बिहार के सीतामढ़ी में दक्षिण भारत के रामेश्वरम शिवलिंग से भी पुराना है हलेश्वर शिवलिंग, यहीं से शुरू हुई माता सीता के जन्म की कहानी।
We News 24 Digital»रिपोर्टिंग सूत्र / एडिटर एंड चीफ दीपक कुमार
नई दिल्ली : नमस्कार आप देख रहे है वी न्यूज 24 आज हम अपने दर्शको के लिए लेकर आये आये है माता सीता की जन्म से लेकर विवाह तक की एतिहासिक कथा और कहानी हमे लगता है ही भारत सरकार यानि मोदी सरकार जितना श्री राम जन्म भूमि अयोध्याको लेकर सजग दिख रहा है | उतना माता सीता की जन्म भूमि बिहार के सीतामढ़ी को लेकर सजग नहीं दिख रहे है . यह जगह भारत सरकार ,बिहार सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के द्वारा उपेक्षित ही रहा है .
माता सीता किसी को राजनेता या प्रधानमंत्री नहीं बना सकती इसलिए उपेक्षित है ?
राम जन्म भूमि अयोध्या को देश विदेश में जो पहचान मिला उतना माता सीता के जन्म धरती सीतामढ़ी को पहचान नहीं मिल सका | राम का नाम तो लोगो को मंत्री संत्री प्रधान मंत्री तक बना दिया | लेकिन माता सीता के नाम में कोई राजनीती नहीं है कोई विवाद नहीं . इसलिए राजनेता ने सीता माता के जन्म भूमि को उपेक्षित रखा सीता माता ने प्रभु राम को पुरुषोतम राम बनाने में अपना जीवन न्योछावर कर दिया | उसी श्री राम की अर्धागनी माता सीता का उपेक्षा क्यों किया जा रहा है . .
श्री राम को घर मिला तो माता सीता बनवास पर क्यों ?
श्री राम को तो अपना स्थान मिला वंहा भव्य मंदिर बन रहा है तो माता सीता को बनवास क्यों ? क्यों नहीं अयोध्या के तर्ज पर सीतामढ़ी में भी हो विकास कब होगी माता सीता के जन्म धरती का उधार इन्ही सभी बातो को लेकर वी न्यूज 24 आपके सामने सीतामाता से जड़ी जानकारी को ले कर परस्तुत हुआ है हमरी कोशोश है छोटी से छोटी जानकारी देना तो आगे देखिये पंडित ,साधुओं और ज्ञानियों की जुबानी माता सीता की जन्म से लेकर विवाह तक की एतिहासिक कथा और कहानी ,
जो हमने इसे कई भाग में बनया है . पहला भाग जन्म से सम्बन्धित दुसरा भाग है . रजा जनक का दक्षिणी दुर्ग जलेश्वर नाथ महादेव से सम्बन्धित तीसरा भाग है . राजा जनक की राजधानी जनकपुर में सीता स्वयंवर को लेकर चौथा भाग है शिव धनुष पिनाक के टूटने को लेकर पांचवा भाग है | सीता माता के मट्कोर पूजा को लेकर और आखिर में माँ जानकी के विवाह उपरान्त जनकपुर से अयोध्या जाते समय उनकी डोली राखी गयी थी पंथपाकर उसे देखना ना भूले . हमारा दावा है की अभी तक इतना विस्तार से किसी ने कथा कहानी को आपके सामने प्रस्तुत नहीं किया होगा |
माता सीता की जन्म की कहानी
त्रेता युग में लंकापति रावण अपने राज्य के अंदर वन क्षेत्र में तपलीन यानि तप करने वाले ऋषि-मुनियों कर ( टेक्स ) वसूलने का आदेशअपने अनुचरो यानि अपने कर्मचारी को दिया अपने स्वामी का आदेश पाकर अनुचरो ने वन में जाकर तपलीन ऋषि मुनि से कर वसूलना शरू किया कंद-मूल खा कर गुजारा करने वाले ऋषि मुनि के पास मुद्रा पैसा नहीं होने के कारन ऋषि मुनि रावण के अनुचरो को कर के रूप में अपने अपने शरीर से रक्त निकालकर एक घरा ( मटका ) में रख कर ऋषि मुनि रावण के अनुचरो को कर के रूप में प्रदान करते हुए श्राप दे दिया | कि इस धड़ा का मुंह खुलते ही तुम्हारे स्वामी रावण का सर्वनाश हो जाएगा |
तब अनुचर ने उस रक्त से भरा घड़ा को रावण के राज्य सभा में उपस्थित करते हुए ऋषि मुनि के श्राप को कह सुनाया तब रावण शशंकित होते हुए उस घड़ा को अपने राज्य सीमा के क्षेत्र से बाहर राजा जनक के देश मिथिला के अंदर पुण्यारण्य नामक जंगल में गोपनीयता यानि की चोरी छिपे पृथ्वी में गाड़ने का आदेश दिया \
राम चरित्र मानस में वर्णन आया है की:-
शंभू सभा श्रुति वाद मझरा प्रथमहि रहा जनक सन हरा ||
तेहि रिसते तह कुम्भ उठावा दूतन सो सय मर्म बुझावा ||
रावण राजा जनक जी से बुरी तरह पराजित हुआ
एक बार भगवान शिव जी के सभा में वेदांत यानि शास्त्रारार्थ करते हुए रावण राजा जनक जी से बुरी तरह पराजित हो गया था उसके बाद रावण के अन्दर राजा जनक प्रतिशोध लेने की भावना दुष्ट रावण के अंदर धधकने लगा दुष्ट रावण अवसर की ताक में बैठा था उसने देखा कि श्राप युक्त घरा जिस जगह पर रहेगा . उस जगह का विनाश हो जाएगा इसी बात से प्रेरित होकर उसने पुण्यारणय नामक जंगल में जो वर्तमान समय में बिहार के सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है ये जगह नेपाल के नजदीक है उसी जगह पर अपने अनुचरो के द्वारा गुपचुप तरीके से धड़ा को गड़वा दिया
उसके बाद बाग बगीचा मुरझाने लगे उनकी सुंदरता सूरज के प्रचंड किरणों के साथ खत्म होने लगी | लोग मरने लगे | मिथिला वासियों को निरंतर 12 वर्षों तक पानी की एक बूंद के लिए तरसने पड़ा |
राजा जनक का नाम सीरध्वज भी था
उस समय मिथिला में महाराज निमी के वंशज हस्वरोमा के पुत्र सीरध्वज राज कर रहे थे | जिन्हें जनक और विदेही की उपाधि मिली थी |
राम चरित्र मानस में वर्णन आया है कि:-
जासु राज प्रिय प्रजा दुःखारी, सो नृप अवश्य नरक अधिकारी"
अर्थात जिसके राज्य में जनता दुखी रहती है वह राजा अवश्य ही घोर नरक को भोगने वाला होता है | नारकीय यातनाएं प्राप्ति के सिवा उन्हें कुछ हाथ नहीं आता | प्रजा के सुख दुख पर ही राजा का सुख दुःख पर ही राजा का सुख दुःख निर्भर करता है | ऐसे विकट परिस्थिति में राजश्री जनक जी अपने राज के विद्वानों मनीषियों एवं ज्योतिषियों की आपातकालीन सभा बुलाकर भीषण अकाल की विभीषिका से त्राण यानि छुटकारा पाने का उपाय पर विचार विमर्श किया |
पवित्र गीता का कथन है की :-
|| यज्ञात भवति प्रयत्नः पर्यन्या अना संभव:
अर्थात यज्ञ से वर्षा होती है वर्षा से अन्न उत्पन्न होती है |
इन्हीं बातों से प्रभावित होकर सर्वसम्मान निर्णय लिया गया कि जनक जी महाराज को हलेष्ठी यज्ञ करना चाहिए तथा स्वयं उन्हें जमीन में हल जोतना चाहिए | इसके नियमित शोध के आधार पर उपयुक्त स्थान का चयन किया गया इस स्थल का यज्ञ हेतु चयन इसलिए भी किया गया | इस स्थान पर भगवान शिव ने परशुराम जी को शस्त्र विद्या की शिक्षा दिए थे | यह अस्थल आज हलेश्वर स्थान फतेहपुर गिरमसानी के नाम से प्रसिद्ध है |
विष्णु पुराण में अंकित श्लोक से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाराज सिरध्वज ( जनक ) रानी सुनैना सहित 88 हजार ऋषि मुनि के साथ अपने दुर्ग के जलेश्वर नाथ से पश्चिम भाग में तीन योजन के बाद हलेष्ठी अर्थात वर्तमान हलेश्वर स्थान पर पधारे थे .ये भी जगह बिहार के सीतामढ़ी जिला में है जो शहर से मात्र 6 किलोमीटर के दुरी पर स्तिथ है |
"दुर्गात्पशिच्मता भाग योजने त्रित्यात्पर || यज्ञ अस्थल नरेंद्र रथ यात्रा नांगल पद्धतो ||
अर्थात किले का पश्चिमी भाग तीन योजन आगे है |यज्ञ स्थल नरेंद्र रथ यात्रा नंगल के तरीके
योजन वैदिक काल में मापन की इकाई थी
बता दें कि योजन वैदिक काल में मापन की इकाई थी। एक योजन में 12 किलोमीटर होते हैं .यानि की तीन योजन का 36 किलोमिटर है |
भगवान शिव पार्वती स्वयं प्रकट हुए
उसके बाद पूरे विधि विधान से हलेष्ठी यज्ञ इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना किया इस अवसर पर भगवान शिव पार्वती स्वयं प्रकट हुए | इसका प्रमाण यह है विदेह राजा जनक जी ने शिवजी के सभा में शास्त्रार्थ में रावण को पराजित किया था | महर्षि जनक जी स्वर्ण निमित्त हल से जमीन जोतनी आरंभ की तथा हल जोतने के क्रम में बाबा हलेश्वर नाथ के असीम कृपा से यंहा से तक़रीबन 6 कोलोमीटर दक्ष्णि पुनौरा में एक बड़े से घड़े से माता सीता बहार निकली
मां जानकी के साथ धरती से सात सखी सिंहासन भी धरती से प्रकट हुई
आपके जानकारी के लिए बता दू की माता सीता अकेली धरती से नहीं निकली जगत जननी मां जानकी के साथ धरती से सात सखी सिंहासन दीप के साथ और आठवी माता सीता धरती से प्रकट हुई माता सीता को लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है, सात सखी सिंहासन फीर धरती में विलुप्त हो गयी | आखरी में माता जानकी बची उसके बाद आकाश से फूलो वर्षा हुयी राजा जनक ने बच्ची का नाम जानकी दिया तो राजा जनक की पत्नी माता सुनैय्ना ने उनको कीशोरी नाम दिया | माता सीता को जानकी, जनकात्मजा अथवा जनकसुता भी कहते थे। मिथिला की राजकुमारी होने के कारण यें मैथिली नाम से भी प्रसिद्ध है। भूमि में पाये जाने के कारण इन्हे भूमिपुत्री या भूसुताभी कहा जाता है।
लगतार पांच दिन पांच रात मुसलाधार बारिश होता रहा
माता सीता के जन्म के बाद लगतार पांच दिन पांच रात मुसलाधार बारिश हुआ यंहा पर स्थानीय लोगो में थोडा माता सीता को लेकर विवाद है कुछ लोगो का कहना है की माता सीता का जन्म पुनौरा में हुआ कुछ लोगो का कहना है सीतामढ़ी में हुआ तो कुच्छ लोग लहते है पुंडरिक कुंड में हुआ पर बिहार सरकार ने पुनौरा को मान्यता दिया हुआ है सीतामढ़ी का मंदिर को वंहा के महंथ अपने कब्जे में कर रखा है लेकिन सत्य यही है की इन्ही तीन से चार किलोमीटर के अंदर ही माता सीता का जन्म हुआ अब हम लोग फीर से लौटेते है हलेष्ठी यज्ञ की और हलेष्ठी यज्ञ करने के बाद इस लिंग का नाम पड़ा हलेश्वर नाथ
पुराणों के इसके महत्व का वर्णन है | लिंग पुराण में हलेश्वर नाथ की प्राचीन गरिमा को दर्शाया गया है | जिसकी पुष्टि "तिरभुक्ति प्रदेसेतु हलावर्ते हलेश्वर:" नामक श्लोक से होती है |पदम पुराण में "ततो मुज्जावट ना महादेवस्य धीमताम "ऐसा उल्लेख है |इस लिंक को मनोकामना लिंग भी कहा जाता है | जो भक्त अपनी मनोकामना यहां मानते हैं उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है | इसका प्रमाण है महर्षि जनक जी ने प्रजा कल्याण हेतु अकाल से छुटकारा पाने का वरदान मांगा था | इस महादेव के पूजन से वर्षा हुई और मिथिला राज्य को अकाल से मुक्ति मिली तथा जगत जननी मां जानकी धरती से प्रकट हुई |
इस लिंग की पूजा अर्चना कर माता सीता और प्रभु राम अयोध्या वापस गए .
देश विदेश से जो भी मां जानकी जन्म भूमि का दर्शन करने आते हैं | वह अवश्य हलेश्वर नाथ का दर्शन भी करते हैं ये और बात है की ये भी जगह को भी बिहार सरकार द्वारा उपेक्षित रखा गया है | इस महादेव जी का महत्व इसलिए भी अधिक है कि भगवान श्री राम विवाह उपरांत मिथिला की राजधानी जनकपुर से लौटने के क्रम में पहले पथ पाकड़ रुके जिसे सीता डोली के नाम से भी जाना जाता है जो सीतामढ़ी से तक़रीबन 10 किलोमीटर के दुरी पर स्तिथ है . यंहा से चलने के बाद रामजी और माता सीता जी के साथ इस महादेव जी का पूजा अर्चना कर अयोध्या वापस गए .
दक्षिण भारत में अवस्थित रामेश्वरम महादेव मंदिर से भी अति प्राचीन उत्तर भारत का महादेव मंदिर है
यह मंदिर रामायण के प्रसंगों से जुड़े दक्षिण भारत में अवस्थित रामेश्वरम महादेव मंदिर से भी अति प्राचीन उत्तर भारत का महादेव मंदिर है | वस्तुतः में यह ज्योतिर्लिंग ही प्रतीत होता है | यहां बसंत पंचमी महाशिवरात्रि अनंत चतुर्दशी श्रावणी सोमवारी प्रत्येक रविवार तथा अन्य पर्व त्यौहार को अवसर पर लोग जलाभिषेक करते हैं इन अवसरों पर यहां मेला भी लगता है | श्रावण महीना में पवित्र बागमती देवघाट से कांवरिया कावर से जल चढ़ाते हैं |
पुराणों में उल्लेखित लक्ष्मणा नदी यंही है
इस स्थल से पूरब पुराणों में उल्लेखित लक्ष्मणा नदी ( लखनदेई नदी ) से मंदिर तक सुरंग गया था इस सुरंग मार्ग से देवी देवता गन लक्ष्मणा नदी में स्थान कर महादेव जी की पूजा करते थे | वर्तमान समय में बिहार धार्मिक न्यास परिषद पटना से निबंध यह मंदिर उप विकास आयुक्त, सीतामढ़ी की अध्यक्षता में श्री हलेश्वर नाथ महादेव मंदिर न्यास समिति फतेहपुर गिरमसानी सीतामढ़ी द्वारा संचालित है |
माता सीता विवाह
ऋषि विश्वामित्र का यज्ञ राम व लक्ष्मण की रक्षा में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इसके उपरांत महाराज जनक ने सीता स्वयंवर की घोषणा किया और ऋषि विश्वामित्र की उपस्थिति हेतु निमंत्रण भेजा। आश्रम में राम व लक्ष्मण उपस्थित के कारण वे उन्हें भी मिथिपलपुरी साथ ले गये। महाराज जनक ने उपस्थित ऋषिमुनियों के आशिर्वाद से स्वयंवर के लिये शिव धनुष जिसका नाम ( पिनाक ) उठाने के नियम की घोषणा की। सभा में उपस्थित कोइ राजकुमार, राजा व महाराजा धनुष उठानेमें विफल रहे। श्रीरामजी ने धनुष को उठाया और उसका भंग किया। इस तरह सीता का विवाह श्रीरामजी से निश्चय हुआ।
इसी के साथ उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से, मांडवी का भरत से तथा श्रुतकीर्ति का शत्रुघ्न से निश्चय हुआ। कन्यादान के समय राजा जनक ने श्रीरामजी से कहा "हे कौशल्यानंदन राम! ये मेरी पुत्री सीता है। इसका पाणीग्रहण कर अपनी के पत्नी के रूप मे स्वीकर करो। यह सदा तुम्हारे साथ रहेगी।" इस तरह सीता व रामजी का विवाह अत्यंत वैभवपूर्ण संपन्न हुआ। विवाहोपरांत सीता अयोध्या आई .कहते है जबतक माता सीता मिथिला में थी तबतक वो हंसती रही अयोध्या में उन्हें रोना परा लिखावट में कोई त्रुटी हुयी हो तो क्षमा कीजियेगा .
कोई टिप्पणी नहीं
कोमेंट करनेके लिए धन्यवाद