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    सीतामढ़ी:टूटते बांध, डूबीं सड़कें, जलमग्न शहर और गांव बिहार पर आपदा की दोहरी मार एक तरफ कोरोना तो दूसरी तरफ बाढ़,देखे वीडियो

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    We News 24 Hindi » बिहार/राज्य/सीतामढ़ी 

    रोहित ठाकुर  की रिपोर्ट 

    सीतामढ़ी : बाढ़ और कोरोना की  मार से बिहार कराह रहा है. नेपाल में हो रही लगातार बारिश, बिहार की नदियों पर भारी पड़ रही है. हजारों लोगों की जान खतरे में है. बिहार के 10 जिलों  सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण, पश्चिम चंपारण एवं खगड़िया जिले के 55 प्रखंडों के 282 पंचायतों की लगभग 6 लाख 36 हजार आबादी बाढ़ से प्रभावित है.

     लोगो के घरो से लेकर जीवन तक पानी-पानी हो चूका है पर लगता है जनप्रतिनिधि नेता सांसद विधायक और सूबे के मुख्यमंत्री के आँखों का  पानी मर चूका है ना जाने इनकी जमीर अपने जनता के प्रति कब जगेगा ?  फिलहाल राहत की उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है. पहले तटबंध टूटने और सड़कों के दरकने की खबरें आई और अब बाढ़ की वजह से एक के बाद एक हो रहे हादसों की खबरें आ रही हैं.



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    यंहा हमे एक लेखेक की रचना याद आ गयी जो 1948 में फणीश्वरनाथ रेणु ने लिखा था जिसका नाम है डायन कोसी तो आइये सुनते उनकी लिखी रचना का कुछ अंश 

    डायन कोसी

    हिमालय की किसी चोटी की बर्फ पिघली या किसी तराई में घनघोर वर्षा हुई और कोसी की निर्मल धारा में गंदले पानी की हल्की रेखा छा गई। ‘कोसी मैया’ का मन मैला हो गया। कोसी के किनारे रहने वाले इंसान ‘मैया’ के मन की बात नहीं समझते, पर कोसी के किनारे चरने वाले जानवर पानी पीने के समय सब कुछ सूंघ लेते हैं.



    नथुने फुलाकर वे सूंघते, ‘फों-फों’ करते और मानो किसी डरावनी छाया को देखकर पूंछ उठाकर भाग खड़े होते। चरवाहे हैरान होते। फिर एक नंग-धड़ंग लड़का पानी की परीक्षा करके घोषणा कर देता- ‘गेरुआ पानी!’ ‘गेरुआ पानी?’ मूक पशुओं की आंखों में भयानक भविष्य की तस्वीर उतर आती है। गेरुआ पानी। खतरे की घंटी। मौत की छाया। धुंधला भविष्य। कोसी मैया की जय-जयकार हाहाकार में बदल जाती है.


    आप ही सोचे की  72 साल पहले लिखे गए डायन कोसी में और आज के कोसी और बिहार की हालत में क्या बदला शायद कुछ भी नहीं


    पिछले 72 साल में हालात वही 

    पिछले 72 साल में  कितने सरकार प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री सांसद विधायक आये और गए पर बिहार की हालत वही है जो 1948 में डायन कोसी में बतया गया  बिहार वासी हर साल इस त्रासदी की मार झेलते है  ,आधा बिहार कोरोना से मर रहा तो आधा डूब कर कर यानि इस बार बिहार पर पड़ी दोहरी मार, कोरोना और बाढ़ से हुआ बेहाल हैरानी की बात ये है की हर साल की त्रासदी के लिए  सरकार के तरफ से कोई पुख्ता कदम नहीं उठाया गया .

    सीतामढ़ी प्रशासन का भी यही हाल

    अब  हम सीतामढ़ी प्रशासन की बात करे तो इनका भी यही हाल है.जब तक जनता डूबने ना लगे कोई अनहोनी ना हो तब तक ये चिरनिंद्रा से नहीं जगते है . हर साल आप सुनते होंगे मानसून आने से पहले केंद्र सरकार से लेकर  राज्य सरकारें यंहा तक आपके जिला के जिलाअधिकारी नगर परिषद,नगर निगम   बाढ़ से निपटने के लिए तैयार होने का दावा करती है. लेकिन मानसून का पहला दौर आते ही सभी  सरकारी दावों की पोल खोलते हुए कई राज्यों को डुबो देता है. 


    सीतामढ़ी जिले के साथ-साथ बिहार कई जिले ऐसे है जन्हा  हर साल बाढ़ आना लगभग तय है. ये बात आपके जनप्रतिनिधि से लेकर सूबे  सरकार भी जानती है.  तो क्यों बरसात से पहले कोई पुख्ता इंतजाम नहीं करते जैसे सीतामढ़ी के प्रशासन जिस प्रकार किया है . पासवान चौक पर पानी की निकासी का इंतजाम नदी से जलकुम्भी की सफाई नाले नासिक की सफाई इसे आप क्या कहंगे ये गौर करने वाली बात . कहने का मतलब ये है की राज्य के  हर विभाग समय रहते अपना  काम पूरी ईमानदारी से करे तो  ऐसे भयावक स्तिथि ही ना हो  .

     

    राज नेताओ  को कोई लेना देना नही है

    अब बात कर लेते है राज नेताओ का की इसमें इनका क्या भागीदारी है तो इसका जवाब है ऐसे  त्रासदी से  राज नेताओ  को कोई लेना देना नही है।  हर राजनेता अपनी सियासी रोटी सेंकने में जुटे है .इनको क्या फर्क पड़ता है  की आपका घरबाढ़ में बह गया या आप खुद बह गए  अपने खाना खाय या भूखा है इससे इनको कोई लेना देना नहीं है . बस ये एक दुसरे को निचा दिखाते-दिखाते इतने निचे गिर जाते है जन्हा से इन्हें आपका  दुःख दर्द दिखाई नहीं देता और दिखाई भी क्यू दे क्योकि आपके लिए बाढ़ एक अभिशाप है तो इनके लिए वरदान हर साल बाढ़ राहत के नाम पर ये करोडो-करोडो डकार जाते है .

    आपदा प्रबंधन बल का गठन

    अब बात कर लेते है सिस्टम की तो  आपको बताते चले की 1953 में एक राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था.जिसको लेकर तमाम राज्यों में आपदा प्रबंधन बल का गठन किया  गया .लेकिन उसकी भूमिका बाढ़ के तबाही के बाद शुरू होती है. अभी तक किसी भी सरकार ने  बाढ़ नियंत्रण का कोई ठोस योजना बनाने की पहल नहीं की है. 

     जिससे बाढ़ आने से पहले हर साल डूबने वाले इलाके के लोगों और जानवरों को निकाल कर सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया जा सके. जिससे  बाढ़ से होने वाली मौत और नुकसान को कम किया जा सके.इस  आपदा प्रबंधन बल पर अब तक अरबों रुपये खर्च हो चुके है  पर  नतीजा क्या वही  ढाक के तीन पात  . 

    अतिक्रमण भी जिम्मेदार

      किसी हद तक पानी निकासी का जिम्मेदारअतिक्रमण के तहत नदी नालो पर कब्जा कर अवैध तरीके से किया गया निर्माण  अब आप ही सोचे की हर वर्ष इस त्रासदी किसके वजह से झेलते है.

     क्या सारा दोष नेताओ और जनप्रतिनिधियों का है .नहीं कही ना कही जनता भी इसका कसूरवार है क्योकि इनको चुनने वाले तो आप ही है .


    अभी कुच्छ दिनों में  बिहार में विधानसभा चुनाव आने वाला है  और आप ये सभी दुख दर्द भूल जायेंगे और जो पार्टी ने अच्छी रकम थमाई उसका बटन तब जायेगा । जब तक आप जनता जागरूक नहीं होंगे तबतक बिहार ऐसे ही रोता और बिलखता रहेगा |

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