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    नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां भारत क्यों नहीं आई वापस नरसिम्हा राव सरकार का खुलासा






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    We News 24» कोलकत्ता 

    रिपोर्टिंग / 

    कोलकता  : तत्कालीन प्रधानमंत्री  पी वी नरसिंह राव की सरकार  1990 के दशक में जापान से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां भारत लाने के कगार पर पहुंच गई थी, लेकिन एक खुफिया रिपोर्ट के बाद ऐसा नहीं करने का निर्णय लिया था. दरअसल, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि इस मुद्दे से जुड़े विवाद के चलते कोलकाता में दंगे हो सकते हैं. बोस के एक करीबी संबंधी ने यह दावा किया.


    महान स्वतंत्रता सेनानी पर अनुसंधानकर्ता एवं लेखक आशीष रे ने सितंबर 1945 से टोक्यो  के बौद्ध मठ रेनकोजी टेम्पल में रखी बोस की अस्थियां वापस लाने की अपील करते हुए कहा कि अस्थियों पर कानूनी अधिकार नेताजी की बेटी अर्थशात्री प्रो. अनीता बोस पफाफ का होना चाहिए तथा भारत सरकार को उन्हें इसे प्राप्त करने की अनुमति देनी चाहिए. अनीता जर्मनी में रहती हैं.


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    क्या बोले आशीष रे

    लेखक रे, बोस द्वारा आजाद हिंद सरकार की स्थापना की 78 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित एक वर्चुअल सेमिनार को बृहस्पतिवार को संबोधित कर रहे थे. इसका आयोजन, हिंद-जापान सामुराई सेंटर ने विदेश मंत्रालय के सहयोग से किया था. लेखक की पुस्तकों में नेताजी की मृत्यु पर ‘लेड टू रेस्ट’ भी शामिल है.

    उन्होंने कहा कि अस्थियों को वापस लाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राव ने एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित की थी, जिसमें प्रणब मुखर्जी भी शामिल थे जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने थे.


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    उन्होंने कहा, ‘हालांकि, खुफिया ब्यूरो (आईबी) ने एक रिपोर्ट के साथ इस मुद्दे पर कोलकाता में संभावित दंगों की चेतावनी दी क्योंकि देश में कई लोगों को इस सिद्धांत पर यकीन है कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताईपे में विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी. पूर्व सांसद एवं हार्वर्ड विश्वविद्यालय में गार्डिनर चेयर ऑफ ओसिएनिक हिस्ट्री मामलों के प्रो. सुगत बोस ने सेमिनार में कहा कि नेताजी की मृत्यु पर निरर्थक विवाद को खत्म करना चाहिए. उन्होंने बोस पर कई शोधपत्र भी लिखे हैं.


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    नेताजी और उनकी अस्थियां एक राष्ट्रीय मुद्दा है

    नेताजी के करीबी संबंधी प्रो. बोस ने कहा कि नेताजी और उनकी अस्थियां एक राष्ट्रीय मुद्दा है तथा यह महज एक पारिवारिक विषय नहीं है. उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि बोस स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के एकमात्र ऐसे नेता थे जिनकी मृत्यु रणभूमि में हुई. उन्होंने बोस की मृत्यु से जुड़े विषय को औपचारिक तौर पर बंद करने की मांग की.

    मोहनदास पाई बोले, नेताजी का दिल्ली में बने स्मारक

    बोस की मृत्यु हो जाने की बात स्वीकार करने की मांग का समर्थन करते हुए मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन के अध्यक्ष एवं इंफोसिस के पूर्व निदेशक टी.वी. मोहनदास पाई ने कहा कि भारत अगले साल बोस की 125वीं जयंती मनाएगा. ऐसे में देश की राजधानी में नेताजी का एक प्रमुख स्मारक बनाना उपयुक्त होगा.


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    उन्होंने दिल्ली में इंडिया गेट के नजदीक एक शिलामंडप में नेताजी की एक प्रतिमा स्थापित करने के लिए देश के सांसदों के बीच सोशल मीडिया और एक लॉबिंग अभियान की मांग की. इंडिया गेट के पूर्व में स्थित इस स्थान पर ब्रिटेन के किंग जार्ज पंचम की प्रतिमा हुए करती थी, जिसे आजादी के बाद हटा दिया गया और तब से यह खाली पड़ा हुआ है.

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