भारतीय भाषाओं में न्यायपालिकाओं में कार्य शुरू किए जाने की उठी मांग
We News 24» रिपोर्टिंग सूत्र / आरती गुप्ता
नई दिल्ली : मुख्यमंत्रियों व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए विगत 30 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि किसी भी देश में सुराज का आधार न्याय होता है. इसलिए न्याय जनता से जुड़ा हुआ होना चाहिए, जनता की भाषा में होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में स्थानीय भाषा को प्रोत्साहन देने की जरूरत है, इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा.
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शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ.अतुल कोठारी ने प्रधानमंत्री के विचारों का स्वागत करते हुए बताया कि न्यास भारतीय भाषा अभियान के माध्यम से विगत कुछ वर्षों से जनता की भाषा में न्याय मिले इस दिशा में देशभर में कार्य कर रहा है. उन्होंने बताया कि इसी प्रकार भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद व उप राष्ट्रपति वैंकया नायडू द्वारा न्यायालयों में भारतीय भाषाओं के प्रयोग की बात का अनेकों बार समर्थन कर चुके है .
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प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा ने भी कहा था कि न्याय प्रणाली का भारतीय करण समय की जरूरत है. न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं में कार्यवाही की बात पर विचार करने का समय आ गया है और इसे तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचाया जाना चाहिए. न्यूज नेशन से बातचीत में कोठारी ने कहा कि जब देश के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व प्रधान न्यायाधीश न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में कार्य करने की बात का समर्थन कर चुके हैं, तो इस विषय को गंभीरता से लेते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय व सभी उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में कार्यवाही अतिशीघ्रता से प्रारंभ होना चाहिए.
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इससे जनता की भाषा में न्याय मिल सके तथा न्याय व्यवस्था को सरल व सुलभ बनाया जा सके. कोठारी ने कहा कि इस व्यवस्था के विरोध में उठ रहे प्रश्नों का शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास भारतीय भाषा अभियान के माध्यम से समय-समय पर समाधान प्रस्तुत कर चुका है.
जनता को जनता की भाषा में न्याय मिले इस हेतु अब देशभर में सकारात्मक वातावरण निर्माण हो रहा है. अब समय आ गया है कि इसके विरोध में बनाई जा रही बनावटी रुकावटों को तत्काल हटा कर इस दिशा में शीघ्रता से कार्य प्रारम्भ किया जाए. गौरतलब है कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का घोषित लक्ष्य वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की वैकल्पिक व्यवस्था की स्थापना करना है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह संस्था शिक्षा के पाठ्यक्रम, प्रणाली, विधि और नीति को बदलने तथा शिक्षा के 'भारतीयकरण' को आवश्यक मानती है.
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