क्या कोंग्रेस का पतन का समय आ गया है ? क्यों राज्यों में खो रही है अपनी जमीन ?
We News 24»नई दिल्ली
रिपोर्टिंग/ दीपक कुमार
नई दिल्ली : भारत की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली कोंग्रेस इन दिनों बुरे दौर से गुजर रही है पार्टी के नेता और लीडर का ही मत नहीं दिख रहा है जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ रहा है और इस अंतर्कलह ने पंजाब समेत राजस्थान और छत्तीसगढ़ में समस्या पैदा कर दिया है . यही नहीं पश्चिम बंगाल में हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस की जीत से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ .
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बिहार में होने वाले उपचुनाव में भी राष्ट्रीय जनता दल ने कांग्रेस को बिल्कुल भी भाव नहीं दिया RJD ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए. इस तरह कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार के बाद बाद पश्चिम बंगाल में अपने अस्तित्व बचाने की कोशिश करनी पड़ेगी, जो उसके लिए आसान नहीं दिख रहा . गौरतलब है कि बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 44 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी पार्टी थी, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने उससे यह स्थान भी छीन लिया है.
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बंगाल में कांग्रेस को बीजेपी ने मुख्य विपक्षी का स्थान भी छीन लिया
गौरतलब है कि टीएमसी से दोस्ती निभाते हुए कांग्रेस ने भवानीपुर से इस बार उपचुनाव नहीं लड़ा था. अगर बंगाल में कांग्रेस की ताकत की बात करें तो 2016 के चुनावों के बाद विधानसभा में 44 विधायकों के साथ वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन अब 2021 विधानसभा चुनाव के बाद उसके पास राज्य से एक भी विधायक नहीं है. सिर्फ दो लोकसभा और एक राज्यसभा सांसद हैं. जाहिर है कांग्रेस बंगाल में अपनी जमीन खो चुकी है. ऐसे में उसे नए सिरे से शुरुआत करनी होगी, क्योंकि उसके अधिक से अधिक नेता तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम रहे हैं.
कांग्रेस ने अपने गढ़ भी टीएमसी के हाथों गंवाए
बंगाल में खिसकती जमीन का आलम यह है कि कभी कांग्रेस के गढ़ रहे मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर और शमशेरगंज विधानसभा सीट पर भी तृणमूल ने बंपर जीत दर्ज की है. गौरतलब है कि रविवार को आए उपचुनाव परिणामों में भवानीपुर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 84,709 वोट हासिल किए. दीदी ने भाजपा की प्रियंका टिबरेवाल को निर्णायक रूप से हराया, जिन्होंने भवानीपुर उपचुनाव में 26,350 वोट हासिल किए, जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के श्रीजीब बिस्वास केवल 4,201 वोट हासिल करने में सफल रहे. चूंकि कांग्रेस ने उम्मीदवार ही नहीं खड़ा किया था, तो वह पहले ही मैदान से बाहर हो गई थी.
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उत्तर प्रदेश और बिहार में भी विलुप्त होने की कगार पर
बंगाल के बाद अब अगर बात उत्तर प्रदेश की करें तो कांग्रेस के पास केवल एक लोकसभा सांसद है और 2017 में चुने गए सात विधायकों में से दो ने पार्टी छोड़ दी है. बिहार में भी कांग्रेस के पास एक लोकसभा सीट है और 19 विधायक हैं. इन राज्यों में 162 लोकसभा सीटों (यूपी 80, बंगाल 42 और बिहार 40) के लिए कांग्रेस की स्थिति अस्थिर है. इन सभी राज्यों में क्षेत्रीय दलों क्रमशः यूपी में सपा-बसपा, बिहार में राजद और अब बंगाल में तृणमूल ने कांग्रेस को हाशिये पर ला दिया है. चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस को अगर 2024 लोकसभा चुनावों में खुद को विलुप्त होने से बचाना है, तो उसे अपनी रणनीति में खासा बदलाव लाना होगा. इससे भी पहले उसे अपनी आंतरिक कलह से पार पाना होगा, जो उसके नेताओं की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के आगे आसान नहीं दिखता.
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