VIDEO:कोरना काल के बाद खुले माता वैष्णो देवी की प्राचीन गुफा,भक्तों में दौडी खुशी की लहर,जाने मां वैष्णो देवी मंदिर के अलौकिक रहस्य
We News 24 Hindi » नई दिल्ली
दीपक कुमार की रिपोर्ट
नई दिल्ली : माँ वैष्णो देवी के भक्तों का इंतजार खत्म हुआ है. सभी श्रद्धालुओं के लिए प्राचीन गुफा के कपाट खोल दिए हैं. इस खबर के बाद माता के भक्तों में खुशी की लहर है.आपको बताते चले प्राचीन गुफा को तभी खोला जाता है जब श्रद्धालुओं की संख्या कम होता है.अभी केवल 10000 यात्रियों के ही भवन तक जाने की अनुमति है.
आइये आपको वैष्णों देवी यात्रा के जानकारी समबन्धित कुछ बाते बताने जा रहा हु
माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। माँ के दर्शन के लिए दिन रात यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहाँ सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई कर सकते हैं। यदि आप यात्रा पर्ची लेने के 6 घंटे तक चैक पोस्ट पर इंट्री नहीं कराते हैं तो आपकी यात्रा पर्ची रद्द हो जाती है।
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वैष्णो देवी की पवित्र तीर्थ गुफा समुद्र तल से 5 हजार 300 फीट की ऊंचाई और तक़रीबन 13 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है .
पूरी यात्रा में आको जगह-जगह दुकान मिलेगा कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं। मंदिर की चढ़ाई हेतु किराए पर पिट्ठू, पालकी व घोड़े की सुविधा भी उपलब्ध है। ,अगर आप कम समय में माँ के दर्शन करना चाहते है तो 1730 रुपए खर्च कर कटरा से 'साँझीछत' तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं .आजकल अर्धक्वाँरी से भवन तक की चढ़ाई के लिए बैटरी कार भी शुरू की गई है, और भैरव मंदिर के लिए रोपवे की भी सुविधा शुरू हो गयी है .
अब आपको मां वैष्णो देवी मंदिर की कहानी और महिमा के बारे में बताते है
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां वैष्णो देवी जी की प्राचीन गुफा में 33 कोटि देवी देवताओं का वास है माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया।
हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे। दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे. मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं। जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही. सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी. त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे।
श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा. रावण पर श्री राम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र किया इसलिए लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने तब वैष्णवी को वचन दिया कि समस्त संसार मां वैष्णो देवी की गुणगान करगी और त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी .
समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां और उभरीं. ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की।माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण तकरीबन 700 साल पहले श्रीधर पंडित द्वारा हुआ था तब तबसे श्रीधर के वंशज माता की पूजा अर्चना करते आ रहे है .
माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा काफी प्रसिद्ध है .कथा के अनुसार वर्तमान कटरा क़स्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे, जो कि नि:संतान थे। संतान ना होने का दुख उन्हें पल-पल सताता था।
इसलिए एक दिन नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया। अपने भक्त को आशीर्वाद देने के लिए मां वैष्णो भी कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गईं पर मां वैष्णों देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं, “सबको अपने घर भंडारे पर बुलाओ
श्रीधर कुछ दुविधा में पड़ गए। मै गरीब इंसान इतने बड़े गांव को भोजन कैसे करूँगा लेकिन कन्या के आश्वासन पर उसने आसपास के गांवों में भंडारे का न्योता दिया। वापस आते समय रास्ते में श्रीधर ने गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य भैरवनाथ को भी भोजन का निमंत्रण दिया।
श्रीधर के निमंत्रण पर सभी गांव वाले अचंभित थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? लेकिन निमंत्रण के अनुसार सभी एक-एक करके श्रीधर के घर में एकत्रित हुए। तब कन्या के स्वरूप में वहां मौजूद मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।
भोजन परोसते हुए जब वह कन्या बाबा भैरवनाथ के पास गई तो उसने कन्या से वैष्णव खाने की जगह मांस भक्षण और मदिरापान मांगा। कन्या रूपी देवी ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता।
किन्तु भैरवनाथ नहीं माने और कहने लगा कि वह तो मांसाहार भोजन ही खाएगा। लाख मनाने के बाद भी वे ना माने। बाद में जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकडना चाहा, तब मां ने वायु रूप बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं।
भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। जब मां पहाड़ी की एक गुफा के पास पहुंचीं तो उन्होंने हनुमानजी को बुलाया और उनसे कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तप करूंगी, तब तक आप यंहा पहरा दे । तब हनुमानजी ने नौ माह तक गुफा की रखवाली जिसे हम आज इस पवित्र गुफा को ‘अर्धक्वाँरी’ के नाम से जानते है ।
उस दौरान जब हनुमान जी को प्यास लगी तब माता ने धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा’ के नाम से प्रसिद्ध है। जब भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं तो इस जलधारा में स्नान अवश्य करते हैं। जलधारा के जल को अमृत माना जाता है।
कथा के अनुसार हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरवनाथ से युद्ध किया लेकिन जब वे निढाल होने लगे तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 3 कि. मी. दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने देवी से क्षमादान की भीख माँगी। मान्यतानुसार, वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि "मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।" यह मंदिर, वैष्णोदेवी मंदिर के समीप अवस्थित है।
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