आइये जानते है हर साल ३ मई को क्यों मनया जाता है वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे ,जानें 3 मई का इतिहास
We News 24 Hindi » नई दिल्ली
ब्यूरो चीफ दीपक कुमार
नई दिल्ली :इस बात में दो राय नहीं है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की तरह ही मीडिया भी लोकतंत्र का एक स्तंभ है. लोकतंत्र की इमारत तभी मजबूत होगी जब इसके चारों खंभे अपनी जगह पर बने रहेंगे, और सीधे खड़े रहेंगे. अगर कोई भी खंभा किसी दूसरे खंभे से अपनी नजदीकियां बढ़ाएगा या किसी ओर झुक जाएगा, तो उनका आपसी संतुलन बिगड़ने लगेगा, और लोकतंत्र की इमारत कमजोर हो जाएगी. आज 3 मई यानी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे है, तो आज हम लोकतंत्र के चौथे खंभे यानी खुद की खबर लेंगे. लेकिन पहले बात करते हैं वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे की.
3 मई 1991 के दिन अफ्रीका के कुछ पत्रकारों ने प्रेस की आज़ादी का मुद्दा उठाया और इस मुद्दे पर एक बयान जारी किया. इसे 'डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक' नाम दिया गया. संयुक्त राष्ट्र ने इस आइडिया को खूब तवज्जो दी और इस घटना के ठीक 2 साल बाद 3 मई 1993 को पहला विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस आयोजित किया.
हर साल इस दिवस की नई थीम होती है. इस बार की थीम है - 'लोकतंत्र के लिए मीडिया : फ़र्ज़ी खबरों और सूचनाओं के दौर में पत्रकारिता एवं चुनाव'. इस बार इस दिवस का आयोजन इथोपिया में हो रहा है. ये तो हुई प्रेस स्वतंत्रता दिवस की बात, अब बात करते हैं प्रेस की स्वतंत्रता और इसकी सीमाओं की. दुनियाभर का मीडिया चाहे कितना भी आज़ाद हो, कुछ ताकतें हैं जो इसे अपने मुताबिक चलाना चाहती हैं.
अमेरिका में रहने वाले सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खगोशी सऊदी के क्राउन प्रिंस के कट्टर आलोचक थे. इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. उनकी हत्या के बाद उनके शरीर के टुकड़े किये गए और ओवन में जलाकर खत्म किया गया. तो डर सबसे असरदार तरीका है जिससे मीडिया की आज़ादी पर अंकुश लगाया जाता रहा है. लेकिन अब चूंकि नया चलन मीडिया को रोकने का नहीं उसे नियंत्रित करने का है, इसलिए मीडिया की आज़ादी को डर से ज्यादा लालच प्रभावित कर रहा है.
पहले पत्रकार डर के चलते सच बोलने से संकोच करते थे, अब लालच के चलते सच छुपाने लगे हैं. किसी देश में मीडिया की आज़ादी का उस देश के लोकतंत्र से सीधा संबंध होता है, यानी मीडिया जितना स्वतंत्र, उतना बेहतर लोकतंत्र. लेकिन आज की बड़ी दिक्कत ये है कि ज्यादातर बड़े मीडिया ग्रुप पूंजीपतियों की कंपनी हैं, जहां कार्यरत पत्रकार भी प्राइवेट कंपनी के कर्मचारी बन चुके हैं.
पत्रकारों का कर्मचारी बन जाना हमारे समय की वो घटना है जिसके लिए हमारा समय 'प्लासी की लड़ाई' की तरह याद रखा जाएगा. फ्रांस का वॉल्टेयर कहता था कि कोई समाज जैसा नेता और जैसे अपराधी डिज़र्व करता है, उसे मिल जाते हैं. तमाम लोगों को मैंने मीडिया के बारे में भी यही कहते देखा सुना है. लेकिन चूंकि मीडिया की एक बड़ी जिम्मेदारी समाज को आईना दिखाना भी है, इसलिए मीडिया अपनी गलतियों का ठीकरा समाज के मत्थे नहीं मढ़ सकता.
मीडिया मनोरंजन का साधन नहीं है. न ही उसका काम राजनीति में हिस्सा लेना है. उसका काम सिर्फ और सिर्फ व्यवस्था को आईना दिखाना है. और यही उसकी क्वालिटी का पैमाना भी है. मुद्दा प्रेस और मीडिया है इसलिए कुछ बातों पर बात करना बहुत जरूरी है. अब ऐसा हो नहीं रहा है जहां सिर्फ सूचनाएं दी जा रही हैं. आज केवल सूचनाओं को पत्रकारिता नहीं माना जा रहा है. आज के परिदृश्य में फेक न्यूज़ का हमला चारों तरफ से है और झुकाववाली ख़बरों पर कोई बहस नहीं करना चाहता.
प्रेस स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाया जाता है
मीडिया (प्रेस) को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में माना जाता है, लेकिन इस स्तंभ पर भी अत्याचार कुछ कम नहीं होते। मीडिया की शक्ति और प्रभावित करने की क्षमता को देखते हुए कई असामाजिक तत्व व अपराधी प्रवृत्ति के लोग इसे अपनी गिरफ्त में ले लेना चाहते हैं। इसके लिए वह तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। ऐसे लोग कभी अपनी ताकत व पद का इस्तेमाल कर या कभी अपने जानकारों का इस्तेमाल कर इसे दबाने की कोशिश करते हैं। कई बार खबरें दबाने के लिए रिपोर्ट्स को धमकियां देकर भी डराया जाता है। इस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म कर दिया जाता है। इसलिए 3 मई का दिवस प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि लोगों को जागरुक किया जा सके। साथ ही सरकारों का ध्यान भी इस तरफ खींचा जा सके।
मीडिया (प्रेस) को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में माना जाता है, लेकिन इस स्तंभ पर भी अत्याचार कुछ कम नहीं होते। मीडिया की शक्ति और प्रभावित करने की क्षमता को देखते हुए कई असामाजिक तत्व व अपराधी प्रवृत्ति के लोग इसे अपनी गिरफ्त में ले लेना चाहते हैं। इसके लिए वह तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। ऐसे लोग कभी अपनी ताकत व पद का इस्तेमाल कर या कभी अपने जानकारों का इस्तेमाल कर इसे दबाने की कोशिश करते हैं। कई बार खबरें दबाने के लिए रिपोर्ट्स को धमकियां देकर भी डराया जाता है। इस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म कर दिया जाता है। इसलिए 3 मई का दिवस प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि लोगों को जागरुक किया जा सके। साथ ही सरकारों का ध्यान भी इस तरफ खींचा जा सके।
जानें 3 मई का इतिहास
देश और दुनिया के इतिहास में 3 मई कई कारणों से महत्वपूर्ण है, इस दिन एथेंस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की थी।
3 मई 1837- यूनान में एथेंस विश्वविद्यालय की स्थापना।
3 मई 1616- लाऊंदू समझौते के बाद फ्रांस का गृहयुद्ध समाप्त हुआ।
3 मई 1660- स्वीडन, पोलैंड, ब्रैंडेनबर्ग और ऑस्ट्रिया ने ओलिवा शांति समझौते पर दस्तखत किए।
3 मई 1765- यूएस का पहला मेडिकल कॉलेज फिलाडेलफिया में खुला।
3 मई 1919- अमेरिका में पहली यात्री उड़ान न्यूयार्क और अटलांटिक सिटी के बीच संचालित हुई।
3 मई 1939- नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
3 मई 2008- पाकिस्तानी जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत सिंह की फांसी अनिश्चित समय तक टाली गई।
3 मई 1837- यूनान में एथेंस विश्वविद्यालय की स्थापना।
3 मई 1616- लाऊंदू समझौते के बाद फ्रांस का गृहयुद्ध समाप्त हुआ।
3 मई 1660- स्वीडन, पोलैंड, ब्रैंडेनबर्ग और ऑस्ट्रिया ने ओलिवा शांति समझौते पर दस्तखत किए।
3 मई 1765- यूएस का पहला मेडिकल कॉलेज फिलाडेलफिया में खुला।
3 मई 1919- अमेरिका में पहली यात्री उड़ान न्यूयार्क और अटलांटिक सिटी के बीच संचालित हुई।
3 मई 1939- नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
3 मई 2008- पाकिस्तानी जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत सिंह की फांसी अनिश्चित समय तक टाली गई।
विवेक श्रीवास्तव द्वारा किया गया पोस्ट