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    Simdega News:सिमडेगा ,तामड़ा गांव में राम चरित्र मानस कथा भजन किया गया


    सिमडेगा ,तामड़ा गांव में राम चरित्र मानस कथा भजन किया गया, स्वामी कृष्ण चैतन्य ब्रह्मचारी महाराज ने लोगों को रामचरित्र मानस का अर्थ समझाया.


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    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र  / दीपक कुमार 

    सिमडेगा : जिले के तामड़ा  गांव में नवनिर्मित शिव मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम 25 फरवरी शाम को राम चरित्र मानस कथा भजन एवं स्वामी कृष्णा चैतन्य ब्रह्मचारी महाराज के साथ विश्व हिंदू परिषद के  धर्म  सभा का भी आयोजन किया गया आज दूसरा दिन 24 घंटे का अखंड हरिकीर्तन होगा . स्वामी कृष्णा चैतन्य ब्रह्मचारी महाराज ने लोगो को सनातन धर्म के महत्त्व के बारे में जानकरी दी उन्होनो कहा की सनातन धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है . 


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    सनातन धर्म में किसी तरह का कोई बंदिश नहीं है .आपका मन करे तो आप मंदिर जाये नहीं मन करे तो नहीं जाय आपको कोई रोकने टोकने वाला नहीं है जबकि दुसरे धर्म में ऐसा नहीं है दुसरे धर्म में सनातन धर्म जितनी आजादी नहीं अगर  आप उनके पूजा स्थल पर नहीं तो आपके उपर जुरमाना लगया जाता है साथी उन्होंने रामचरित्र मानस पर उठे विवादित सवाल पर भी लोगो को जानकारी दी उन्होंने कहा जिन लोगो ने हिन्दू महाकाव्य रामचरित्र मानस के चौपाई ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी दंड के अधिकारी लेकर अनाप शनाप बोल रहे रहे उनमे ज्ञान की कमी है .

    सिमडेगा ,तामड़ा गांव में राम चरित्र मानस कथा भजन किया गया


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    रामचरितमानस की इस चौपाई का हर कोई अपने हिसाब से अलग-अलग अर्थ निकालता है . और उससे बड़ी बात यह है कि उस आशय को दूसरों के सामने प्रकट करता है . और इस तरह कई लोग गलत अर्थ के आधार पर नारी, पशु और वंचित समुदाय के खिलाफ की जा रही ज्यादती को सही ठहराते हैं . तो वहीं कई बार इस चौपाई के गलत आधार पर हिन्दू धर्म और इसके धर्म ग्रंथों पर नारी, पशु और वंचित समाज के अपमान का आरोप लगाकर भ्रम फैलाते हैं. यद्यपि तथ्यों की परख के लिए आमतौर पर हम प्रत्यक्ष प्रमाण की गैरमौजूदगी वाले दावों को यूं ही छोड़ देते हैं . या यूं कहें कि हम उनकी सत्यता जानने का प्रयास नहीं करते जबकि हकीकत यह है कि किसी भी तरह का भ्रामक दावा समाज में अशांति, आपस में वैमनस्य, सांप्रदायिक नफरत, किसी व्यक्ति का चरित्रहनन कर सकता है. 


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    रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास हैं, रामचरित मानस की भाषा अवधी है  इस चौपाई का सही अर्थ जानने के लिए पहले इस चौपाई में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ का ज्ञान होना जरुरी है जो इस प्रकार हैं “ढोल यानि ढोलक, गवार यानि ग्रामीण या अनपढ़, शूद्र यानि वंचित वर्ग, पशु यानि जानवर, नारी यानि स्त्री, सकल मतलब पूरा या सम्पूर्ण, ताड़ना यानि पहचनाना या परख करना, अधिकारी यानि हक़दार” तो इस प्रकार इस पूरे चौपाई का अर्थ यह हुआ कि “ढोलक, अनपढ़, वंचित, जानवर और नारी, यह पांच पूरी तरह से जानने के विषय हैं.”  तुलसीदास इस चौपाई के माध्यम से यह कहना चाहते थे कि, ढोलक को अगर सही से नहीं बजाया जाय तो उससे कर्कश ध्वनि निकलती है .  अतः ढोलक पूरी तरह से जानने या अध्ययन का विषय है इसी तरह अनपढ़ व्यक्ति आपकी किसी बात का गलत अर्थ निकाल सकता है या आप उसकी किसी बात को ना समझकर अनायास उसका उपहास उड़ा सकते हैं .


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     अतः उसके बारे में अच्छी तरह से जान लेना चाहिए, वंचित व्यक्ति को भी जानकर ही आप किसी कार्य में उसका सहयोग ले सकते हैं अन्यथा कार्य की असफलता का डर बना रहता है, पशु के पास सोचने एवं समझने की क्षमता मनुष्य जितनी नहीं होती इसलिए कई बार वो हमारे किसी व्यवहार, आचरण, क्रियाकलाप या गतिविधि से आहत हो जाते हैं और ना चाहते हुए भी असुरक्षा के भाव में असामान्य कार्य कर बैठते हैं अतः पशु को भी भली-भांति जान लेना चाहिए, इसी प्रकार अगर आप स्त्रियों को नहीं समझते तो उनके साथ जीवन निर्वहन मुश्किल हो जाता है यहां स्त्री का तात्पर्य माता, बहन, पत्नी, मित्र या किसी भी ऐसी महिला से है जिनसे आप जीवनपर्यन्त जुड़े रहते हैं, ऐसे में आपसी सूझबूझ काफी आवश्यक होती है. कार्यक्रम  में आये श्रद्धालु लोगो के भंडारे का व्यवस्था थी 

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