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    दिल्ली के मेहरौली में महिला टोली ने हर्षो उल्लास के साथ मनाया फूलदेई त्योहार




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     We News 24» रिपोर्टिंग / दीपक कुमार 


     नई दिल्ली : बीते  रविवार से शुरू हो गया फूलदेई का त्योहार यह त्यौहार उत्तराखंडी समाज के लिए विशेष पारं परिक महत्व रखता है। चैत की संक्रांति यानि फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने घरों की देहरी पर फूल डाले जाते हैं। इसी को गढ़वाल में फूल संग्राद और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है। जबकि, फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहते हैं। इस खास मौके पर फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार... जैसे लोक गीत सुनने को मिलते हैं।



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    सोमवार  को इसी क्रम में सोमवार को मेहरौली  स्थित समसी तलाब जहाज महल MCD पार्क में महिला टोली ने हर्षोल्लास के साथ  फूलदेई  त्यौहार  मनाने के लिए पहुंचे। इस मौके पर महिलाओ ने फूलदेई के गीत और मंगल गीत गाये। इस कार्यक्रम में महिलाओ के अलावा पुरुष की भी सहभागी रही समाजसेवी योगश्वर  सिंह विष्ट   ने भी बच्चों के साथ प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोक पर्व फूलदेई मनाया। इस दौरान योगश्वर  सिंह विष्ट ने भगवान से कामना की कि वसंत ऋतु का यह पर्व सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली लाए. 



    वंहा उपस्थित महिलाओ ने फूलदेई त्यौहार के बारे में बतया की सर्दी और गर्मी के बीच के खूबसूरत मौसम में मनाए जाने वाले फूलदेई त्योहार में मुस्कुराते बच्चे फ्यंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल घर की देहरी पर सजाते हैं। फूलदेई उत्तराखंड का विशेष लोक पर्व है। 



    चैत में पुरे उतराखंड  में फूलों की चादर बिछी रहती है। बच्चे टोकरी में खेतों से फूल लेकर आते हैं और सुबह-सुबह घरों की देहरी पर रख जाते हैं। ऐसी मान्यता  है  कि घर की देहरी यानि दरवाजा पर फूल रखने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। 



    यह पर्व पूरे पर्वतीय अंचलों में धूमधाम से मनाया जाता है, जो हमारे दिनचर्या, ऋतुओं और उसके वैज्ञानिक पक्ष से जुड़ा है। हमारा भी मानना हा की  किसी भी समाज के विकास के लिए वहां के रीति रिवाज और लोकपर्वों का भी विशेष योगदान होता है।


    समय के साथ भले ही हमारी जीवन शैली में बदल जय  किंतु हमारे अपने पर्व और त्यौहार  हमें अपने अतीत से जोड़ते हैं और हमें अपने महान संस्कृति का बोध भी कराते हैं। 



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