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    सचमुच कितने बेशरम हैं?



    We News 24»दिल्ली, भारत

    लेखक,विष्णु भट्ट 

    सम्पादकीय दो दिन पहले दिल्ली में खूब तेज़ बारिश हुई। बादल जमकर बरसे। मई के महीने में फरवरी जैसा मौसम हो गया। कई स्थानों पर पानी भर गया और तालाब का सा नज़ारा देखने को मिला। 

    इस मूसलाधार बारिश और जलभराव से मुझे अपना बचपन याद आ गया। बचपन में मैं देखता था कि जहाँ भी पानीदार जगह मिले वहाँ बेशरम (कही-कही इसे बहाया और थेथर का पौधा भी कहते )  खूब अच्छी तरह पनपते थे। पगडंडियों और सड़कों के किनारे तो साहब बेशरम के जंगल ही उग आते थे। इन झाड़ियों में साँप अपना बसेरा बना लेते थे। इन साँपों के डर से शाम होने के बाद इन रास्तों से गुजरना खतरे से खाली नहीं होता था। 

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    इन बेशरमों के क्या कहने थोड़ी सी नमी मिलने पर यह घरों की कच्ची दीवारों में भी उगने में शर्म नहीं करते। नमीं को छोड़िए ये किसी भी परिस्थिति में उग आते हैं और जहाँ ये होते हैं साँप आ ही जाते हैं।

    आज बढ़ती आबादी के कारण जहाँ जंगल के जंगल उजाड़ दिए है। मजाल है कि बेशरम को उजाड़ पाए हों। ये थोड़े सिकुड़ ज़रूर गए हैं लेकिन समाप्त नहीं हुए हैं और अपने फैलाव के लिए ज़मीन तलाश रहे हैं।

    कुछ दिन पहले मैं तब आश्चर्यचकित रह गया जब मैंने बेशरम के पौधे को विधानसभा की दीवार में उगा हुआ देखा। मुझे लगा कि अब इन बेशरमों को गॉंव की पगडंडियों और तालाबों में प्रगति नहीं दिखती शायद? इसलिए इन्होंने शहरों का रुख कर लिया है। गॉंवों में घरों की कच्ची दीवारों में पनपते थे। शहरों में पक्की दीवार फोड़कर पनप रहे हैं। सचमुच ये कितने बेशरम हैं। 

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    जब गाँवों में थे तब भी इनके नजदीक से गुजरने में डर लगता था। शहरों में भी डर लगता है। इनके आसपास साँप जो रहते हैं। 

    मुझे लगता है कि ये जहाँ उगते हैं मुसीबत वहाँ खुद ही पैदा हो जाती है। जहाँ एक "बेशरम" जड़ें जमा लेता है वहाँ धीरे-धीरे बेशरमों की तादाद बढ़ने लगती है।

    आज गाँवों में ही नहीं कस्बों में ,शहरों में "बेशरम" मिल जाएँगे। सरकारी संस्थानों में, निजी संस्थानों में, धर्म में, राजनीति में, चिकित्सा में, शिक्षा में, थानों में, अदालतों में हर जगह "बेशरम" मिल जाएँगे। इन्हें पगडंडियों से मिटाने की कोशिश करो तो सड़कों पर उग आते हैं। गाँवों से उजाड़ने की कोशिश करो तो कस्बों में उग आते हैं। कस्बों से मिटाने की कोशिश करो तो शहरों में उग आते हैं। कच्ची दीवारों से मिटाओ तो पक्की दीवारों पर उगते हैं। पंचायतघर से मिटाने की कोशिश करो तो विधानसभा की दीवार में उगते और फलते-फूलते हैं। इनके लिए सरहद कोई मायने नहीं रखता। इन्होंने दुनिया भर में जड़ें जमा रखी हैं।

    कुछ लोग इन्हें उजाड़ने की कोशिश में लगे थे लेकिन वे अब थककर बैठ गए है और कुछ इनके आसपास के साँपों के डर से इनके नज़दीक जाने से भी डरते हैं। सचमुच ये कितने "बेशरम" हैं। 

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    * कॉपी राइट*विष्णु भट्ट 

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