बिहार: में अक्टूबर-नवंबर के महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य इसके लिए तैयार हो रहा है। हालांकि इस बार वैश्विक महामारी कोरोना वायरस और हर साल आने वाले बाढ़ की दोहरी चुनौती भी है। 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन किया था। यह सफल भी रहा। हालांकि राजनीतिक रूप से अस्थिर बिहार में पांच साल के दौरान काफी कुछ बदल गया है।
नीतीश कुमार फिर से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो चुके हैं और उनके साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं। महागठबंधन के बिखरने के बाद राज्य के चुनावी समीकर बदल गए हैं और कई नेता अपने लिए सही मौके की तलाश कर रहे हैं। चुनावी पर्यवेक्षकों का कहना है कि बेहतर राजनीतिक जमीन की तलाश में कई नेता इधर से उधर जाएंगे।
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में शामिल होने की अटकलों के बीच जेडीयू ने श्याम रजक को रविवार को पार्टी से निकाल दिया। साथ ही साथ राज्यपाल से अनुशंसा कर उन्हें मंत्री पद से भी हटा दिया गया। वे अब अपनी पुरानी पार्टी और बिहार में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी में शामिल हो गए हैं। माना जा रहा है कि उन्होंने यह फैसला अपने विधानसभा क्षेत्र की गणित को देखने के बाद लिया है। रजक फुलवारी सीट से चुनाव लड़ते हैं और यहां पर अल्पसंख्यकों की अच्छी खासी आबादी है।
जेडीयू की तर्ज पर आरजेडी ने केवटी से विधायक फराज फातमी को पार्टी से निकाल दिया है। दरभंगा से चार बार सांसद रहे अली अशरफ फातमी को पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने टिकट नहीं दिया था। तभी से चर्चा चल रही थी कि अली अशरफ फातमी के बेटे फराज जेडीयू में जा सकते हैं। वे कई बार नीतीश कुमार और उनकी सरकार की सार्वजनिक मंचों से तारीफ भी कर चुके हैं।
आरजेडी के दो अन्य विधायकों, प्रेमा चौधरी और महेश्वर यादव को पार्टी टिकट नहीं देने वाली थी। क्योंकि मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट से विधायक यादव 2015 से ही आरजेडी की खिलाफत कर रहे हैं। वहीं वैशाली जिले के पाटेपुर से विधायक चौधरी सीएम नीतीश की तारीफ करने के लिए चर्चा में रहे हैं। दोनों को आरजेडी ने निकाल दिया है। उम्मीद है कि जेडीयू की टिकट पर ये चुनाव लड़ेंगे।
चुनाव पर्यवेक्षकों का कहना है कि बिहार में टिकट बंटवारे से पहले नेताओं का एक दल से दूसरे दल में जाना कोई नई बात नहीं है। 2015 में टिकट की उम्मीद पाले बैठे तमाम नेताओं को महागठबंधन के कारण झटका लगा था, जिसके बाद उन्होंने बीजेपी का रुख कर लिया। पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एडीआरआई) के सदस्य सचिव और चुनाव पर्यवेक्षक शैबल गुप्ता कहते हैं, 'बदलते राजनीतिक समीकरणों और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण 2015 की तुलना में बिहार में ज्यादा दल-बदल के मामले देखने को मिलेंगे।'
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