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    यादें 26 साल पुरानी ,सारी जिंदगी कमाते रहे बचपन छुड़ाने को ,ब्याज इतना बढ़ गया की रकम नही जुटा पाए


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     We News 24» रिपोर्टिंग / दीपक कुमार 


          लेखिका,सीमा अग्रवाल 

    नई दिल्ली : घटनाएं घट जाती है पर निशानियां छोड़ जाती है. आज भी आंखे भीग जाती है, जुबां खामोश हो जाती है,दिल सहम जाता है जब यादें टटोलती है .हाथो से वक्त को और वक्त फिसल जाता है .


    लड़किया और लड़कियो का मायका हमेशा साथ रहता है  मरते दम तक क्या करे बचपन वही गिरवी रखा जो रहता है सारी जिंदगी कमाते है की इस बचपन को छुड़ा लायेंगे अपने पास फिर से बुला लेंगे लेकिन जवानी फिर बुढ़ापे तक ब्याज इतना बढ़ जाता है की रकम ही नही जुटा पाते और वो हमेशा के लिए मायके में ही रह जाता है .बहुत याद आती है वो पक्के आंगन के बीच बीच में छोड़ी गई वो कच्ची मिट्टी मां के गीत,सोहर,विदाई गीत भर्राई आवाज में,जो सुनता था वो भी रोने लगता था।

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    यादें 26 साल पुरानी।


    रात बहुत हो चुकी थी उसके पिता खाना खा कर सोने चले गए थे और वो अगले दिन की तैयारी में लगी थी बालो में मेंहदी लगाई थी सुना है कि बाल अच्छे होते है इससे तो,तो उसने सोचा चलो रात भर लगा लेते है सुबह धो लेंगे,और ज्यादा अच्छे हो जाएंगे,,,नए नए सपने आंखों में एक बाद एक आते जा रहे थे और वो मुस्कुराती जा रही थी शर्माती जा रही थी,,,ओह यहाँ ये तो बताना भूल ही गई कि परसो उसकी शादी होने वाली थी और कल, जहाँ से शादी होनी निश्चित हुई थी वहाँ पर कुछ एक रस्म होनी थी गाने बजाने की सभी सहेलियां भी तो आ रही थी,,,

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    4 महीने पहले माँ छोड़ कर चली गई

    अच्छा लो एक बात तो भूल गई शादी उसकी अपने घर से नही हो रही थी,बहुत शौक था उसकी माँ का इस घर से शादी करने का ,जब मकान बन रहा था तो माँ ने पीछे आंगन में बीच कुछ स्थान कच्चा छोड़ रखा था कि जब कभी उसकी शादी होगी  तो वहाँ पर मंडप गाड़ा जाएगा,,लेकिन अब माँ नही रही अभी 4 महीने पहले ही उसे छोड़ कर चली गई थी बाप बेटी अकेले रह गए थे .

    वो किसी से प्रेम करती थी

     पिता जल्द से जल्द उसका विवाह करना चाहते और अपनी जिम्मेवारी से फ़ारिग हो जाना चाहते थे,,वो किसी से प्रेम करती थी और उसी से विवाह भी करना चाहती थी घर वाले सभी विरोध में थे माँ को पता था समझाया भी था लेकिन वो अडिग थी किसी और से विवाह की उसने स्वीकृति नही दी थी लेकिन उसको छोड़ भी नही पा रही थी अजीब असमांसज में थी वो,,माँ बहुत बीमार हो गई उसने रात दिन सेवा की अपनी माँ की कोमा में,पिता की अनुपस्थिति में क्योंकि तब पिता जी देश के बाहर थे काम के सिलसिले में,,,लेकिन माँ उसे छोड़ कर चली गई थी .

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    पिता को बचाने के लिये,,वो गिड़गिड़ाई

     माँ अक्सर उसे सोन चिरैया कह कर पुकारती थी अच्छा लगता है उसे,,,तो अभी सोने की कोशिश कर ही रही थी कि अचानक घर के अंदर के दरवाजे के टूटने की आवाज आती है और कोई उसके सामने रिवाल्वर ले कर उसे मारने की कोशिश करता है अंधेरा बहुत था ठीक से कुछ दिखाई नही दे रहा था नाईट लेँम्प की धुंधली सी रौशनी में जब चेहरा देखा तो वो सन्न रह गई उसका अपना सगा संबंधी ही था जो मारना चाहता था बाप बेटी दोनों को एक साथ,,,पिता एकदम से जूझ पड़े बेटी को बचाने के लिये और वो अपने पिता को बचाने के लिये,,वो गिड़गिड़ाई अपने उस संबंधी से की पिता को छोड़ दे,और पिता चट्टान बना अपनी बेटी को बचाता रहा,,चारो तरफ लहू ही लहू  पसरा था उसी आंगन में जिसमे उसकी माँ ने कच्ची जमीन छोड़ी थी आज वो कच्ची मिट्टी भी लाल हो गई .

     हाथो में हल्दी के जगह खून लग गया 

    इस संहार की गवाह बन गई किसके लिये छोड़ी थी जहाँ हल्दी लगती,जो पीली होती आज वो लाल हो गई ,,उसने गोली मार दी दोनों को ,,लेकिन वो लड़ी, खूब लड़ी कहते है न कि जब आपको मौत दिखती है तो अंदर से एक आत्मशक्ति आ जाती थी,,,वो अपने पिता को बचाते हुये अस्पताल ले आई,,,जहाँ उसे भी नही मालूम था कि वो दोनों बचेंगे भी या नही,पिता को जब होश आया तो जिद कर ली कि बेटी की शादी अभी और इसी परिस्थिति में ही होगी,,,क्योंकि एक लाचार बाप कैसे उसे उन अपनो के बीच छोड़ कर जा सकता था जिसने उसकी जान लेने की कोशिश की,पिता को नही पता था कि वो बचेगा या नही .


    एक बेटी बने या प्रेमिका

     ये उसका आखिरी आदेश था अपनी सोन चिरैया को अपने खूनी बाज़ों से बचाने के लिये,,वो लेकिन राज़ी नही थी जिसके लिये सारी दुनिया को ठुकरा रही थी आज वो "अपने" के लिये अपने प्रेम को ठुकरा रही थी,,,क्या सच मे लडकिया ऐसी ही होती है  शायद ऐसी ही होती है खैर शादी हुई उसकी,बाद में पिता जी नही रहे,,,जीवन चलता रहा,समय करवटे बदलता रहा ,,,,जीवन के छण याद आते रहे जब जब वो मायूस हुई कि ये सब किसके लिये किया,क्यों किया,सही किया,गलत किया,,,एक बेटी बनी या एक प्रेमिका,,शायद लड़की होना ज्यादा अहम है .


    इन सबके बीच जो बहुत पीछे कही छूट गई थी,खो गई थी,हाँ लेकिन आज वो फिर उसी कच्ची मिट्टी को खोदना चाहती है उसे पीले रंग में रंगना चाहती है,,,माँ के वो विदाई गीत रह,रह कर कानों में गुनगुना जाते है जो वो गा नही पाई,वो हल्दी जो वो लगा नही पाई,वो पिता जो डोली में बैठा नही पाया,सर पर हाथ नही रख पाया ,,, वो लड़की जो निर्भीक थी निडर थी जो उड़ना चाहती जो किसी को पाना चाहती थी सपने संजोना चाहती थी ,,,जो वो खो गई है इस एक घटना के बाद से। 

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