• Breaking News

    निर्भया के पिता की दिल्ली इक्षा उनके सामने दोषियों को फंदे पर लटकाया जाय

    We News 24 Hindi »नई दिल्ली
    संवाददाता काजल कुमारी की रिपोर्ट 

    नई दिल्ली: निर्भया के पिता बताते हैं कि यदि जेल प्रशासन अनुमति दे तो वे तिहाड़ के फांसी घर में उस समय मौजूद रहना चाहते हैं, जब दोषियों को फंदे पर लटकाया जाएगा। वे बताते हैं कि जेल का कानून क्या कहता है, इस बारे में उन्हें पूरी जानकारी नहीं है। इस बाबत वे जेल प्रशासन से अनुरोध करना चाहते हैं। कानून जो भी हो, लेकिन एक बार अपनी इच्छा को वे जेल प्रशासन के समक्ष अवश्य रखना चाहते हैं।


    बताया जा रहा है कि वे जेल प्रशासन को इस संबंध में पत्र लिख सकते हैं। निर्भया के पिता बताते हैं कि हमें उस वक्त ज्यादा दुख होता है, जब गुनहगारों को सजा देने के लिए हमें गुहार लगानी पड़ती है। सात साल हो गए, मेरी बेटी के गुनहगार जिंदा हैं। यह ऐसी बात है जो हर उस माता-पिता को परेशान करती है, जिनके घर एक बेटी है। दुष्कर्मी अब अपने बचाव के लिए पीड़िताओं को मार रहे हैं। उन्हें अब इस बात का यकीन है कि कानूनी दांव-पेच का इस्तेमाल कर वे हर हाल में जिंदा बचे रह सकते हैं। यदि मेरी बेटी के गुनहगारों को फंदे पर लटका दिया गया होता तो आज महिलाओं पर लोग बुरी नजर रखने से भी डरते।



    यह भी पढ़ें-कुलदीप सिंह सेंगर उन्नाव दुष्कर्म मामले में फैसला सुनने के बाद अदालत में ही रोने लगे

    सकारात्मक सोच ही थी मेरी बिटिया की मजबूती
    मां कहती हैं- 'वह मेरी पहली संतान थी, उससे हमारे कई सपने जुड़े थे। पढ़ाई लिखाई में भी वह बेहद होशियार थी। उसकी ख्वाहिश थी कि वह डॉक्टर बने, लेकिन आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि हम मेडिकल की पढ़ाई का खर्चा उठा सकें। मेडिकल की पढ़ाई का उस पर इस कदर जुनून था कि उसने अंत में किसी न किसी तरह से पैरामेडिकल में दाखिला कराया। वह कहती थी कि सिर्फ हमें पढ़ा दो, भाइयों की चिंता मत करो। उन्हें मैं संभाल लूंगी। बिटिया (निर्भया) की बात हम लोगों ने मान ली। जमीन बेचकर उसकी फीस का इंतजाम किया। साढ़े चार साल तक उसने पढ़ाई की। फाइनल परीक्षा देकर वह नवंबर के अंतिम सप्ताह में हमारे पास आई थी। दो जनवरी को उसका रिजल्ट आता, जिसके लिए उसने जीतोड़ मेहनत की थी। लेकिन, 29 दिसंबर को वह दुनिया से चल बसी।' इतना कहते ही निर्भया की मां के आंसू छलक पड़े।


    यह भी पढ़ें-शौच करने घर से बाहर गयी एक दलित किशोरी के साथ सामूहिक दुष्कर्म

    घर में चार लोग हैं, सभी की यादें उससे जुड़ी हैं। घर में सभी उसे अकेले में याद करते हैं और रो लेते हैं। वह बचत के पैसों से हमेशा माता- पिता के लिए उपहार खरीदा करती थी। एक बार बिटिया ने पापा के चेहरे पर उदासी देखी तो उसे लगा कि शायद पैसों की किल्लत के कारण वह परेशान हैं। फिर पापा को हिम्मत देते हुए कहा ‘पापा किस बात की चिंता है? अब तो थोड़े ही दिनों की बात है, आपकी लाडली डॉक्टर बनने वाली है। अब तो खुश हो जाओ।


    यह भी पढ़ें-मुंबई क्राइम ब्रांच ने माहिम सूटकेस हत्याकांड में मुख्‍य आरोपी की उम्र के बारे में नया खुलासा

    अवधेश कुमार द्वारा किया गया पोस्ट 


    Post Top Ad

    Post Bottom Ad