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    भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में चीन 20 से अधिक उग्रवादी संगठन को पाल रहा है ,नया मोर्चा खोलने की फिराक में है ड्रेगन



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    We News 24» रिपोर्टिंग सत्यदेव शर्मा सहोड़

    नई दिल्ली : मणिपुर में असम राइफल्स के काफिले पर हुए आतंकी हमले के बाद पूर्वोत्तर में उग्रवादी गुटों की चुनौती को लेकर एजेंसियां एक बार फिर ‘हाई अलर्ट’ पर हैं। सुरक्षा एजेंसियों की ओर से उग्रवादी संगठनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है। माना जा रहा है कि इस समय 20 से अधिक उग्रवादी संगठन पूर्वोत्तर में सक्रिय हैं। पीएलए सहित आधा दर्जन से ज्यादा गुट मणिपुर में भी अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। एजेंसियों को आशंका है कि चीन की मदद से उग्रवादी संगठन नए सिरे से गतिविधि शुरू कर सकते हैं। म्यांमार में कई उग्रवादी गुटों के कैंप हैं, जो पूर्वोत्तर में हिंसा की साजिश रचते हैं। इसके अलावा इनका चीनी कनेक्शन भी काफी मजबूत है।


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    सूत्रों ने कहा कि एजेंसियों को आशंका है कि कुछ संगठनों ने म्यांमार से हटकर दक्षिण चीन के इलाके में ठिकाना बनाया है। मणिपुर में पीएलए का चीन से मजबूत संपर्क है। इसके अलावा कई अन्य गुट भी चीनी सेना के संपर्क में बताए जाते हैं। यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम-इंडिपेंडेंट के प्रमुख ने म्यांमार की सीमा से सटे दक्षिणी चीन के रुइली में नया ठिकाना बनाया था। उग्रवादी संगठन का ऑपरेशनल बेस और प्रशिक्षण शिविर म्यांमार के सागैंग सब-डिवीजन में है।


    नया मोर्चा खोलने की फिराक में बीजिंग

    सूत्रों के मुताबिक पिछले साल अरुणाचल प्रदेश में असम राइफल्स के जवान की हत्या के बाद भी इस तरह की आशंकाएं जाहिर की गई थीं कि चीन सीमा विवाद के बीच पूर्वोत्तर में नया मोर्चा खोलना चाहता है। चीनी सेना पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवादी गुटों को शह दे रही है। अतीत में एनएससीएन-आईएम का लंबे समय तक चीनी प्रांतों के नेताओं से संबंध रहा है। बताया जाता है कि चीन फंडिंग भी करता रहा है।


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    शिलॉन्ग समझौते का उग्रवादियों ने किया विरोध

    वर्ष 1975 में भारत सरकार और नगा नेशनल काउंसिल के बीच शिलॉन्ग समझौते का एसएस खापलांग और थिंगालेंग शिवा जैसे नेताओं ने विरोध किया था, जो तब ‘चाइना रिटर्न गैंग’ कहलाते थे। 1980 में खापलांग और मुइवा ने मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) का गठन किया था। आठ साल बाद 1988 में इसाक मुइवा ने चिशी स्वू के साथ एनएससीएन (आई-एम) गुट का गठन किया, जबकि खापलांग ने अपने गुट को एनएससीएन (के) नाम दिया।

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    हथियार आपूर्ति से लेकर सुरक्षित ठिकाने दे रहा चीन

    सूत्रों का कहना है कि अब उग्रवादी गुटों की स्थिति में काफी बदलाव आया है। वे पहले जैसे खतरनाक नहीं रह गए हैं। हालांकि, सुरक्षा एजेंसिया नई चुनौतियों के मद्देनजर कोई भी खतरा मोल नहीं लेना चाहतीं। सूत्रों के अनुसार खुफिया एजेंसियों को पहले भी कई मौकों पर जानकारी मिली थी कि म्यांमार सीमा पर हथियारबंद उग्रवादी गुटों को चीनी सेना से मदद मिल रही है। वह उन्हें हथियारों की आपूर्ति करने के साथ ही उनके लड़ाकों को ठिकाना प्रदान कर रही है। हालांकि, चीन इससे इनकार करता आया है।



    चार वांछित विद्रोही नेताओं ने कुनमिंग में लिया प्रशिक्षण

    म्यांमार में यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी और अराकान आर्मी जैसे सशस्त्र समूहों के जरिये उग्रवादी संगठनों को मदद पहुंचाई जा रही है। इन समूहों को इस साल आतंकवादी संगठन घोषित किया गया था। सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सबसे वांछित विद्रोही नेताओं में से कम से कम चार ट्रेनिंग और हथियारों के लिए पिछले साल मध्य अक्तूबर में चीनी शहर कुनमिंग में गए थे। ये भी सूचना है कि भारत-म्यांमार सीमा से सटे क्षेत्र में अलग मातृभूमि के लिए लड़ने वाले तीन जातीय नगा विद्रोहियों ने सेवानिवृत्त व वर्तमान चीनी सैन्य अधिकारियों के साथ-साथ कुछ अन्य बिचौलियों से मुलाकात की थी। 

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