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    भारतीय अदालतें होंगी दलाल मुक्त ,अधिवक्ता संशोधन विधेयक को समझें

     

    भारतीय अदालतें होंगी दलाल मुक्त ,अधिवक्ता संशोधन विधेयक को समझें






    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / विवेक श्रीवास्तव 

    नई दिल्ली:- केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने न्याय व्यवस्था (Judicial System) में सुधार की दिशा में एक और कदम उठाते हुए अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद से पास करवा लिया है। इस विधेयक को राज्यसभा ने संसद के पिछले सत्र में 3 अगस्त को पास कर दिया था जबकि लोकसभा से उसे सोमवार, 4 दिसंबर को मंजूरी मिली। 


    सरकार चाहती है कि अदालत परिसरों में किसी दलाल का नामों निशान नहीं हो। इसके पीछे सरकार की सोच है कि कानूनी मामलों में फंसे लोग कोर्ट-कचहरी के चक्कर से यूं ही परेशान रहते हैं, ऊपर से वो दलालों के शिकंजे में आ जाएं तो न्याय पाने की उनकी जद्दोजहद और मुश्किल हो जाती है। ऐसे में अदालत की चहारदिवारी को दलाल मुक्त करने उद्देश्य से ही सरकार ने एडवोकेट (अमेंडमेंट) बिल, 2023 लाया और अब उसे संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल चुकी है। एक बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का हस्ताक्षर हो जाने पर यह विधेयक कानून की शक्ल ले लेगा।


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    केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में विधेयक पर समर्थन मांगते हुए कहा कि मौजूदा सरकार में 1486 औपनिवेशिक कानून समाप्त कर दिए गए जबकि पिछली यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल में एक भी ऐसा कानून खत्म नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि सरकार ने भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) के परामर्श से लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 को निरस्त करने और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करने का निर्णय लिया है।


     विधेयक में भी कहा गया है, 'सरकार पुराने और बेकार हो चुके आजादी से पहले के कानूनों को हटाने की नीति के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ मिलकर लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 को हटाने और एडवोकेट्स एक्ट, 1961 में संशोधन करने का फैसला किया है। इसके लिए लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 की धारा 36 को एडवोकेट्स एक्ट, 1961 में शामिल किया जाएगा। इससे कानून की किताबों में अनावश्यक कानूनों की संख्या कम हो जाएगी। साथ ही, इससे वकालत पेशे को सिर्फ एक कानून एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत नियमित करने में मदद मिलेगी।'


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    कानून की नजर में 'दलाल' कौन हैं?

    एडवोकेट (अमेंडमेंट) बिल, 2023 में दलाल की परिभाषा में कहा गया है-

    (i) जो किसी कानून से जुड़े कामकाज में किसी वकील को काम दिलाने के बदले में उस वकील से या उस काम में रुचि रखने वाले व्यक्ति से पैसा लेता है; या

    (ii) जो इस काम के लिए अक्सर सिविल या क्रिमिनल कोर्ट के आसपास, रेवेन्यू ऑफिस, रेलवे स्टेशन, लैंडिंग स्टेज, लॉजिंग प्लेस या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर घूमता रहता है।


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    इस तरह किसी व्यक्ति को दलाल तभी माना जाएगा जब ये दो बातें साबित होंगी-

    (i) वह किसी वकील को काम दिलाने में लगा हो, और

    (ii) वह इस काम के लिए वकील से ही पैसा लेता हो।


    अगर इनमें से कोई भी चीज नहीं है तो वह दलाल नहीं है 

    अगर कोई मुफ्त में किसी मुवक्किल को किसी वकील से बात करने की सलाह देता है या मुफ्त में किसी वकील को काम दिलाता है, तो वह दलाल नहीं है। वह तभी दलाल की परिभाषा में आता है जब वह इस काम के लिए वकील से पैसा लेता है।अगर किसी व्यक्ति पर ऐसा करने का संदेह है तो उसका नाम दलालों की सूची में डालने की प्रक्रिया शुरू होगी। इसके लिए दलालों की सूची बनाने और प्रकाशित करने के लिए एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के सेक्शन '45ए के सब सेक्शन (1) के तहत अधिकृत कोई भी प्राधिकरण दलाल होने या संदिग्ध होने वाले किसी भी व्यक्ति के नाम किसी अधीनस्थ न्यायालय को भेज सकता है .


     और उस न्यायालय को आदेश दे सकता है कि वह ऐसे व्यक्तियों के संबंध में जांच करे; और अधीनस्थ न्यायालय ऐसे व्यक्तियों के आचरण की जांच करेगा और प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को सब सेक्शन (2) में दिए गए अनुसार कारण बताने का अवसर देने के बाद जांच का आदेश देने वाले प्राधिकरण को प्रत्येक ऐसे व्यक्ति का नाम रिपोर्ट करेगा . जिसके आचरण से अधीनस्थ न्यायालय संतुष्ट हुआ है। इसके बाद वह अथॉरिटी ऐसे किसी व्यक्ति का नाम दलालों की सूची में शामिल कर सकता है। शर्त बस इतनी है कि अथॉरिटी को उस व्यक्ति को अपना पक्ष रखने की अनुमति देना होगा जिसका नाम दलालों की सूची में शामिल किए जाने का प्रस्ताव है।

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    इसके लिए एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (जिसे आगे चलकर प्रिंसिपल एक्ट कहा जाता है) की धारा 45 के बाद निम्नलिखित धारा जोड़ी जाएगी-

    '45ए (1) प्रत्येक उच्च न्यायालय, जिला जज, सत्र न्यायाधीश, जिला मजिस्ट्रेट, और प्रत्येक राजस्व अधिकारी जो जिला कलेक्टर के पद से नीचे नहीं है (प्रत्येक अपने स्वयं के न्यायालय और उसके अधीनस्थ न्यायालयों के लिए, यदि कोई हो), उन व्यक्तियों की सूची बना और प्रकाशित कर सकता है, जो सामान्य मान्यता के सबूत या अन्यथा, आदतन दलाल के रूप में कार्य करने वाले साबित होते हैं, और समय-समय पर ऐसी सूचियों में परिवर्तन और संशोधन कर सकता है।




    इसके स्पष्टीकरण में कहा गया है कि किसी कोर्ट या रेवेन्यू ऑफिस में लीगल प्रफेशनल के रूप में प्रैक्टिस करने के हकदार व्यक्तियों के संघ की तरफ से विशेष रूप से बुलाए गए बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत द्वारा किसी व्यक्ति को दलाल घोषित करने या नहीं करने का प्रस्ताव पारित करना, इस उप-धारा के उद्देश्यों के लिए ऐसे व्यक्ति की पहचान का प्रमाण होगा।


    ➤ किसी व्यक्ति का नाम किसी ऐसी सूची में तब तक शामिल नहीं किया जाएगा जब तक उसे उस शामिल किए जाने के खिलाफ कारण बताने का अवसर न मिले।


    ➤ दलालों की ऐसी सूची की एक प्रति हर उस न्यायालय में टंगी रखी जाएगी जिससे वह संबंधित है।


    दलालों पर प्रतिबंध और दंड


    ➤ अदालत या जज, एक सामान्य या विशेष आदेश से किसी भी ऐसे व्यक्ति को अदालत के परिसर से बाहर करने का आदेश दे सकता है जिसका नाम किसी ऐसी सूची में शामिल है।


    ➤ कोई भी व्यक्ति जो ऐसे समय दलाली करता है जब उसका नाम किसी ऐसी सूची में शामिल है, उसे तीन महीने तक की कैद, या पांच सौ रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।


    सरकार ने भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) के परामर्श से लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 को निरस्त करने और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करने का निर्णय लिया है।


    मुवक्किल, वकील और अदालत तीनों के लिए घातक है दलाली का सिस्टम


    ➤ जहां तक बात एडवोकेट्स (अमेंडमेंट) बिल, 2023 की है तो कोई भी मुकदमा लड़ रहा किसी वादी के लिए अच्छी स्थिति यही है कि अच्छे से अच्छा वकील अदालत में उसका पक्ष रखे। अगर वह किसी दलाल के चंगुल में फंसकर ऐसे वकील को अपना केस सौंप देता है जो योग्य नहीं है, तो वह मुकदमा हार सकता है। इधर, मुवक्किल के मुकदमा हारने के जोखिम पर दलाल अपनी कमाई कर लेते हैं। दलाल को अपनी कमाई की चिंता होती है, भले उसे क्या पड़ी है कि वो मुवक्किल को अच्छा वकील दे। वो तो उसी वकील की पैरवी करेगा जिससे उसकी सांठगांठ है।


    ➤ दूसरी तरफ दलाली सिस्टम से वकीलों का भी नुकसान होता है। संभव है कि वैसे प्रतिभाशाली वकीलों को केस नहीं मिले जो दलालों के संपर्क में नहीं हों। लेकिन ऐसा वकील जो केस लेने के लिए दलालों से संपर्क साधने से नहीं हिचकता है, उसे बहुत सारा काम मिल सकता है क्योंकि वह अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दलाल को देता है।


    ➤ उधर, जज और कोर्ट भी दलाली सिस्टम से काफी प्रभावित होते हैं। जजों को अच्छे वकीलों की दमदार दलीलें सुनने को नहीं मिलेंगी। अक्सर वैसे वकील ही कमीशन देकर दलालों के जरिए केस लेंगे जो अयोग्य हैं। योग्य वकीलों के पास तो मुकदमों की भरमार होती है, उन्हें कभी क्लाइंट्स की कमी नहीं होती। भला कोर्ट में खड़े अयोग्य वकील क्या ही दलील दे सकेंगे?

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