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    मुक्तिधाम बना शिक्षा का मंदिर शवो को जलाने के साथ साथ बच्चो को दी जाती शिक्षा



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    We News 24»मुजफ्फरपुर, बिहार

    उमाशंकर गिरी  की रिपोर्ट 


    बिहार : के मुजफ्फरपुर में मुक्तिधाम श्मशान घाट पर आपको बच्चों के पढ़ने की आवाजें भी सुनाई देंगी। ​लाशों से बताशा-फल चुनने वाले गरीब बच्चों के हाथ में कलम आई, तो उनके सपनों को भी पंख लग गए. ये सब संभव हुआ तीन दोस्तों की वजह से, जिन्होंने गरीबी के अंधेरे में जीवन व्यतीत कर रहे परिवारों के बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजाला करने का नेक कदम उठाया। सिकन्दरपुर स्थित मुक्तिधाम के आसपास के गरीब परिवार के बच्चे लाश पर से बताशा और फल चुनते थे, लेकिन आज वे दो दूनी चार पढ़ रहे हैं।

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    सिकंदरपुर का यह शमशान घाट जहां सिर्फ चिता ही नहीं जलाई जाती हैं बल्कि गरीब-गुरबो के बच्चों के अंदर संस्कार को भी विकसित किया जाता है। यंहा शिक्षा दीक्षा देकर बेहतर भविष्य की ज्योति जलाकर बच्चों के भविष्य को और भी उज्जवल और उन्नत करने का काम किया जा रहा है. यंहा गरीब बच्चे शिक्षा के साथ साथ संस्कार भी पाते हैं. यह शमशान घाट विद्यालय के एक शिक्षा केंद्र के रूप में काम कर रहा है मुक्तिधाम के कर्मी और मुक्तिधाम के संचालक यहां बतौर शिक्षक की भूमिका निभा कर गरीब और आसपास के झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को न सिर्फ शिक्षा दे रहे हैं बल्कि संस्कार की एक नई गाथा को भी रच रहे हैं.

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    मालूम हो कि कोरोना काल में विशेष रूप से गरीब बच्चों की शिक्षा पर बहुत ज्यादा असर पड़ा ऐसे में मुजफ्फरपुर शहर के सिकंदरपुर स्थित मुक्तिधाम जहां बच्चों के संस्कार का और उसके शिक्षा का विशेष रूप में ध्यान रख अपने कार्यों को करने वाले कर्मी बच्चों को समय निकालकर पढ़ाने का काम कर रहे हैं.

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    मुक्तिधाम के संचालक और देखरेख कर्ता रमेश केजरीवाल ने बताया कि हमारा मकसद सिर्फ शवों को अंतिम संस्कार के साथ मुक्ति दिलाना ही नहीं बल्कि आसपास के गरीब बच्चों को शिक्षा दीक्षा देकर उनके उन्नत भविष्य के लिए कार्य करना भी है ताकि देश के विकास के लिए यह बच्चे एक बेहतर भविष्य के रूप में उम्मीद की ज्योति जला सके, ताकि अपनी शिक्षा और संस्कार की बदौलत देश के लिए एक अच्छे डॉक्टर इंजीनियर और अन्य पदों पर यह जा सके और अच्छी शिक्षण संस्थान में दाखिला पा सके.


    वही नगर निगम कर्मी दीपू कुमार ने बताया कि पहले ये बच्चे कचड़ा चुनते थे, शवो के फल और बतासा को उठाकर खाते थे, इधर उधर घूमते थे, फिर मुक्तिधाम के संयोजक के द्वारा पहल कर आसपास के बच्चों के परिजनों से बात कर समझाया, फिर धीरे धीरे बच्चे आने लगे, बच्चों को पढ़ाने के लिए बिस्कुट, चॉकलेट कॉपी किताब का लालच देते है।

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