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    क्या नीतीश कुमार के शराबबंदी की जिद से बिहार में मर रहे हैं बिहारी ? देखे रिपोर्ट

    क्या नीतीश कुमार के शराबबंदी की जिद से बिहार में मर रहे हैं बिहारी ? देखे रिपोर्ट


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    We News 24 Digital»रिपोर्टिंग सूत्र  दीपक कुमार  

    नई दिल्ली : बिहार में शराबबंदी कानून पुर्णतः फेल होता जा रहा है  .यह कानून भस्मासुर के जैसे लोगो को भस्म करता जा रहा है .बिहार के कई जिलो में लोग जहरीली शराब के वजह से अपनी जान और आंख गँवा बैठे है . किसी भी देश और राज्य का  कानून और नियम अपनी जनता के भलाई और सुरक्षा के लिए बनाया जाता है . परन्तु  बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने एक ऐसा कानून बना दिया जिससे सूबे की जनता अपनी जान से हाथ धो रहे है . शराब बंदी कानून को अपनी कामयाबी मान रहे है .जबकि इसके उलट नितीश कुमार और उनकी पार्टी बिहार में अपना जनाधार भी खो रहे है .उसके वावजूद नितीश कुमार अपने जिद पर अड़े हुए है .इसके वजह से नितीश सरकार के सहयोगी से लेकर विरोधी तक इस कानून का विरोध कर रहे है .इसको लेकर विधानसभा में भी हंगामा हुआ और नितीश कुमार अपना आप खो दिए और तू तराक करने लगे  .

    दिया।



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    नितीश कुमार का सहयोगी से लेकर विरोधी कर रहे है विरोध 

      पूर्व मंत्री आरसीपी सिंह ने भी विरोध जताते हुए कहा की बिहार के मुख्यमंत्री को शराबबंदी खत्म कर देना चाहिए। शराबबंदी की वजह से राजस्व का भी काफी नुकसान हो रहा है लेकिन नीतीश कुमार अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। शराबबंदी की वजह से बिहार के पर्यटन पर भी असर हो रहा है।जो लोग वाराणसी झारखंड से बिहार आ रहे हैं वह नाइट हाल्ट नहीं करते हैं। वह वापस अपने राज्य लौट जाते हैं। 


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    आरसीपी सिंह के अलावा बिहार की सरकार में शामिल कांग्रेस और हम ने भी शराबबंदी को लेकर सवाल खड़े किए हैं। हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने शराबबंदी को लेकर कई बार मांग उठाई है मांझी के साथ-साथ जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी बिहार में शराबबंदी को विफल बताया है। लेकिन  शराबबंदी को लेकर  नितीश सरकार वाही पुराना राग अलाप रहे है . कि शराबबंदी की वजह से बिहार में अपराध में कमी आई है। लेकिन बिहार की हालत देख कर लगता है की  शराबबंदी से बिहार में अपराध में कमी आई है ?



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    शराब की वजह से आए दिन मारपीट होते रहते थे उसमें काफी कमी आई है। बिहार की महिलाएं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रही हैं। शराबबंदी की वजह से महिलाओं पर घरेलू अत्याचार में भी कमी आई है। जिस समय शराब चालू था उन दिनों बहुत से घरों में शराब की वजह से कलह बढ़ गया था। आए दिन घरों में मारपीट की घटनाएं हो रही थी। जिस पर अंकुश लगा है सरकार का दावा है कि शराबबंदी पूरी तरह से सफल है।वहीं विपक्ष का कहना है कि यदि बिहार में पूर्ण रूप से शराब बंदी है तो कैसे शराब बिक रही है और आए दिन बड़ी मात्रा में शराब की जब्ती हो रही है।


    सारण जिले की घटना सामने आने के बाद जन अधिकार पार्टी यानी जाप के प्रमुख पप्पू यादव ने सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधा है. पप्पू यादव ने कहा, "सीएम नीतीश कुमार को शराबबंदी की जिद छोड़ देनी चाहिए." 


    पप्पू यादव ने आगे कहा, "किसी भी पॉलिसी में समय-समय पर बदलाव होता रहता है. नीतीश जी का प्रयास गलत नहीं है, लेकिन महात्मा गांधी पूरे देश में हैं, सिर्फ बिहार में नहीं हैं. जहरीली शराब से सबसे ज्यादा प्रताड़ित दलित हो रहे हैं.''साल 2016 में राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई. लेकिन तब से मादक पदार्थों की मांग बढ़ती देखी गई है

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    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ये कहते रहे हैं कि जीविका दीदियों की मांग पर शराबबंदी का फ़ैसला लिया गया. पूर्ण शराबबंदी के बाद बिहार सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में 'बिहार में मद्दनिषेध का प्रभाव' नाम से एक अध्ययन आया था. ये अध्ययन शराबबंदी लागू होने के 6 माह बाद किया गया था. 


    महिलाओं ने शराब बंदी की मांग अपने गांव में खुली शराब की भठ्ठी को लेकर की थी. जो अब तक बंद नहीं हुई है. शराबबंदी से पहले महिलाएं सामूहिक रूप से जाकर भठ्ठी तोड़ती थीं लेकिन अब तो स्थानीय पुलिस प्रशासन की मिलीभगत के चलते वो भी संभव नहीं रहा. क्योंकि महिलाएं ये भठ्ठी तोड़ेंगी तो सरकार का पूरा अभियान सवाल में आ जाएगा."

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    शराब से बिहार सरकार को मिलने वाले राजस्व की बात करें तो राज्य उत्पाद शुल्क उन पांच करों (बिक्री कर, स्टैम्प एवं निबंधन शुल्क, राज्य उत्पाद शुल्क, माल एवं यात्री कर और वाहन कर) में से एक था जिनसे बिहार की अर्थव्यवस्था को 93 फ़ीसद टैक्स की प्राप्ति होती थी. नीतीश सरकार जब साल 2005 में सत्ता में आई तो उन्होंने सरकार की शराब नीति को उदार किया. इसके नतीजे में जहां सरकार के राजस्व में बेहताशा वद्धि दर्ज हुई .

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    साफ़ है कि बिहार के राजस्व को नुकसान हुआ. और ये नुकसान दूसरे राज्यों (ख़ासतौर पर पड़ोसी राज्यों के लिए) मुनाफ़ा साबित हुआ. इसी साल जुलाई में अंग्रेज़ी अख़बार 'द टेलीग्राफ़' में 'कोडरमा इज़ बिहार गोवा पोस्ट2015 अल्कोहल बैन' छपी है. यानी झारखंड का कोडरमा जो कभी माइका (खनिज) के लिए प्रसिद्ध था वो शराबबंदी के बाद बिहार के लिए 'गोवा' बन गया है.


    बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने 1977 में शराबबंदी लागू की थी, लेकिन ये पाबंदी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी थी. कर्पूरी ठाकुर की विरासत का दावा करने वाले नीतीश कुमार फिलहाल इस क़ानून को लेकर मुश्किल में हैं.

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