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    कौन है छठी मैया क्या है इनका इतिहास और भैया दूज गोधन के दिन से ही क्यों आरम्भ होती है छठी मैया की पूजा



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    We News 24 Digital»रिपोर्टिंग सूत्र  दीपक कुमार

      

    नई दिल्ली : छठ महा पर्व की आगाज  भैयादूज यानि गोधन  के तीसरे दिन से ही आरम्भ हो जाता है। कार्तिक महीने की षष्ठी यानी छठी तिथि को लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है. नहाए-खाए के साथ शुरू होने वाले इस पर्व में व्रती और महिलाएं 36 घंटे तक कठोर निर्जला व्रत रखती हैं . ऐसी मान्यता है है की   इस पवित्र व्रत को रखने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है, यश, पुण्य और कीर्ति का उदय होता है, दुर्भाग्य समाप्त हो जाते हैं, निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है.

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    आइये जनते है की  कब से हुआ सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई ये छठ  इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। रामायण और महाभारत काल से ही महापर्व छठ को मनाने की परंपरा रही है. नहाए खाए के साथ आरंभ होने वाले लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं. महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुई तथा पांडवों को खोया हुआ यश धन और राजपाट वापस मिला .


    इसके अलावा भी  छठ महापर्व का जिक्र रामायण काल में भी मिलता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है. कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी. कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. मान्यताओं के अनुसार, वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने .

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    एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।छठ, षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा।

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    छठ पूजा का व्रत सूर्य भगवान, उषा, प्रकृति, जल, वायु आदि को समर्पित है. ये त्यौहार को मुख्य रूप से  बिहार प्रान्त  मनाया जाता है. इस व्रत को करने से निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है. कहा जाता है कि यह व्रत संतान की रक्षा और उनके जीवन की खुशहाली के लिए किया जाता है. इस व्रत का फल सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति से भी ज्यादा होता है. सिर्फ संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है

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    चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत नहाए खाए से होती है. इस दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण कर पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं. व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के सभी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं.


    खरना वाले दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है इस दिन प्रसाद में ठेकुआ जरूर बनाया जाता है. यह गेहूं के आटे, गुड़ या चीनी मिलकर तैयार किया जाता है. इसके अलावा चावल के आटे से कसार भी बनाया जाता है.

    छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है. इस पूजा में महिलाएं शाम के समय चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाकर उसे प्रसाद के तौर पर खाती हैं. इसके बाद महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही छठी मइया का घर में आगमन हो जाता है.


    कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं. साथ ही छठ पूजा का प्रसाद तैयार करती हैं. इस दौरान महिलाएं शाम के समय नए वस्त्र धारण कर परिवार संग किसी नदी या तालाब पर पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं. तीसरे दिन का निर्जला उपवास रात भर जारी रहता है.


    छठ पूजा के चौथे दिन पानी में खड़े होकर उगते यानी उदयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसे उषा अर्घ्य या पारण दिवस भी कहा जाता है. अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं सात या ग्यारह बार परिक्रमा करती हैं. इसके बाद एक-दूसरे को प्रसाद देकर व्रत खोला जाता है. 36 घंटे का व्रत सूर्य को अर्घ्य देने के बाद तोड़ा जाता है. इस व्रत की समाप्ति सुबह के अर्घ्य यानी दूसरे और अंतिम अर्घ्य को देने के बाद संपन्न होता है.

    आइये जानते है  छठ पूजा में लगने वाली सामग्री के बारे में 

    व्रत रखने वाले के लिए नए वस्त्र बांस का बना हुआ सूप. कुछ लोग पीतल सूप का भी प्रयोग करते हैं.बांस की टोकरि  गन्ने, पत्ते वाले ,हल्दी, मूली और अदरक पत्ते वाला ,पानी वाला नारियल, केला, बड़ा वाला मीठा नींबू इसके अलावा दीपक, चावल, सिंदूर और धूप. पान सुपारी, शकरकंदी, सुथनी, मिठाई, शहद, चंदन, धूप, अगरबत्ती  कुमकुम और कपूर. गेहूं और चावल का आटा तथा गुड़.


    छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं, लेकिन उसमें सबसे अहम ठेकुआ का प्रसाद होता है, जिसे गुड़ और आटे से बनाया जाता है. छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है. छठ के सूप में इसे शामिल करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है.

    वैसे तो  छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दुसरा कार्तिक मास  इस पुजा में गंगा स्थान या नदी तालाब जैसे जगह होना अनिवार्य हैं यही कारण है कि छठ पूजा के लिए सभी नदी तालाब कि साफ सफाई किया जाता है और नदी तालाब को सजाया जाता है प्राकृतिक सौंदर्य में गंगा मैया या नदी तालाब मुख्य स्थान है . तो ये थी हमारी आस्था का महापर्व  छठ वर्त का पौराणिक कथा और जानकारी  जो आपको जरुर पसंद आया होगा अगर पसंद आय तो हमरे चैनल को जरुर अपने दोस्तों में शेयर करे साथी ही लाइक और सब्सक्राईब करे .अतं में बोले जय छठी मैया .



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