खतियान शब्द से डरी बीजेपी, राज्यपाल ने लौटाया 1932 का खतियान बिल, हेमंत सरकार फिर भेजेगी बिल
We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / सूरज महतो
रांची : झामुमो के मुताबिक 1932 का खतियान और इस पर आधारित स्थानीय नीति राज्य के मूलवासियों, आदिवासियों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. इस पर राजनीति से बचने की जरूरत है. पार्टी केंद्रीय कार्यालय में सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि झारखंड विधानसभा से पास जिस विधेयक को राजभवन को भेजा गया, उसे भूलवश राज्यपाल ने पूरी तरह नहीं देखा होगा. वैसे विधेयक वापस लौटाए जाने से पूर्व उन्होंने इस पर कानूनविदों से राय ली होगी. खुद भी वे विद्वान हैं पर इतने महत्वपूर्ण और बड़े विधेयक को विस्तृत तौर पर देखा जाना चाहिये. आर्टिकल 21बी में स्पष्ट लिखा है कि विधानसभा किसी जरूरी विषय को नौवीं अनुसूची में शामिल करने को भेज सकती है. वैसे राज्य सरकार इतने अहम विधेयक के मसले पर कानूनविदों, संविधान के जानकारों की मदद लेगी. दोबारा राज्यपाल के पास भेजेगी.
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सही परिपाटी नहीं दिखा रहा राजभवन
सुप्रियो भट्टाचार्य के मुताबिक जब जब मूलवासी, आदिवासियों के हक, अधिकार से जुड़े मुद्दों पर सरकार प्रयास करती है, तब तब ऐसी स्थिति आ जाती है जो ठीक नहीं. झारखंड विरोधी और बाहरी तत्व आंखें तरेरने लगते हैं. राज्यपाल विधानसभा के संरक्षक भी हैं. उनकी सरकार बजट भी आने वाले समय में पेश करेगी. वही विधानसभा अपने संरक्षक को नौवीं अनुसूची में शामिल करने को विधेयक केंद्र को भेजने को कहती है तो उन्हें आर्टिकल 12,15,16,18 सब याद आने लगता है. यह सही चीजें नहीं हो रही हैं. यह तरीका सही नहीं. ऐसी परिपाटी रही भी नहीं है. राजभवन अगर राज्य के लोगों के हक, अधिकारों के संरक्षण का काम नहीं करेगा तो पांचवीं अनुसूची में इस राज्य का जो हक है, उसकी सुरक्षा कौन करेगा. राज्यपाल न केवल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि हैं, बल्कि संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति के भी प्रतिनिधि हैं. निश्चित तौर पर झामुमो इस तरह की चीजों से आहत है.
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भाजपा को खतियान से डर
झामुमो के मुताबिक भाजपा को खतियानी शब्द से डर लगने लगा है. खतियानी जोहार यात्रा शुरू होने के बाद से इस तरह की बातें सामने लगी हैं. भाजपा अब बाहरी जनता पार्टी हो गयी है. वह खुलकर खतियान का विरोध करे. कहे कि वह खतियान के खिलाफ है. विधेयक की वापसी बहुंत दुखद परिस्थिति है. इससे बचना चाहिये. आने वाले समय में झामुमो भाजपा के मनोभाव को एक्सपोज करेंगी. कानूनी विकल्पों पर पहल करेगी. दोबारा राज्यपाल के पास इस विधेयक को भेजेंगे. तब शायद राज्यपाल बाध्य और विवेकपूर्ण होकर संसद को भेजें.
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