भगवान श्री राम के गुरुदेव महर्षि वशिष्ठ ने गौ माता के बारे में क्या कहा था ?
नई दिल्ली : महर्षि वशिष्ठ, भगवान श्री राम के गुरुदेव, महाराजा सौदास को "गवोपनिषद" (गायों की महिमा का रहस्य प्रकट करने वाला ज्ञान) का वर्णन करते हुए महाभारत में कहते हैं -
हे राजन्! मनुष्य को चाहिये कि प्रातःकाल और शायकाल आचमन (आचमनम हिंदू परंपरा में किसी भी अनुष्ठान का प्रथम हिस्सा है .यह एक शुद्धिकरण अनुष्ठान है जिसे सभी शारीरिक और मानसिक अशुद्धियों को ठीक करने के लिए किया जाता है।) करके इस प्रकार जाप करे – “घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं”। इस प्रकार प्रतिदिन जप करने वाला मनुष्य दिन भर में जो पाप करता है, उससे छुटकारा पा जाता है।
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गौ माता सबसे अधिक पवित्र, जगत् का आधार के साथ-साथ देवताओं की भी माता है। उसकी महिमा अपरम्पार है। उसका सादर स्पर्श करे और माता दाहि ने रख कर ही चले। प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गौ माता सदा मेरे निकट रहे । पुरे संसार में गौ से बढ़ कर दूसरा कोई उत्कृष्ट प्राणी नहीं है। गौ दूध दही घी आदि के द्वारा कोई यज्ञों और पूजा संपन्न नहीं होता, अतः आप ही बताये गौ मातासे श्रेष्ठ दूसरी क्या है ?
गौमाता में सारे देवी देवता का वास है इसलिए उन्हें परमात्मा का स्वरूप मान कर प्रणाम करे जो गौ माता समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं भी मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 80 श्लोक 1,2,3,4,10,13,14,15
1. उपरोक्त "गवोपनिषद" (महर्षि वशिष्ठ द्वारा उल्लिखित) से दैनिक जाप का संस्कृत मंत्र -
घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां प्रतिष्ठितम्।
घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
अर्थात = घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं
2. उपरोक्त "गवोपनिषद" (महर्षि वशिष्ठ द्वारा उल्लिखित) से दैनिक जाप का संस्कृत मंत्र -
सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥
अर्थात = प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें
3. उपरोक्त "गवोपनिषद" (महर्षि वशिष्ठ द्वारा उल्लिखित) से दैनिक जाप का संस्कृत मंत्र -
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
अर्थात = जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
जय गौ माता की
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