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    दिल्ली दंगे ;फैलाई हिंदुओं के पलायन की अफवाह सभी घरों में एक ही रात में लगे ‘मकान बिकाऊ है' का पोस्टर



    We News 24 Hindi » नई दिल्ली 

    काजल कुमारी   की रिपोर्ट

    नई दिल्ली : उत्तर पूर्वी दिल्ली के मौजपुर इलाके से बीते दिनों एक चौंकाने वाली खबर आई। इस खबर में बताया गया कि मोहनपुरी की गली नंबर 7 में रहने वाले कई हिंदू परिवार पलायन को मजबूर हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी ऐसी तमाम तस्वीरें फैलने लगी जिनमें लोगों के घरों के बाहर पोस्टर लगे दिखाई दिए। जिन पर लिखा था ‘धर्म विशेष के भय के कारण यह मकान बिकाऊ है।’


    यह खबर आते ही उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने इलाके का दौरा किया। वे उन तमाम लोगों से मिले और उन्होंने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी इस संबंध में पत्र लिखते हुए इस मामले पर ध्यान देने की अपील की। 31 जुलाई और 1 अगस्त को मनोज तिवारी ने इस संबंध में कई ट्वीट भी किए, जिसके चलते यह मामला कुछ और चर्चित हुआ।

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    हालांकि, मौके पर पहुंचने पर तस्वीर कुछ अलग नजर आती है। मोहनपुरी की गली नंबर 7 दूर से ही पहचानी जा सकती है। इस गली के दोनों छोरों पर लगे चटख भगवा रंग के गेट इसे बाकियों से अलग करते हैं। इस गली में क़रीब 70 घर हैं जिनमें से सिर्फ़ तीन ही घर मुस्लिम समुदाय के लोगों के हैं जबकि बाकी सभी घर हिंदू समुदाय के हैं।


    इनमें से कई घरों के बाहर अब भी ऐसे पोस्टर देखे जा सकते हैं जिन पर लिखा है कि ‘धर्म विशेष के भय के कारण यह मकान बिकाऊ है।’ लेकिन दिलचस्प यह है कि ये सभी पोस्टर एक ही दिन लगाए गए, सभी पोस्टर बिलकुल एक ही जैसी ए-4 शीट पर बनाए गए हैं, सभी पोस्टरों पर लिखे वाक्य अक्षरशः एक जैसे हैं और लगभग सभी पोस्टर लिखे भी एक ही लिखावट (हैंड राइटिंग) में गए हैं।





    एक और बात जो ध्यान खींचती है वह यह है कि ‘घर बिकाऊ है’ लिखे इन पोस्टरों में कहीं भी कोई फोन नंबर दर्ज नहीं है। अमूमन लोग जब अपने घर को किराए पर देने या बेचने के लिए ऐसे पोस्टर लगाते हैं तो उनमें अपना कॉन्टैक्ट नंबर जरूर लिखते हैं। लेकिन मोहनपुरी की गली नंबर 7 में लगे इन तमाम पोस्टरों में से किसी एक में भी कोई फोन नंबर दर्ज नहीं है।

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    इसके साथ ही यहां रहने वाले किसी भी परिवार ने न तो घर बेचने के संबंध में कोई विज्ञापन दिया है और न ही किसी ने प्रॉपर्टी डीलरों से ही घर बेचने के बारे में कोई बात की है। ऐसे में ये सवाल ज़रूर उठता है कि अगर ये लोग घर बेचना नहीं चाहते तो इन्होंने अपने घरों के बाहर यह पोस्टर क्यों चिपकाए हैं?


    इस सवाल का जवाब यहां रहने वाले लोगों से बात करने पर साफ होने लगता है। इसी गली में रहने वाले राजपाल कहते हैं, ‘फरवरी में जो दंगे हुए उनमें हमारे ही लोगों पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं और ग़लत कार्रवाई हो रही है। यहां से 16 निर्दोष लोगों को एक हत्या के मामले में उठा लिया गया है और कोई सुनवाई नहीं हो रही। जब यहां हमारी कोई सुनवाई ही नहीं है तो हम यहां रहकर क्या करेंगे?’


    राजपाल जिस मामले का जिक्र कर रहे हैं वो परवेज आलम नाम के एक व्यक्ति की हत्या का मामला है। परवेज गली नम्बर सात के ठीक सामने सड़क के दूसरी तरफ रहा करते थे। इस हत्या के आरोप में पुलिस ने मोहनपुरी के 16 लोगों को आरोपित बनाया है और ये सभी लोग अप्रैल से जेल में क़ैद हैं।

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    इन आरोपितों में जयवीर सिंह तोमर भी एक हैं। उनकी पत्नी सुनीता बताती हैं, ‘हम लोग 30-32 साल से यहां रह रहे हैं। पहले कभी कोई समस्या नहीं हुई लेकिन दंगों के बाद से माहौल बिगड़ गया है। उस दिन हमारी दुकान जला दी गई और बाद में मेरे पति को ही हत्या के आरोप में फंसा दिया गया। वो 9 अप्रैल से जेल में हैं और उन्हें ज़मानत तक नहीं मिल रही।’


    स्थानीय लोग यह भी शिकायत करते हैं कि क्षेत्रीय विधायक गोपाल राय और दिल्ली सरकार सिर्फ़ एक ही समुदाय का पक्ष ले रही है। लोगों का कहना है कि दिल्ली सरकार ने मुस्लिम बहुल इलाकों में राहत सामग्री और मुआवज़ा दिया है, जबकि इस इलाके में कोई पूछने तक नहीं आया।


    हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि इस गली नंबर 7 के कुल 70 घरों में से सिर्फ़ जयवीर तोमर का घर ही दंगों की चपेट में आया था जो कि मुख्य सड़क से लगा हुआ है। इसके एवज में उन्हें पांच लाख का मुआवज़ा मिला है। गली के अन्य घरों में दंगों के दौरान कोई नुकसान नहीं हुआ था।





    इस गली के रहने वाले 48 वर्षीय राजपाल त्यागी को भी पुलिस ने परवेज आलम की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया है। राजपाल के भाई जो ख़ुद दिल्ली पुलिस से रिटायर हुए हैं कहते हैं, ‘इस मामले में पुलिस ने मनमाने तौर से गिरफ़्तारी की हैं। जो लोग आरएसएस से जुड़े रहे हैं या जिनका आरएसएस के लोगों के साथ उठना-बैठना रहा है, उन्हें ही पुलिस ने हत्या के आरोप में फंसा दिया है।’

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    गली नंबर 7 के जिन भी घरों के बाहर ‘मकान बिकाऊ है’ वाले पोस्टर लगे हैं वे सभी लोग इस बारे में पूछने पर परवेज की हत्या के मामले में हुई गिरफ़्तारी का ही जिक्र करते दिखते हैं। इसी गली के रहने वाले एक व्यक्ति बताते हैं, ‘हत्या के मामले में जिन 16 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है वो सभी बीते चार महीने से जेल में हैं। कोर्ट से उन्हें ज़मानत नहीं मिल रही और कोई नेता भी इस मामले में कुछ नहीं कर रहा।


    इसी लिए यहां के लोगों ने तय किया अपने घरों के बाहर इस तरह के पोस्टर लगाए जाएं ताकि लोगों का ध्यान इस तरफ लाया जा सके। इसका फ़ायदा भी हुआ क्योंकि पोस्टर लगने के अगले ही दिन सांसद मनोज तिवारी यहां आए और उन्होंने लोगों की बात सुनी।’





    लगभग यही बात जाफराबाद थाने के थानाध्यक्ष भी बताते हैं, जिनके थाना क्षेत्र में मोहनपुरी की यह गली आती है। थानाध्यक्ष राम महर इस बारे में पूछने पर कहते हैं, ‘उस इलाके के कुछ लोग जेल में हैं इसलिए लोग ऐसा तरीक़ा निकाल रहे हैं।’ यह पूछने पर कि क्या स्थानीय लोग दबाव बनाने के लिए ऐसा कर रहे हैं, राम महर कहते हैं, ‘इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन वहां कोई समस्या नहीं है और हालात सामान्य है। मैंने वहाँ मीटिंग भी कर ली है।’

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    राम महर आगे कहते हैं, ‘जब लोग किसी अपराध में गिरफ़्तार होते हैं तो उनके परिजन कोई न कोई रास्ता निकालने की कोशिश करते ही हैं। लेकिन, इन लोगों को न्यायिक तरीक़े से ही समाधान खोजना चाहिए।’ इलाके के एक अन्य पुलिस अधिकारी इस बारे में कहते हैं, ‘जिस तरह से एक ही रात में कई घरों के बाहर यह पोस्टर लगाए गए वो भी एक ही हैंड राइटिंग में, उससे ही मामले में संदेह पैदा हो जाता है।


    अगर यहां कोई व्यक्ति सच में दूसरे समुदाय से परेशान होकर घर बेच रहा होता तो वह प्रॉपर्टी डीलर से बात करता, अख़बार या प्रॉपर्टी साइट्स पर विज्ञापन देता। और अपने घर के बाहर ऐसा तो कभी न लिखता कि ‘धर्म विशेष से भय के कारण मकान बिकाऊ है।’ ऐसा लिखने पर घर कौन खरीदेगा?’

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