन्य दर्शनीय स्थल

    श्री हरिमंदिर साहि‍ब के पास गुरुद्वारा बाबा अटल और गुरुद्वारा माता कौलाँ है। इन दोनों गुरुद्वारों में पैदल पहुंचा जा सकता है। इसके पास ही गुरु का महल नामक स्थान है। स्वर्ण मंदिर के निर्माण के समय गुरु रहते थे। गुरुद्वारा बाबा अटल नौ मंजिला इमारत है। यह अमृतसर शहर की सबसे ऊँची इमारत है। यह गुरुद्वारा गुरु हरगोबिंद सिंह जी के पुत्र की याद में बनवाया गया था, जो केवल नौ वर्ष की उम्र में काल को प्राप्त हुए थे। गुरुद्वारे की दीवारों पर अनेक चित्र बनाए गए हैं। यह चित्र गुरु नानक देव जी की जीवनी और सिक्ख संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। इसके पास माता कौलाँ जी गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा बाबा अटल गुरुद्वारे की अपेक्षा छोटा है। यह हरिमंदिर साहि‍ब के बिल्कुल पास वाली झील में बना हुआ है। यह गुरुद्वारा उस दुखयारी महिला को समर्पित है जिसको गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने यहाँ रहने की अनुमति दी थी।


    इसके पास ही गुरुद्वारा सारागढ़ी साहिब है। यह केसर बाग में स्थित है और आकार में बहुत ही छोटा है। इस गुरुद्वारे को 1902 ई.में ब्रिटिश सरकार ने उन सिक्ख सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया था जो एंग्लो-अफ़गान युद्ध में शहीद हुए थे।


    गुरुद्वारे के आसपास कई अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं। थड़ा साहिब, बेर बाबा बुड्ढा जी, गुरुद्वारा लाची बार, गुरुद्वारा शहीद बंगा बाबा दीप सिंह जैसे छोटे गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के आसपास स्थित हैं। उनकी भी अपनी महत्ता है। नजदीक ही ऐतिहासिक जलियांवाला बाग है, जहां जनरल डायर की क्रूरता की निशानियां मौजूद हैं। वहां जाकर शहीदों की कुर्बानियों की याद ताजा हो जाती है।


    गुरुद्वारे से कुछ ही दूरी पर भारत-पाक सीमा पर स्थित वाघा सीमा एक अन्य महत्वपूर्ण जगह है। यहां भारत और पाकिस्तान की सेनाएं अपने देश का झंडा सुबह फहराने और शाम को उतारने का आयोजन करती हैं। इस मौके पर परेड भी होती है।



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