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    भारत का ये गाँव जंहा खेलने कूदने की उम्र में लड़कीयां बन रही माँ



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    We News 24 Digital»रिपोर्टिंग सूत्र  / राजेश मीना

    सिरोही: राजस्थान के उन आदिवासी क्षेत्रों की,की बात है  जहां  जंहा खेलने कूदने की उम्र में लड़कीयां बन रही माँ ही हां आपने सही चुना 13 साल की उम्र में बच्चियां पसंद का पार्टनर चुन कर 15-16 साल की उम्र में मां बन रही हैं। खेलने-कूदने की उम्र में अपनी गोदी में बच्चा खिला रहीं ये बेटियां उस खतरे से अनजान हैं, जो उन्हें मौत भी दे सकता है। इन इलाकों में सैकड़ों बच्चियों की अर्ली चाइल्ड प्रेग्नेंसी के चलते डिलीवरी के दौरान मौत हो चुकी है, लेकिन शिक्षा, जागरूकता से कोसों दूर ये बच्चियां पुरानी परंपराओं को ही किस्मत मान बैठी हैं।

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    ये खुलासा दैनिक  भास्कर अखबार के रिपोर्टर से सामने आई है सिरोही जिले से सटे दर्जन भर गांवों का सच सामने आया है जन्हा एक तरफ भारत अपने आजादी के अमृत महोत्सव मना रहा है तो दूसरी तरफ आधुनिक युग के  सभ्य समाज के साथ-साथ शासन-प्रशासन के और राजस्थान सरकार के लिए भी बेहद शर्मनाक बात है ।


    हम सबसे पहले सिरोही जिले की पिंडवाड़ा तहसील से लगते ट्राइबल बेल्ट गांव रानीदरा पहुंचे। झोपड़ीनुमा आधे कच्चे मकान के बाहर खड़ी एक बच्ची गोद में छोटा सा बच्चा लेकर उसे खिला रही थी। आसपास 5-7 साल के कुछ दूसरे बच्चे भी खेल रहे थे। हमने गाड़ी रोकी और मकान के बाहर बनाई कांटों की बाड़ को खोलकर अंदर गए। हमें देखते ही मासूम बच्ची वहां से पीछे खेतों की तरफ भागी।


    हम उसे आवाज देकर बुला ही रहे थे कि तभी उस घर से अधेड़ उम्र का आदमी आया। उसने हमारा पूरा परिचय लिया और बताया कि जो खेतों की तरफ भागी वह उसके बेटे की बहु महकन (बदला हुआ नाम) है। उसकी गोद में खेलने वाला 8 महीने का बच्चा उसका पोता है। हमारे आग्रह पर अधेड़ ने महकन को आवाज देकर बुलवाया।


    तब बातचीत में महकन ने बताया कि उसकी परंपरागत तरीके से शादी नहीं हुई, उसे मुकेश (17) बहुत पसंद था। बस तभी से दोनों ने अपनी मर्जी से साथ रहना शुरू किया। दोनों की मुलाकात एक मेले में करीब सवा साल पहले हुई थी। अब उनका 8 महीने का बच्चा है। मुकेश आस-पास की माइंस में पत्थर गढ़ाई का काम करता है। स्कूल का पूछने पर महकन ने कहा कि आज तक उसने खुद भी किसी को स्कूल जाते नहीं देखा। स्कूल का नाम जरूर सुना है। हम कैमरे पर सवाल करते, इससे पहले महकन वहां से चली गई।


    एक और चौंकाने वाला तथ्य हमारे सामने आया। एक बुजुर्ग ने बताया कि 70-80 घरों वाले इस रानीदरा गांव में महज 8-10 पुरुष ही जिंदा बचे हैं। अधिकतर महिलाएं विधवा हो चुकी हैं। यहां पत्थरों से जुड़ा काम करने के कारण अधिकतर पुरुषों की सिलिकोसिस बीमारी से मौत हो चुकी है। 


    रानीदरा से ही हमने गांव लोटाना का रूट पकड़ा। जो करीब 6 किलोमीटर दूरी पर था। यहां भी लगभग पूरी आबादी ट्राइबल्स की ही बसती है। इस गांव की उपसरपंच भी एक महिला है। छोटी बच्चियों के मां बनने को लेकर हमारा सबसे पहला सवाल उन्हीं से था, लेकिन ताज्जुब ये हुआ कि सवाल सुनते ही महिला वह हंसने लगीं। बात करने से भी इनकार कर दिया।


    हम मुख्य सड़क पर खड़े थे कि तभी एक बाइक पर एक लड़का-लड़की जाते दिखे। पीछे बैठी किशोरी की गोद में छोटा बच्चा था। इशारा करने पर उन्होंने बाइक रोकी। दोनों पिंडवाड़ा बाजार से सब्जी खरीदकर लौट रहे थे। सानिया (बदला हुआ नाम) ने बताया कि 14 साल की थी, तब उसकी शादी 20 साल के समतेज (बदला हुआ नाम) के साथ हो गई थी। इसके डेढ़ साल बाद वो मां बन गई। प्रेग्नेंसी के टाइम उसे काफी दिकक्तों का सामना करना पड़ा था, अभी भी कई बार तबीयत खराब हो जाती है। अब उसका बेटा तेजवीर डेढ़ साल का हो चुका है।


    5 महीने की प्रेग्नेंट 16 साल की बेटी, 15 साल की बहु को 4 महीने का बेटा

    लोटाना गांव में घूमते-घूमते हम एक घर के बाहर पहुंचे। अंदर देखा तो वहां एक बच्ची पालने में छोटे बच्चे को झूला दे रही थी। हमें देखकर उसने घूंघट निकाल लिया। पास में बने चौबारे में कुछ महिलाएं बैठी थीं। बातचीत में घर की एक महिला ने बताया कि उनकी बेटी मैना (बदला हुआ नाम) की उम्र 16 साल है। अभी उसका लाड़ प्यार चल रहा है, क्योंकि वह मां बनने वाली है। पालने में बच्चे को झूला दे रही बच्ची घर की बहु रेवती (बदला हुआ नाम) है।


    मैना ने हमें बताया, 'उसकी ननद रेवती की उम्र 14 साल है। भाई 19 साल का है और दोनों के बीच रिलेशन करीब डेढ़ साल पहले हुआ था। फिर मंदिर में दोनों ने शादी कर ली। रेवती 4 महीने पहले ही मां बनी है। मैना ने बताया कि वो खुद 5 महीने की प्रेग्नेंट है।'



    वो परंपरा जिसे किस्मत मान बैठी हैं बच्चियां

    आदिवासी बेल्ट में सैकड़ों सालों से ये परंपरा रही है, बच्चे अपनी पसंद से पार्टनर चुनकर लिव इन में रहने लगते हैं। यहां सात फेरों वाली शादी या फंक्शन करना जरूरी नहीं है। साल भर में आदिवासी समाज के 4-5 स्नेह मिलन कार्यक्रम होते हैं। इन कार्यक्रमों में आदिवासी समाज के बच्चों और बच्चियों को हर प्रकार के बंधन और सख्ती से दूर हर तरह की छूट दी जाती है। कई रात-दिन कार्यक्रम में साथ बिताने के बाद ये अपना हमसफर चुन लेते हैं। इसके बाद लिव इन में रहना शुरू कर देते हैं। रिलेशनशिप को लेकर घर-समाज में भी कोई ऑब्जेक्शन नहीं होता। ऐसे में फिजिकल अट्रैक्शन से बने संबंधों के कारण 13 साल की उम्र में ही कई बच्चियां प्रेग्नेंट हो जाती हैं। घर वाले भी निश्चिंत होते हैं, उनकी बेटी समाज में ही परिवार बसा कर सेटल हो गई।



    अर्ली चाइल्ड प्रेगनेंसी सबसे बड़ी समस्या

    लड़की की उम्र 18 और लड़का 21 साल का हो तो कानूनी तरीके से भी लिव-इन में रह सकते हैं, लेकिन ट्राइबल बेल्ट में अर्ली चाइल्ड प्रेग्नेंसी और इससे जुड़े कॉम्पलिकेशन की समस्या लगातार बढ़ रही है। महिला रोग विशेषज्ञ नीलम बाफना के अनुसार एक महिला को गर्भधारण की सही उम्र 20 साल या इससे अधिक ठीक रहती है, लेकिन किशोरावस्था में गर्भधारण मां और बच्चे दोनों के लिए घातक है।


    सीतामढ़ी जिले में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया

    भास्कर ने जब लोगों से यहां बच्चियों में जल्द मां बनने से मेडिकल इमरजेंसी वाली बात की, तो पूर्व सरपंच रतन लाल गरासिया ने बताया कि यहां समाज में अस्पताल ले जाने के बजाय दाइयों का ही चलन है। इनके घर अभी भी कच्चे हैं, अधिकतर नाबालिग लड़के स्कूल जाने के बजाय शुरू से ही पत्थर गढ़ाई का काम करने लगते हैं। उन्हें भी ये नहीं सूझता कि पत्नी या साथ रह रही युवती की तबीयत बिगड़ गई तो अस्पताल ले जाएं। ऐसे में अधिकतर केस अनरजिस्टर्ड ही हैं।


    इसलिए मदद नहीं कर पाते कानून या सरकार

    पूर्व सीडब्ल्यूसी सदस्य बीके गुप्ता के अनुसार चाइल्ड मैरिज एक्ट और पॉक्सो के प्रावधान तभी लागू होते हैं, जब कोई शिकायत प्रशासन या पुलिस तक पहुंचे या फिर पुलिस या प्रशासन की नॉलेज में कोई मामला आ जाए। जब शिकायत नहीं होती, तो सरकारी सहायता भी ऐसी बच्चियों को नहीं मिल पाती। उनके अनुसार इन बच्चियों और उनके पेरेंट्स पढ़े लिखे नहीं होते और वे परंपरा के नाम पर अपने बच्चों को साथ रहने की अनुमति देते हैं। फिर चाहे शादी हो या बिना शादी साथ रहें। खुद 13 से 15 साल की उम्र में ही साथ रहने बच्चे भी स्कूल नहीं जाते। ऐसे में अर्ली चाइल्ड प्रेग्नेंसी के नुकसान का इन्हें पता ही नहीं है। आदिवासी नेता रतन लाल गासिया ने बताया कि कम उम्र में मां बनी इन बच्चियों को लेकर सरकार के पास कोई जानकारी ही नहीं है, जबकि सिरोही जिले के ट्राइबल बेल्ट में ऐसी हजारों बच्चियां हैं। कम उम्र में प्रेग्नेंट हो जाने के चलते इन बच्चियों को कमजोरी, खून की कमी, कुपोषण और कई सेक्सुअल बीमारियों का सामना करना पड़ता है। कई बार इन बच्चियों की डिलीवरी की दौरान जान तक भी चली जाती है।

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