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    देर से मिला न्याय भी किसी अन्याय से कम नही होता,7 साल लग गया निर्भया को न्याय मिलने में





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     We News 24» रिपोर्टिंग /दीपक कुमार 



    लेखिका सीमा अग्रवाल 

    नई दिल्ली : अंततः निर्भया के दोषोयो को फांसी मिल ही गई,,,न्याय की प्रक्रिया में इतनी कमियों के बावजूद सत्य की आखिर जीत हुई जो कि सराहनीय है सभी महिलाओं को व महिला अधिकारों के लिये लड़ने वाली संस्थाओं को बहुत बहुत बधाई।

    इस विषय पर लिखने के लिये बहुत हिम्मत जुटाई है मैंने, तब जा कर लिख पा रही हूँ क्योंकि मेरे लिए और मेरे लिए ही क्यों मेरी जैसी कई महिलाओं के लिये इस बहुत ही दुखद असहनीय पीड़ा विदारक घटना के बारे में बोलने के लिए हिम्मत जुटानी पड़ती है अपनी संवेदना को जाहिर करने के लिये शब्दो को चयनियत करना पड़ता है और उन्हें फिर एक सूत्र में पिरोना पड़ता है।


    कहते है कि देर से मिला न्याय भी किसी अन्याय से कम नही होता,,,7 साल लग गया पूरी प्रक्रिया में इन 7 सालो में और कितनी निर्भया मर चुकी है,उनका परिवार मर चुका होगा ये हमे कुछ का पता है और कुछ एक का नही,मैंने जब जब भी निर्भया की माँ की आंखे देखी tv चैनलों पर ,एक लाचारी देखी जो अपनी बेटी के कातिलों को सामने देख कर भी कुछ नही कर पा रही थी कानून ने सही मायने में उस बेबस माँ के हाथ बांध दिए थे।

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    हमारे देश मे रोज कही न कही सड़को पर,गलियों में,चौराहों पर यह तक कि घरो में ऐसी घटनाएं होती आ रही है और हम उन घटनाओं को ही देख पाते है जो मीडिया दिखाती है कितनी घटनाएं तो हमारे सामने आ ही नही पाती,,, एक घटना में बताती हूँ 30 साल पुरानी एक बच्ची लगभग 14 साल की उसके ही घर मे उसके घर के किसी भाई ने उसके साथ बलात्कार किया उसे पता ही नही की उसके साथ क्या हुआ,जब तक घर वालो को पता चलता बहुत देर हो चुकी थी लेकिन उसके बाद जो भी किया गया उस बच्ची के साथ किया गया क्योंकि वो एक लड़की थी समाज की,परिवार की इज्जत तो सिर्फ और सिर्फ उसके ही हाथ मे थी न,लड़के को बस इतनी सजा मिली कि कुछ दिनों के लिए उसे गांव से परिवार से दूर कर दिया गया,,ये क्या है? ऐसी न जाने कितनी बच्चियों के साथ हुआ है कितनो को पता चला,कितने बलात्कारियो को सजा मिली ये सोचनीय प्रश्न है।

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    अब सवाल ये उठता है कि  ये बलात्कार एक सामाजिक,मानसिक या शारीरिक विकृति है ?अगर सामाजिक है तो समाज इसे कैसे स्वीकार करता है इसका विरोध सामाजिक रूप से होना चाहिये।अगर मानसिक है तो परिवार,मित्र या आस पास वालो को जब भी पता चले तो इसको इलाज करवाये,इसे ऐसे खुले में न छोड़े।अगर शारीरिक है तो सबसे पहले उसकी माँ को,उसके परिवार में नजदीकियों को पता चलेगा उनको कैसे क्या करना है ये बताना पड़ेगा इसे आप दूसरों को नुकसान पहुचाने के लिए आप आज़ाद नही छोड़ सकते।


    कुछ कदम नीति निर्माताओं को भी उठाने होंगे,देश के कई ऐसे कानून है जो महिलाओ के साथ भेद करते है लेकिन धर्म और मजहब के नाम पर बदस्तूर जारी है इन सभी कानूनों को खत्म करना चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि लोकतांत्रिक कानून की पहुँच देश के हर नागरिक तक हो,निर्भया के दोषियो को तो फांसी दे दे गई,लेकिन बलात्कार और दरिंदगी के जितने मामले अदालत में लंबित है उनपे क्या तत्काल सुनवाई नही होनी चाहिए?

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    अपने यहाँ ऐसे मामले की संख्या लगभग 1 लाख 17 हजार है।देखा जाए तो न्याय की वास्तविक जीत तब होगी जब इन घटनाओ से गुजरने वाली पीड़िता और उसके परिवार को अदालत के माध्यम से ज्यादा प्रताड़ित न होना पड़े।निर्भया मामले का सुखद पक्ष यह था कि न्याय की मांग करते हुऐ इतनी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए थे फिर भी इसे अंजाम तक पहुँचने में 7 साल से ज्यादा का वक्त लग गया ।ऐसे में यौन हिंसा की शिकार वो गरीब बच्चियों या वंचित तबके की लड़कियों को आखिर कब तक न्याय मिल सकेगा,जिनका मामला आज भी अदालत में लंबित है?क्या ये बहस का विषय नही है कि उन्हें अभी तक इंसाफ क्यों नही मिला?


    ये फांसी उन लोगो के लिये एक सबक है जो इस तरह की दरिंदगी की मानसिकता रखते है,उन्हें अहसास हुआ होगा कि इस तरह के अपराध की कीमत उन्हें अपनी जान दे कर चुकानी होगी।

    इतना होने के बावजूद भी आज भी हमारा समाज महिलाओ की अस्मिता के प्रति संजीदगी नही दिखाता, खास तौर से सार्वजनिक स्थानों पर उनके खिलाफ होने वाली हिंसा इस बात की पुष्टि करती है।

    ये विकृत मानसिकता के लोग ही महिलाओ की आज़ादी व उनके आत्मविश्वाश को पचा नही पाते,किसी भी कीमत पर उनके मन मे भय व असुरक्षा पैदा करते है इनके जैसो के मन मे सिर्फ और सिर्फ कठोर कदम ही नही सामाजिक,आर्थिक और मानसिक तिरिस्कार से ही खौफ पैदा कर सकता है।

    बलात्कारियो के लिये अधिकतम सजा फांसी हो,उम्र कैद हो(जीवन भर),सामाजिक तिरिस्कार हो या सुधार का अन्य रास्ता निकाला जाए,,,ये फांसी इस तरह की बहस की मांग कर रही है।

    धन्यवाद

    सीमा 

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