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    धोखे से धर्मांतरण पर पाकिस्तान में उम्रकैद, तो नेपाल-श्रीलंका में भी कानून, जानें भारत में कहां कितनी है सजा?

    धोखे से धर्मांतरण पर पाकिस्तान में उम्रकैद, तो नेपाल-श्रीलंका में भी कानून, जानें भारत में कहां कितनी है सजा


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    We News 24 Digital»रिपोर्टिंग सूत्र  / विवेक श्रीवास्तव 

    नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया है. अदालत ने कहा कि अगर अभी कुछ नहीं किया गया तो आने वाले समय में बहुत मुश्किल स्थिति हो सकती है. 

    जबरन धर्मांतरण को सुप्रीम कोर्ट ने 'बेहद गंभीर' मुद्दा बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को आगे आना होगा और अभी जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो 'बहुत मुश्किल स्थिति' पैदा होगी. सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को देश की सुरक्षा के लिए खतरा माना है. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि इसे रोकने के उपाय खोजें. बेंच ने कहा,  'ये बहुत गंभीर मुद्दा है. जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र सरकार को गंभीर कदम उठाने चाहिए. नहीं तो आने वाले समय में बहुत मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी. हमें बताइए कि आप क्या तरीके प्रस्तावित करते हैं. आपको आगे आना होगा.'

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    अदालत ने कहा,'ये बेहद गंभीर मामला है, जो देश की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है. इसलिए बेहतर होगा कि केंद्र सरकार अपना रुख साफ करे और जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर जवाब दे.'

    इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि ये मुद्दा संविधान सभा में उठा था. उन्होंने बताया कि ज्यादातर धर्मांतरण आदिवासी इलाके में हो रहे हैं. उन्हें पता ही नहीं होता कि उनके साथ क्या हो रहा है और ये सब मदद के नाम पर होता है.

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    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये धार्मिक स्वतंत्रता हो सकती है, मगर जबरन धर्मांतरण के नाम पर धार्मिक स्वतंत्रता नहीं हो सकती. 

    जबरन धर्मांतरण का क्या है कानूनी इतिहास?

    - 2018 में लॉ कमिशन की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि आजादी से पहले ब्रिटिश इंडिया में में जबरन धर्मांतरण को रोकने का कोई कानून नहीं था. लेकिन उस समय कोटा, बीकानेर, जोधपुर, रायगढ़, पटना, सरगुजा, उदयपुर और कालाहांडी जैसी दर्जनभर रियासतों में इसे लेकर कानून था. 

    - रिपोर्ट बताती है कि आजादी के बाद जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए 1954 में लोकसभा में एक बिल लाया गया था, लेकिन ये पास नहीं हो सका. इसके बाद 1960 और फिर 1979 में भी बिल तो आए, पर पास नहीं हो सके.


    - 10 मई 1995 को सरला मुद्गल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धर्म के दुरुपयोग को रोकने के लिए धर्म परिवर्तन पर कानून बनाने की संभावनाएं तलाशने के लिए एक कमेटी बनाने का सुझाव दिया. ये सुझाव इसलिए क्योंकि उस समय हिंदू पुरुष एक से ज्यादा शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपना रहे थे. क्योंकि हिंदू मैरिज एक्ट में प्रावधान है कि जब तक पहली पत्नी जीवित हो और तलाक न हुआ हो,हो, तब तक दूसरी शादी नहीं हो सकती.

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    क्या जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून है? 

    - फिलहाल, देश में जबरन धर्मांतरण को रोकने के खिलाफ कोई समग्र कानून नहीं है. संविधान के तहत, देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है और वो अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को अपना सकता है. हालांकि, किसी की इच्छा के खिलाफ या जबरन धर्मांतरण करवाना अपराध है. यंहा साफ कर दू की ये कानून सिर्फ भारत के नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देती है . अगर कोई  कोई बाहरी देश का धर्म और बाहरी नागरिक को ये छुट नहीं है .

    - जबरन धर्मांतरण के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर तो कोई कानून नहीं है, लेकिन कई राज्यों में इसे लेकर कानून है. इनमें ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,  झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं. 


    किस राज्य में क्या है कानून? 

    1. ओडिशाः पहला राज्य है जहां जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून आया था. यहां 1967 से इसे लेकर कानून है. जबरन धर्मांतरण पर एक साल की कैद और 5 हजार रुपये की सजा हो सकती है. वहीं, एससी-एसटी के मामले में 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है. 

    2. मध्य प्रदेशः यहां 1968 में कानून लाया गया था. 2021 में इसमें संशोधन किया गया. इसके बाद लालच देकर, धमकाकर, धोखे से या जबरन धर्मांतरण कराया जाता है तो 1 से 10 साल तक की कैद और 1 लाख तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है. 

    3. अरुणाचल प्रदेशः ओडिशा और एमपी की तर्ज पर यहां 1978 में कानून लाया गया था. कानून के तहत जबरन धर्मांतरण कराने पर 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है. 

    4. छत्तीसगढ़ः 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद यहां 1968 वाला कानून लागू हुआ. बाद में इसमें संशोधन किया गया. जबरन धर्मांतरण कराने पर 3 साल की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माना, जबकि नाबालिग या एससी-एसटी के मामले में 4 साल की कैद और 40 हजार रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है. 

    5. गुजरातः यहां 2003 से कानून है. 2021 में इसमें संशोधन किया गया था. बहला-फुसलाकर या धमकाकर जबरन धर्मांतरण कराने पर 5 साल की कैद और 2 लाख रुपये जुर्माना, जबकि एससी-एसटी और नाबालिग के मामले में 7 साल की कैद और 3 लाख रुपये के जुर्माने की सजा है. 

    6. झारखंडः यहां 2017 में कानून आया था. इसके तहत, जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर 3 साल की कैद और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है. वहीं, एससी-एसटी के मामले में 4 साल की कैद और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.


    7. उत्तराखंडः 2018 में कानून लाया गया था.  इसमें 1 से 5 साल तक की कैद और एससी-एसटी के मामले में 2 से 7 साल तक की कैद हो सकती है. जुर्माने का भी प्रवधान किया गया है. 

    8. हिमाचल प्रदेशः उत्तराखंड की तर्ज पर ही 2019 में यहां कानून लाया गया था. यहां भी 1 से 5 साल तक की कैद और एससी-एसटी के मामले में  2 से 7 साल तक की कैद हो सकती है. जुर्माने का भी प्रवधान किया गया है. 

    9. उत्तर प्रदेशः 2020 में योगी सरकार जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून लेकर आई थी. इसके तहत 1 से 5 साल तक की कैद और 15 हजार रुपये जुर्माना और एससी-

    एसटी के मामले में 2 से 10 साल की कैद और 25 हजार रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान है.


    पड़ोसी देशों में भी हैं कानून

    - भारत के पड़ोसी देशों में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून हैं. पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और भूटान में इसे में इसे लेकर कानून है. 


    - नेपाल में जबरन धर्मांतरण पर 6 साल तक की कैद हो सकती है. वहीं, म्यांमार में 2 साल  और श्रीलंका में 7 साल तक की सजा हो सकती है. भूटान में भी कानून है, लेकिन यहां सजा का जिक्र नहीं है, बस इतना है कि कोई किसी का जबरन धर्म परिवर्तन नहीं  करवा सकता. 

    - पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन के मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं और यहां सबसे कठोर कानून है. यहां जबरन धर्मांतरण पर 5 साल की कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. यहां 18 साल से कम उम्र के लोग भी अपना धर्म नहीं बदल सकते.  

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