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    महरौली कुतुब मीनार में स्थित लौह स्तंभ में मन्नत पूरी करने की है जादुई शक्ति, जानिए इससे जुड़े रहस्य



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    We News 24» रिपोर्टिंग / दीपक कुमार 

    नई दिल्ली :  भारत प्राचीन काल से ही  कई ऐसे रहस्यों से भरा हुआ है जिसके बारे में अभी भी उन्हें पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। ऐसे कई ऐतिहासिक स्थान और इमारते हैं जिनके बारे में  वैज्ञानिक भी अटकलें लगाते रहे हैं, लेकिन वो भी इनके बारे में कुछ भी साफतौर पर नहीं बता पाए । ऐसे ही एक रहस्यों से भरा  दिल्ली के कुतुब मीनार ग्राउंड के अंदर आज भी एक ऐसा इतिहास छुपा हुआ है जिसके बारे आज तक कोई सही जानकारती नहीं दे पाया । 

    1600 सालों में क्यों जंग नहीं लगा 

    और वो रहस्य है  कीर्ति स्तंभ जिसे 1600 सालों से भी अधिक पुराना है। जिसमे आह तक कोई जंग  नहीं लग पाया इसे तो 1600 सौ सालो में तो धूल मिटटी बन जाना चाहिए था लेकिन आज भी ये शान से खड़ा हैऔर यही बात इसे खास बनाती है और आज भी ये लोगो के के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। अगर इतिहास की बाटे करे तो इस खंबे को लेकर कई बातें और मान्यताएं हैं जिसके बारे में आज हम आपके अपनी लेख में बात करेंगे। 



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    पौराणिक तथ्य 

    इतिहास  की मानें तो ये स्तंभ चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के समय मध्यप्रदेश में बनाया गया था। लेकिन ये कब और कैसे दिल्ली आया ये राज़ तो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।पौराणिक तथ्य के अनुसार इस स्तंभ को विष्णु मंदिर से जोड़कर देखा जाता है। इसे 'विष्णुध्वज' नाम से जाना जाता है जहां विष्णु मंदिर के ध्वज को फहराने के लिए इस स्तंभ का इस्तेमाल किया जाता था। कुछ मान्यता ये भी है  ये  1233AD में दिल्ली आने की बात कही जाती है जब कुतुब कॉम्प्लेक्स को बनवाने की बात की गई थी। इसे किस राजा ने बनवाया था इसको  लेकर अभी भी इतिहासकारों की अलग- राय है, लेकिन फिर भी चंद्रगुप्त के काल से ही इसे जोड़ा जाता है।इसे क्यों बनवाया गया और इसे बनवाते समय ऐसी किस चीज़ का इस्तेमाल हुआ जिससे इसमें अभी तक जंग नहीं लगी ये एक रहस्य है।


    कैसा है इस स्तंभ का डिजाइन 

    ये 6 टन से भी ज्यादा भार का स्तंभ 48cm डायामीटर के साथ बना हुआ है और इसमें 6 लाइन का ब्राह्मी लिपि का मैसेज गढ़ा गया है। हालांकि, इसके ऊपरी हिस्से में गरुड़ देव के चिन्ह बने हुए हैं जो इसे और भी ज्यादा रहस्यमयी बनाते हैं क्योंकि अगर इसे ध्वज के लिए इस्तेमाल किया जाना था तो इसमें ये चिन्ह नहीं होने थे।

     

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    मनोकामना पूरी करने वाला स्तंभ?

    आपने शायद अमिताभ बच्चन और तबू की फिल्म 'चीनी कम' देखी होगी जिसके आखिरी सीन में इसी स्तंभ का जिक्र है और इस स्तंभ में मन्नत पूरी करने की जादुई ताकत है। इस बात पर सालों तक लोग भरोसा करते रहे और जो भी आता वो अपने हाथों को उल्टा कर इस खंभे के डायामीटर से होते हुए हाथों को मिलाने की कोशिश करता। 



    लोग अपनी पीठ को टिकाकर इस खंबे के सहारे खड़े हो जाते और हाथों को उल्टा कर पकड़ने की कोशिश करते। ऐसा माना जाता है कि जो इसे करने में सफल हो गया उसकी एक मन्नत पूरी हो जाएगी।  

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    1997 तक इस खंभे के इर्द-गिर्द फेंसिंग नहीं लगाई गई थी, लेकिन उसके बाद इस खंभे में इस मन्नत पूरी करने वाली प्रथा के कारण डैमेज होने लगा। ऐसे में उसे फेंसिंग के जरिए बंद कर दिया गया।  

     


    क्या है इससे जुड़े वैज्ञानिक तथ्य  ? 

    अभी तक हमने ऐतिहासिक फैक्ट्स और जादुई मिथकों के बारे में बात की तो चलिए अब कुछ साइंटिफिक फैक्ट्स की भी बात कर लेते हैं।  

    पुराने जमाने में लोहे की चीज़ें जब बनाई जाती थीं तब उसमें फॉस्फोरस और चारकोल का मिश्रण भी मिक्स किया जाता था। ये मैग्नीशियम और सल्फर के कंटेंट के साथ ही रहता था और यही कारण है कि लोहे में जंग नहीं लगती थी। दिल्ली के मौसम की बात करें तो दिल्ली का मौसम 70% ह्यूमिडिटी रहित है और यहां पर हवा में नमी कम है। क्योंकि लोहे में हीट अच्छी तरह से एब्जॉर्ब हो जाती है इसलिए जब रात में तापमान गिरता है तब भी ये गर्म रहता है। दिल्ली का मौसम, लोहे की बनावट और मौजूदा हालात इसे जंग लगने से बचाते हैं।   

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