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    ज्ञानवापी मस्जिद मामले को वापस वाराणसी ट्रायल कोर्ट क्यों भेजना चाहता था सुप्रीम कोर्ट, पढ़ें वकील और जज की दलीलें


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    We News 24»रिपोर्टिंग सूत्र / काजल कुमारी 

    नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट का ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में  हस्तक्षेप मंगलवार को विधिवत हो गया। सुप्रीम कोर्ट शुरू में इस मामले को वापस वाराणसी ट्रायल कोर्ट में भेजने का इच्छुक था, क्योंकि मस्जिद कमेटी के वकील का कहना था कि पूजा अर्चना के लिए दायर दीवानी वाद विचारणीय नहीं है, क्योंकि धार्मिक स्थान पूजा कानून, 1991 के अनुसार 15 अगस्त 1947 के दिन जो पूजा स्थान जैसी स्थिति में था, वैसा ही रहेगा। इसमें कोई वाद दखिल नहीं किया जा सकता।


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    मुसलमान यहां अनंत काल से नमाज पढ़ रहे

    मस्जिद कमेटी के वकील का कहना था कि वाराणसी सिविल कोर्ट ने उनके ‘आदेश 7, नियम 11’ के तहत विचारणीयता का प्रश्न उठाने वाली अर्जी पर कोई फैसला नहीं लिया, लेकिन 8 अप्रैल को सर्वे का और फिर 16 मई को परिसर को सील करने का आदेश दे दिया। मुसलमान यहां अनंत काल से नमाज पढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ठीक है हम इस मामले को वापस ट्रायल कोर्ट भेज देते हैं। उससे कहेंगे कि वह आपकी ‘आदेश 7, नियम 11’ की अर्जी का निपटारा करे।


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    कोर्ट ने सीलिंग का आदेश उन्हें बिना सुने ही दिया था 

    मस्जिद कमेटी के वकील इतना सुनते ही मस्जिद कमेटी के वकील ने कहा कि कोर्ट ने सीलिंग करने का आदेश उन्हें सुने बिना ही दिया था। यह आदेश तब दिया गया, जब सारे वकील और कोर्ट कमिश्नर ज्ञानवापी का सर्वे कर रहे थे। इसके अलावा, यह आदेश मां शृंगार गौरी की पूजा, भोग, अर्चना का अधिकार मांगने वाले याचिकाकर्ताओं के वकील हरिशंकर जैन की अर्जी पर दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि सर्वे में शिवलिंग मिला है।


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    याचिकाकर्ता को यह बात कैसे पता चली?

    मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को यह बात कैसे पता चली, जबकि सर्वे की रिपोर्ट गोपनीय रहती है। वहीं, कोर्ट ने भी बिना विरोधी पक्ष को बुलाए कैसे शिवलिंग मिलने के स्थान को संरक्षित करने और परिसर को सील करने का आदेश दे दिया, लेकिन इस बात पर कोर्ट ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।


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    जस्टिस चंद्रचूड़ : 

    लेकिन, आपकी अर्जी में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। ट्रायल कोर्ट के 16 मई के आदेश का इसमें जिक्र नहीं है। यह आदेश इस कार्यवाही का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें आपने 1991 के कानून को आधार बनाया है। हम इस मामले को ट्रायल कोर्ट भेजेंगे और आदेश देंगे कि वह आपकी विचारणीयता की अर्जी पहले निपटाए। वैसे भी यह सूट पूजा के लिए दायर किया गया है, मालिकाना घोषणा करने के लिए नहीं।


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    मस्जिद कमेटी वकील : इसके लिए हमने हस्तक्षेप अर्जी दायर की है। क्योंकि सीलिंग के आदेश से सारा मामला अलग ही रुख ले गया है। जो 1991 के कानून का खुला उल्लंघन है। क्योंकि सीलिंग करने से आप ढांचे में परिवर्तन कर रहे हैं, जो कानून के तहत प्रतिबंधित है। इस सूट में मालिकाना घोषणा का आग्रह भी है। इस आदेश पर पूर्ण रोक लगाई जाए।


    जस्टिस चंद्रचूड़ : 

    यदि शिवलिंग पाया गया है तो हमें इस स्थान को सुरक्षित करना होगा, क्योंकि हमें संतुलन बनाना होगा। हम जिला मजिस्ट्रेट को आदेश देंगे कि वह शिवलिंग मिलने के स्थान को नमाज अदा करने में बाधा डाले बगैर संरक्षित करें।


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    यूपी सरकार की ओर से एसजी मेहता :

     माइलार्ड! इस आदेश के अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं। बताया गया है कि शिवलिंग वजूखाने से मिला है। यह वह स्थान है, जहां प्रार्थना करने से पहले लोग अपने हाथ पैर और मुंह धोते हैं। मान लें किसी ने उसे पैर से छू लिया तो कानून व्यवस्था की हालत खराब हो जाएगी। मेरा आग्रह है कि मामले को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया जाए। क्योंकि, तथ्यात्मक स्थिति क्या है, किसी को नहीं पता। कोर्ट कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट भी अभी नहीं दी है।


    कोर्ट : मामले की सुनवाई 19 को होगी। आप सब लोग जवाब दीजिए।

    हिन्दू सेना : हमने याचिका दायर की है, कृपया सुनें।

    कोर्ट : आप कौन हैं।

    हिन्दू सेना : सर, हम श्रद्धालु हैं। हमने याचिका दायर की है और पक्ष बनना चाहते हैं।


    कोर्ट : सिविल सूट में पक्ष नहीं बनाया जा सकता। क्या आप वाराणसी में पक्षकार थे। यदि नहीं हो तो आप पक्ष नहीं हो सकते। यहां लोगों की कमी नहीं है। 500 इधर से और 500 उधर से पहले ही हैं। 

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