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    दिल्ली/ दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को लगायी फटकार, कहा दवा रहते ब्लेक फंगस से क्यों मरे इतने लोग

     



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    We News 24 Hindi »नई दिल्ली   
    अमित मेहलावत की  रिपोर्ट 


    नई दिल्ली : ब्लैक फंगस की दवा की कमी को लेकर  दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि इस पर पहले से ही बहुत शोर है और यदि आप इसे नहीं सुनना चुनते हैं, तो यह आपकी पसंद है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने उच्च न्यायायल में दावा किया कि ब्लैक फंगस यानी म्यूकोर माइकोसिस बीमारी के इलाज में काम आने वाल दवाओं में से एक एम्फोटेरिसिन बी. बाजार में आसानी से उपलब्ध है। सरकार के वकील के इस दावे पर उच्च न्यायालय ने काफी आश्चर्य व्यक्त किया। 

    न्यायालय ने कहा कि यदि दवा बाजार में प्रचुर मात्रा में आसानी ने उपलब्ध होती तो इस बीमारी से इतनी मौतें नहीं होनी चाहिए थी। इस पर केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि लोग दवा की कमी से नहीं मर रहे हैं बल्कि ब्लैक फंगस बीमारी अपने आप में खतरनाक है। जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से स्थाई अधिवक्ता कीर्तिमान सिंह ने कहा कि ‌ब्लैक फंगस से प्रभावित लगभग एक तिहाई मरीजों की मौत हो गई है। सिंह ने दावा किया कि वे लोग (ब्लैक फंगस के मरीज) दवाओं की कमी से नहीं मर रहे हैं अन्यथा बहुत शोर और अशांति होती। इस पर पीठ ने कहा कि ‘पहले से ही बहुत शोर है और यदि आप इसे नहीं सुनना चुनते हैं, तो यह आपकी पसंद है।' 

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    हालांकि, उच्च न्यायालय ने ब्लैक फंगस के संभावित इलाज के विकल्पों पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीमआर) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों पर संतोष जताया। इसमें कहा गया था कि लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी पसंद की दवा है और विशेषज्ञों को नियमित अंतराल पर इसकी समीक्षा करने के लिए कहा। पीठ को बताया गया कि ब्लैक फंगस के इलाज के लिए लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी को प्रशासित करने के लिए रोगियों को प्राथमिकता देने का मानदंड युवा रोगी हैं और जिनमें सर्जिकल डिब्राइडमेंट संभव नहीं है या अधूरा है। 


    आईसीएमआर ने अपने नये दिशा-निर्देशों में कहा है कि शुरू में मानक उपचार के रूप में एम्फोटेरिसिन बी डीऑक्सी कोलेट के उपयोग की सलाह दी, जबकि यह देखते हुए कि यह नेफ्रोटॉक्सिसिटी का कारण बनता है। इसमें यह भी सलाह दी कि इसे नेफ्रोटॉक्सिसिटी को कम करने के लिए कैसे दवा दिया जाना चाहिए।

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    उच्च न्यायालय ने एक जून को मामले की सुनवाई के दौरान दिशा-निर्देश दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान आईसीएमआर के एक वैज्ञानिक ने पीठ को बताया कि या तो एक संशोधित दिशा-निर्देश या परिशिष्ट जारी किया जाएगा जो यह दर्शाता है कि यह लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी की कमी के आलोक में तैयार किया गया है और हर दो सप्ताह के बाद तीन महीने तक इसकी समीक्षा की जाएगी। 


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