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    भारत में भी चीन की तरह मंडराया बिजली संकट का खतरा ,पावर प्लांट में नहीं है पर्याप्त कोयला



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    We News 24»   नई दिल्ली 

    रिपोर्टिंग /विवेक श्रीवास्तव 


    नई दिल्ली ,  देश भर के थर्मल पावर प्लांट में कोयला का स्टॉक खत्म होने की कगार पर है. इंडिया टुडे (हिंदी) के संपादक अंशुमन तिवारी ने ट्विट कर इस मामले पर कहा है कि “भारत में बिजली संकट का अंदेशा है. आधे से ज्यादा बिजली संयंत्रों के पास केवल तीन दिन का कोयला. देश का 70% बिजली उत्पादन कोल पर आधारित है. ऊर्जा मंत्री के मुताबिक कोयले की यह किल्लत ‘सामान्य ’दिनों जैसी नहीं.” कोयले के इस संकट को देखते हुए कोल सचिव अपने आला अधिकारियों के साथ बुधवार (आज) बैठक करने जा रहे हैं. कोल क्राइसिस कैसे जल्दी खत्म हो इस पर मंथन किया जाएगा.

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    कोयले की कमी की वजह से पावर प्लांट बंद नहीं होंगेः सीएमडी

    झारखंड देश भर के तमाम पावर प्लांटों को कोयले की सप्लाई करता है. यहां सीसीएल सबसे बड़ी कोयला उत्पादन करने वाली कंपनी है. वहीं बीसीसीएल दूसरे नंबर पर आती है. इस मामले में  सीसीएल और बीसीसीएल के सीएमडी पीएम प्रसाद ने कहा कि अभी पावर प्लांट में करीब चार दिनों का स्टॉक बचा हुआ है. कहा कि सीसीएल और बीसीसीएल जल्द ही इस कमी को दूर करने की कोशिश कर रही है. लगातार बारिश होने की वजह से कोयला उत्पादन में गिरावट आयी थी. लेकिन अब सुधार है. क्राइसिस जल्द ही दूर कर लिया जाएगा. कोयले कमी की वजह से पावर प्लांट बंद नहीं होंगे.

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    सीसीएलः भेजना है रोज 50 से ज्यादा रैक, जा रहे औसतन 30

    कोल कंपनी की एक स्ट्रैटीजी होती है. हमेशा कोयला उत्पादन से ज्यादा डिस्पैच करना होता है. सीसीएल को औसतन 1.53 लाख टन कोयला उत्पादन करना है. वहीं 2.30 लाख टन कोयला डिस्पैच करना है. कल यानी मंगलवार की बात करें तो सीसीएल ने 1.62 लाख टन कोयले का उत्पादन किया और 32 रैक कोयला पावर प्लांट भेजा गया. जबकि सीसीएल को करीब 50 रैक रोजाना डिस्पैच करना है. झारखंड में एनके एरिया, पिपरवार, आम्रपाली और मगध जैसी बड़ी कोलियरियां हैं. इन कोलियरियों में स्टॉक ना के बराबर बचा है. सीसीएल की करीब 57 खदानों में से सिर्फ 6 कोलियरी के पास ही स्टॉक बचा हुआ है.

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    इसलिए सीसीएल जो उत्पादन कर पा रही है, वही कोयला पावर प्लांट को भेज पा रही है. वित्त वर्ष की शुरुआत में यानि एक अप्रैल को सीसीएल के पास कोयले का स्टॉक करीब 110 लाख टन कोयला था. जो अब सिर्फ 20 लाख टन कोयला रह गया है. माना जा रहा है कि झारखंड में पांच महीने मॉनसून रहने की वजह से लगातार बारिश हुई, इसी वजह से उत्पादन में कमी आयी. डिस्पैच स्टॉक का कोयला ही होता रहा, इसलिए ऐसा हाल है.

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    बीसीसीएलः 40 लाख कोयला रखना है स्टॉक में, हैं सिर्फ 6 लाख टन

    सीसीएल के ही जैसा हाल बीसीसीएल का है. कोल इंडिया की स्ट्रैटिजी के मुताबिक इन्हें रोजाना 72000 टन उत्पादन करना है और एक लाख टन कोयला डिस्पैच करना है. लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है. बीसीसीएल अभी रोजाना औसतन करीब 85000 टन कोयला ही उत्पादन कर पा रही है. वहीं करीब 90000 टन कोयला डिस्पैच हो रहा है. बीसीसीएल को करीब 25 रैक डिस्पैच करना है, लेकिन हो रहा सिर्फ 20-22 रैक ही है. अगर स्टॉक की बात करें तो बीसीसीएल को करीब 40 लाख टन कोयला स्टॉक में रखना है, लेकिन सिर्फ 6 लाख टन कोयला ही स्टॉक में शेष है.

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    कोल क्राइसिस की वजहें ये भी हैं

    कोराना काल में कई पावर प्लांट बंद थे. अचानक से पावर प्लांट के खुलने से कोयले की डिमांड में बेतहाशा तेजी देखने को मिली. वहीं इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया से आने वाला कोयले की कीमत में तीन गुना वृद्धि होने से भारत के पावर प्लांटों ने विदेश से कोयला लेना बंद कर दिया. इसका बोझ भी भारत की कोल कंपनियों पर आया. वहीं पावर प्लांट की गलत निती की वजह से भी कोयले की कमी हुई. दरअसल हर पावर पावर प्लांट को करीब 25 दिनों का कोयला अपने यहां स्टॉक में रखना है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब जब कोयले का स्टॉक सिर्फ तीन दिन के ही बचे हैं, तो पावर और कोयला दोनों मंत्रालयों के पांव फूल रहे हैं.

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