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    क्या आप मध्यकालीन मखदूम शाह दौलत के मकबरे का इतिहास जानते हैं जो मनेरी में स्थित है

     



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    We News 24» रिपोर्टिंग / दीपक कुमार

    पटना : जिले मनेर में स्थित है चार सौ साल पुराना दो दरगाह हैं, एक बड़ी और एक छोटी दरगाह । बड़ी दरगाह में महान सूफी संत हजरत मखदूम यहिया मनेरी की कब्र है। मखदूम साह की की मृत्यु  सन् 1291 ई. में हुआ था वो  हजरत ताज फकीह के पोते थे। बड़ी दरगाह के दक्षिण में ताजुद्दीन खंडगाह साहब की मजार है। वे महमूद गजनी के भतीजे थे। दरगाह के उत्तरी फाटक मध्यकालीन मूर्ति है एक सिंह एक हाथी को अपने चारों पंजों से दबोचे हुए है और इसे सिंह शार्दूल कहते है ।कहा जाता है कि सुलतान सिकंदर लोदी भी किसी समय इस दरगाह का दर्शन करने आए थे। 


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    छोटी दरगाह में शाह दौलत का मकबरा है। शाह दौलत हजरत शाह यहिया के वंसज थे। यह इमारत बड़ी खूबसूरत है। पूरी दरगाह चुनार के सुंदर पत्थर से बनी है। यह बिहार के मकबरों में इसका अलग स्थान है ।यह  दरगाह एक चौकोर ऊंचे चबूतरे पर बनी है। इसका कमरा गोल है और चारों तरफ बरामदा है।  


    बरामदे की ऊंची छत में बड़ी कारीगरी से फूल-पत्ती बनी हई  हैं और कुरान शरीफ की आयतें भी बड़ी सुंदर तरीके से लिखी गई हैं। पत्थर की इन नक्काशियों की तुलना आप प्रसिद्ध फतेहपुर सीकरी की उत्तम से उत्तम नक्काशियों से कर सकते है  है। दरगाह के भीतर दोनों तरफ पत्थर के ऊंचे-ऊंचे खंभे हैं। उनके बीच में एक पतली दीवार है और उस पर बड़ी शानदार खड़ी कारनिस बनी हुई है। पांत में ताखे भी बने हुए हैं जिनके मेहराब में पत्थर की ही जालियां हैं जो मन मुग्ध कर देती हैं। 


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    मखदूम शाह दौलत की कब्र बीच में है, उसके पूरब की ओर उनकी बीवी की है। बादशाह जहांगीर के समय में इब्राहिम खां फतेहजंग बिहार और बंगाल का सूबेदार था। उसी ने इस दरगाह को बनवाया था। मखदूम शाह की कब्र के पांव के नीचे की ओर उसकी कब्र है।



    दरगाह के अहाते में ही पश्चिम की तरफ एक मस्जिद है जिसमें गुंबद नहीं है लेकिन उस पर एक लंबी मेहराबदार छत है जो सन् 1619 में बनी थी। दक्षिणी कोने पर जमीन के अंदर कोठरी है। कहा जाता है कि हजरत मखदूम शाह दौलत इसमें बैठकर खुदा का ध्यान करते थे। दरगाह के उत्तर में जो दरवाजा है, वह उसी धज के जैसा है मुगलकाल के आरंभ में बनता था। उसकी छत गुम्बदनुमा है और उसके किनारे पर ऊंची मीनारें हैं। दरवाजे के दोनों तरफ अठपहली मोटी मीनारें हैं जिनमें छत पर जाने के लिए सीढिय़ां बनी हुई हैं। दरवाजा और मीनारों के आगे की ओर जालीदार खिड़कियां और मुम्बजदार सोफे बने हुए हैं जिनसे इसकी शोभा में चार चाँद लगा देता है .

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    दरगाह के दक्षिण में एक तालाब है जो पांच एकड़ में है। इसमें पानी उत्तर-पश्चिम के कोने में सुंरग से आता था लेकिन अब सोन नदी दूर होने के कारण अब  सुरंग की राह से पानी बरसात में आता है। मिर्जा गयास बेग का बेटा इब्राहिम खां फतेहजंग, ने दरगाह बनवाई थी वह पहले गुजरात में बख्शी बाहाल हुआ था।  और वो  मखदूम साहब का चेला हो गया था। बाद में वो बिहार और बंगाल का सूबेदार हुआ और  1622 तक रहा। शहजादा खुर्रम के साथ लड़ते-लड़ते वह मारा गया। दरगाह में फारसी अक्षरों में जो शिलालेख है, उसके अनुसार उक्त संत का देहांत सन् 1600 ई. में हुआ था। 


    मनेर शरीफ धर्म के नेताओं की कब्रों से भरा पड़ा है। छोटी दरगाह से पश्चिम मखदूम शाह बारन मलिकुल उलमा की कब्र है। ये हजरत शेरशाह सूरी के पीर थे। ढाई कंगूरे की मस्जिद के पास हजरत मोमिन आरिफ की भी कब्र है और वदखन के तंगूर किलो खां की कब्र भी पास में ही है। मनेर के राजा के राजमहल की मर्दाना बैठक पत्थर के चालीस पायों और एक ही पत्थर की छत का दालान थी। 


    राजा को परास्त करने के बाद हजरत ताज फकीह ने वहीं आराम किया था। कहा जाता है कि राजा के राजमहल के एक दालान में हजरत मखदूम यहिया पैदा हुए थे। वहां एक अनोखी चौकी थी जो काठ के एक ही टुकड़े से बनी थी। इसी चौकी पर बैठकर हजरत मखदूम शरफुद्दीन की मां इबादत किया करती थी। आगे देखे यंहा का खुबसूरत नजारा .

    यंहा देखे वीडियो -



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