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    दुनिया से अपनी शर्तों पर बातचीत करेगा भारत, एस. जयशंकर


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     We News 24» रिपोर्टिंग / आइएएनएस

    नई दिल्ली, आइएएनएस। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत अपनी शर्तों पर दुनिया के साथ बातचीत करेगा। देश को इसके लिए किसी की मंजूरी लेने की कोई जरूरत नहीं है। विदेश मंत्री ने रायसीना डायलाग में कहा, हमें इस बात पर भरोसा होना चाहिए कि हम कौन हैं, न कि दुनिया को खुश करने के लिए यह दिखाना है कि वे क्या हैं। यह विचार कि दूसरे हमें परिभाषित करते हैं और हमें अनुमोदन की आवश्यकता है, यह एक ऐसा युग है जिसे हमें पीछे छोड़ने की आवश्यकता है।


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    जयशंकर ने यह भी कहा कि अगले 25 वर्षों में भारत को वैश्वीकरण के अगले चरण में होना चाहिए। 75 साल उम्र के भारत के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, जब हम भारत को 75 साल पर देखते हैं, तो हम न केवल 75 साल पूरे कर चुके हैं, बल्कि 25 साल आगे देख रहे हैं। हमने क्या किया है, हम कहां लड़खड़ाए?


    यूक्रेन में संघर्ष से निपटने का सर्वश्रेष्ठ तरीका लड़ाई रोकना और वार्ता करना

    उन्होंने कहा कि एक अंतर जो हम दिखा सकते हैं, वह यह है कि भारतीयों ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह एक मजबूत लोकतंत्र है। यूक्रेन संकट के बारे में विदेश मंत्री ने दोहराया, इस संकट से निकलने का सबसे अच्छा तरीका लड़ाई को रोकना और बातचीत को आगे बढ़ाना है। जयशंकर ने मंगलवार को कहा था कि जब नियम आधारित व्यवस्था खतरे में थी, और उन्हें ताक पर रख दिया गया था, तब दुनिया के देश कहां थे।

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    यूक्रेन और रूस संघर्ष पर भारत के रुख के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था, जब एशिया में नियम-आधारित व्यवस्था को चुनौती दी जा रही थी, तो हमें यूरोप से सलाह मिली थी, और व्यापार करें। कम से कम हम आपको ऐसी सलाह नहीं दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में जो हुआ वह स्पष्ट रूप से बताता है कि नियम-आधारित व्यवस्था क्या थी।


    चीन का नाम लिए बिना जयशंकर ने यह भी कहा कि एशिया में बीजिंग के आचरण से पैदा हुए सुरक्षा खतरों के प्रति यूरोप असंवेदनशील रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि यूक्रेन, चीन के लिए एक उदाहरण मात्र नहीं है क्योंकि पिछले एक दशक से एशिया में क्या हो रहा है, उस पर यूरोप का ध्यान नहीं है। यूरोप की ओर से बहुत सारे तर्क दिए गए हैं कि यूरोप में जो चीजें हो रही हैं और एशिया को अपने बारे में चिंता करनी चाहिए क्योंकि ये एशिया में भी हो सकती है।


    सोचिए, पिछले 10 वर्षों से ये चीजें एशिया में हो रही हैं, भले ही यूरोप ने इन पर ध्यान नहीं दिया। यह यूरोप के लिए एक वेक-अप काल है कि वह एशिया पर ध्यान देना शुरू करे। यह दुनिया का अस्थिर सीमाओं, आतंकवाद और नियम-आधारित व्यवस्था के लिए निरंतर चुनौतियों वाला हिस्सा है। बाकी दुनिया को यह समझना होगा कि यहां समस्याएं होने वाली नहीं हैं, बल्कि हो रही हैं। 

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